Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

world water day 2021 : मालवा बनेगा भविष्य का रेगिस्तान

world water day 2021 : मालवा बनेगा भविष्य का रेगिस्तान

अनिरुद्ध जोशी

कहा जाता रहा है कि मालव भूमि गहन गंभीर, पग-पग रोटी डग-डग नीर। लोग पानी के लिए पग-पग नहीं 10-10 किलोमीटर तक का सफर करते हैं। जमीन में 1000 फुट नीचे चला गया है पानी और वैज्ञानिक कहते हैं कि 1200 फुट के बाद समुद्र का खारा जल शुरू हो जाता है। आखिर नर्मदा कब तक मालवा की प्यास बुझाती रहेगी। आखिर ऐसा क्यों हुआ?
 
 
विकास के नाम पर जिस तरह से मालवा के पेड़ और पहाड़ों का काटा गया है उसे देखकर पर्यावरण प्रेमी का दु:ख कोई विकास प्रेमी नहीं समझ सकता। मालवा की प्रमुख नदियों में नर्मदा, क्षिप्रा, चंबल और कालिसिंध की दुर्दशा के बारे में सभी जानते हैं। बांध ने मार दिया नर्मदा को, शहरीकरण और लोगों ने सूखा दिया क्षिप्रा व कालिसिंध को और चंबल नदी के आसपास के जंगलों की कटाई के कारण अब डाकू तो नहीं रहे, लेकिन नदी भी नदारद होने लगी है। माही और बेतवा नदी का नाम तो कोई शायद ही जानता हो। कुएं, कुंड, तालाब और अन्य जलाशयों की जगह ट्यूबवेल ले चुके हैं। असंख्य ट्यूबवेलों ने मालवा की धरती को भीष्म पितामह के शरीर की तरह छलनी कर दिया है।
 
पहले कहते थे कि सुबह देखना हो तो बनारस की देखो, शाम देखना हो तो अवध की देखो, लेकिन शब अर्थात रात देखना हो तो मालवा की देखो। परंतु विकास के नाम पर अब सब कुछ मटियामेट कर दिया गया है। अब गर्मी में रातों को गर्म हवाओं का डेरा रहता है। बारिश में भी सौंधी माटी की सुगंध अब कहां रही।
 
 
विंध्याचल की पर्वत श्रेणियों का अस्तित्व अब खतरे में हैं। बहुत से शहर जहां पर पर्वत, पहाड़ी या टेकरी हुआ करते थे अब वहां खनन कंपनियों ने सपाट मैदान कर दिए है। पर्वतों के हटने से मौसम बदलने लगा है। गर्म, आवारा और दक्षिणावर्ती हवाएं अब ज्यादा परेशान करती है। हवाओं का रुख भी अब समझ में नहीं आता कि कब किधर चलकर कहर ढहाएगा। यही कारण है कि बादल नहीं रहे संगठित तो बारिश भी अब बिखर गई है।
 
 
झाबुआ और जबलपुर के जंगल के नाम पर अब मालवा के पास शेर-हिरण को देखने के लिए राष्ट्रीय पार्क ही बचे हैं। वहां भी अवैध कटाई-चराई और जानवरों की खाल नोंचने का सिलसिला जारी है। अब तो दो शहरों या दो कस्बों के बीच ही थोड़ी बहुत हरियाली बची है जहां भयभीत होकर खड़े हुए हैं वृक्ष।
 
वृक्षों के कटने से पक्षियों के बसेरे उजड़ गए तो फिर पक्षियों की सुकूनदायक चहचहाहट भी अब शहर से गायब हो गई है। अब प्रेशर हॉर्न है जो आदमी के दिमाग की नसों फाड़कर रख देता है। आदमी मर जाएगा खुद के ही शोर से। नर्मदा की घाटी के जंगलों की लगातार कटाई से कई दुर्लभ वनस्पतियां अब दुर्लभ भी नहीं रहीं। जंगल बुक अब सिर्फ किताबी बातें हैं।
 
 
खबर में आया है कि समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है और आने वाले समय में बहुत से तटवर्ती नगर डूब जाएंगे। यदि वृक्षों को विकास के नाम पर काटते रहने की यह गति जारी रही, तो भविष्य में धरती पर दो ही तत्वों का साम्राज्य रहेगा- रेगिस्तान और समुद्र। समुद्र में जीव-जंतु होंगे और रेगिस्तान में सिर्फ रेत।
 
सहारा और थार रेगिस्तान की लाखों वर्ग मील की भूमि पर पर्यावरणवादियों ने बहुत वर्ष शोध करने के बाद पाया कि आखिर क्यों धरती के इतने बड़े भू-भाग पर रेगिस्तान निर्मित हो गए। उनके अध्ययन से पता चला कि यह क्षेत्र कभी हराभरा था, लेकिन लोगों ने इसे उजाड़ दिया। प्रकृति ने इसका बदला लिया, उसने तेज हवा, धूल, सूर्य की सीधी धूप और अत्यधिक उमस के माध्यम से उपजाऊ भूमि को रेत में बदल दिया और धरती के गर्भ से पानी को सूखा दिया। और फिर चला मानव को खतम करने का चक्र। लोग पानी, अन्न और छाव के लिए तरस गए। लोगों का पलायन और रेगिस्तान की चपेट में आकर मर जाने का सिलसिला लगातार चलता रहा। उक्त पूरे इलाके में सिर्फ चार गति रह गई थी- तेज धूप, बाढ़, भूकंप और रेतीला तूफान।
 
यदि यही हालात रहे तो भविष्य कहता है कि बची हुई धरती पर फैलता जाएगा रेगिस्तान और समुद्र।

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

बार-बार पानी पीने से भी न बुझे प्यास, तो आजमाएं 10 घरेलू नुस्खे