Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

कोर्ट का निर्देश, भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में आरोप पत्र दायर करे महाराष्ट्र सरकार

कोर्ट का निर्देश, भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में आरोप पत्र दायर करे महाराष्ट्र सरकार
, सोमवार, 3 दिसंबर 2018 (17:00 IST)
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार को कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले में गिरफ्तार मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ पुणे की एक अदालत में दाखिल आरोप पत्र उसके समक्ष पेश करने का निर्देश दिया।


प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की पीठ ने कहा कि वह आरोपियों के खिलाफ आरोपों को देखना चाहती है। पीठ ने महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी को पुणे की विशेष अदालत में राज्य पुलिस द्वारा दाखिल आरोपपत्र 8 दिसंबर तक उसके समक्ष पेश करने का निर्देश दिया।

पीठ बंबई उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ राज्य सरकार की अपील पर सुनवाई कर रही थी। उच्च न्यायालय ने मामले में जांच रिपोर्ट दाखिल करने के लिए 90 दिन की समय सीमा बढ़ाने से इंकार कर दिया था। पीठ ने अब अगली सुनवाई के लिए 11 दिसंबर की तारीख तय की है। इससे पहले शीर्ष अदालत ने बंबई उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी थी।

बंबई उच्च न्यायालय ने हाल ही में निचली अदालत के उस आदेश को खारिज कर दिया था जिसमें पुलिस को आरोपियों के खिलाफ जांच रिपोर्ट दायर करने के लिए अतिरिक्त समय दिया गया था। उच्चतम न्यायालय ने इससे पहले महाराष्ट्र पुलिस द्वारा कोरेगांव-भीमा हिंसा के सिलसिले में गिरफ्तार किए गए 5 कार्यकर्ताओं के मामले में हस्तक्षेप से इंकार कर दिया था और उनकी गिरफ्तारी के मामले में एसआईटी की नियुक्ति से इंकार कर दिया था।

पुणे पुलिस ने माओवादियों के साथ कथित संपर्कों को लेकर वकील सुरेंद्र गाडलिंग, नागपुर विश्वविद्यालय की प्रोफेसर शोमा सेन, दलित कार्यकर्ता सुधीर धवले, कार्यकर्ता महेश राउत और केरल निवासी रोना विल्सन को जून में गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया था।

पुणे में पिछले साल 31 दिसंबर को येलगार परिषद सम्मेलन के सिलसिले में इन कार्यकर्ताओं के दफ्तरों और घरों पर छापेमारी के बाद यह गिरफ्तारी हुई थी। पुलिस का दावा था कि इसकी वजह से अगले दिन भीमा-कोरेगांव हिंसा हुई। महाराष्ट्र सरकार ने 25 अक्टूबर को बंबई उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की थी।

इससे पहले महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश हुए वकील निशांत काटनेश्वर ने सर्वोच्च अदालत को बताया था कि अगर उच्च न्यायालय के आदेश पर स्थगन नहीं दिया गया तो हिंसा के मामले में आरोपी तय वक्त में आरोप पत्र दायर न हो पाने के चलते जमानत के हकदार होंगे।

गैरकानूनी गतिविधियां निरोधक अधिनियम के तहत गिरफ्तारी के 90 दिनों के अंदर आरोप पत्र दायर करना जरूरी होता है। अभियोजन हालांकि निचली अदालत में विलंब की वजह बताते हुए अतिरिक्त समय मांग सकता है। अगर अदालत संतुष्ट होती है तो वह आरोप पत्र दायर करने के लिए 90 दिन का अतिरिक्त समय दे सकती है। 

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

हिन्दुत्व को लेकर नरेन्द्र मोदी का राहुल गांधी पर पलटवार