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पवार का पॉवर प्ले, भतीजे अजित की उम्मीदों को झटका

वेबदुनिया न्यूज डेस्क
Sharad Pawar withdraws resignation: महाराष्ट्र के पूर्व मुख्‍यमंत्री और एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने इस्तीफे के दांव चलकर पार्टी के ‍भीतर अपने विरोधियों खासकर अपने ही भतीजे अजित पवार को चारों खाने चित कर दिया। दरअसल, शरद की बढ़ती उम्र के बीच अजित पार्टी पर कब्जा जमाना चाहते थे, जबकि पवार अपनी बेटी सुप्रिया सुले को भी स्थापित करना चाहते थे। पवार इस बात को पहले से ही भांप गए थे कि यदि वे 'पॉवर पॉलिटिक्स' से बाहर होते हैं तो पार्टी पूरी तरह उनके हाथ से निकल सकती है या फिर टूट भी सकती है। 
 
महाराष्ट्र की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार ने शतरंज की बिसात पर अपनी गोटियां कुछ इस तरह जमाईं कि विरोधियों को इससे पहले कुछ समझ आता, उन्होंने पूरी बाजी ही पलट कर रख दी। कहा जा रहा है इस्तीफे का दांव शरद पवार की सोची-समझी रणनीति का ही हिस्सा था। इस्तीफे के बाद जिस तरह लोगों ने उनकी मान-मनौव्वल की फिर उन्होंने 2-3 दिन बाद फैसला लेने की बात कही, तभी तय हो गया था कि पवार ने बड़ा खेल कर दिया है। 
 
उस बैठक में भतीजे अजित पवार को छोड़कर लगभग सभी वरिष्ठ नेताओं की राय थी कि पवार पार्टी के अध्यक्ष बने रहे। कुछेक ने तो यहां तक कह दिया कि पवार के बिना एनसीपी नहीं चल पाएगी। शरद पवार ने 2 मई को जब अध्यक्ष पद छोड़ने का ऐलान किया था तो एकमात्र अजित ही उनके इस कदम का समर्थन करते दिखाई दिए थे।
अजित पवार पूरे समय कहते रहे कि शरद पवार पर फैसला बदलने के लिए दबाव न बनाएं, वे नई पीढ़ी को आगे आने का मौका देना चाहते हैं। हालांकि इस पूरे घटनाक्रम के दौरान मौजूद पवार की बेटी सुप्रिया पूरे समय मुस्कराती रहीं। संभवत: उन्हें पवार के पूरे खेल के बारे में पता था। 
 
उत्तराधिकारी के चुनाव के लिए उनके द्वारा चुनी गई पार्टी समिति ने एक प्रस्ताव पारित कर कहा कि पवार को पार्टी के अध्यक्ष पद पर बने रहना चाहिए। इसके कुछ समय बाद ही पवार ने कहा कि मैं आपकी भावनाओं का निरादर नहीं कर सकता। आपके प्यार के कारण मैं इस्तीफा वापस लेने की आपकी मांग को स्वीकार कर रहा हूं। हालांकि पवार ने यह भी कहा कि उनकी बेटी और सांसद सुप्रिया सुले ने राकांपा की कार्यकारी अध्यक्ष बनने के पार्टी नेताओं के सुझाव को अस्वीकार कर दिया है। हालांकि शरद पवार की प्रेस कॉन्फ्रेंस में गैर हाजिर रहे अजित ने बाद में कहा कि उनके चाचा के ‘सकारात्मक फैसले’ ने संगठन में हर किसी को ऊर्जा से भर दिया है।
 
दरअसल, एनसीपी का यह पूरा ड्रामा उस समय सामने आया जब यह कहा जा रहा था कि राकांपा विधायकों का एक तबका भाजपा में शामिल होने के लिए अजित पवार के साथ पार्टी छोड़ने की योजना बना रहा है। हालांकि शरद पवार ने अपने राजनीतिक अनुभव से फिलहाल तो मामले को संभाल लिया, लेकिन अपनी बढ़ती उम्र के बीच कब तक पार्टी को संभालकर रख पाएंगे, यह प्रश्न अभी भी बना हुआ है।
 
हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि पवार बेटी सुप्रिया को अपनी मौजूदगी में पार्टी की बागडोर सौंप दें। जिससे समय रहते वे पार्टी पर अपनी पकड़ मजबूत कर लें। जहां अजित पवार का सवाल है तो फिलहाल उनके पास कोई रास्ता नहीं है। जितने मजबूत वे पहले दिखाई दे रहे थे, अब वे उतने ही कमजोर नजर आ रहे हैं। अब एनसीपी में बने रहना उनकी मजबूरी बन गई है। यह भी संभव है कि वे अपने कुछ समर्थकों के साथ नया रास्ता भी बना लें। फिलहाल तो भतीजे को चाचा से मिले झटके से उबरने में ही समय लगेगा। इसके बाद ही वे आगे के बारे में कुछ नया सोच पाएंगे।  
 

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