Webdunia - Bharat's app for daily news and videos

Install App

इतिहास के इन पौधारोपण से प्रेरणा लेने की जरूरत

Webdunia
- डॉ. ओपी जोशी

भारत जैसे प्रकृति पूजक देश में पर्यावरण पर गंभीर संकट खड़े हैं और इससे निपटने में पौधारोपण एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। जाहिर है इसका समाधान प्रदूषण कम करने के साथ ज्यादा से ज्यादा मात्रा में पेड़ लगाने में है। अमूमन होता यह है कि सरकारें या स्वयंसेवी संस्थाएं जोरशोर से बड़े पैमाने पर पौधारोपण तो करती हैं, लेकिन उनका परिणाम लगभग शून्य ही आता है। 
 
इतिहास के कई उदाहरण बताते हैं कि पौधारोपण का कार्य कितनी भावना, निष्ठा एवं आनंदमयी तरीके से किया जाता था, हमें इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। वर्षाकाल प्रारंभ होते ही देशभर में पौधारोपण के आयोजन होने लगते हैं, जो वृक्ष-रोपण के नाम से ज्यादा प्रचलित हैं। पिछले 10-15 वर्षों में यदि ये आयोजन पेड़ों से लगाव पैदाकर नैतिक जिम्मेदारी से किए जाते तो शायद घटती हरियाली का संकट इतना गम्भीर नहीं होता। ज्यादातर अब ये आयोजन एक वार्षिक त्यौहार की भांति हो गए हैं, जो अपने लोगों को आमंत्रित करने तथा दूसरे दिन फोटो प्रकाशित होने तक सीमित हो गए हैं। हमारी सभ्यता एवं संस्कृति में पेड़ों का विशेष महत्व रहा है एवं वे देवतुल्य माने गए हैं। इतिहास में जाकर देखें तो हमें कई ऐसे उदाहरण मिलते हैं, जहां पौधारोपण का कार्य कितने हर्षोल्लास एवं जिम्मेदारी से किया जाता था। 
 
अग्निपुराण में तो पौधारोपण को एक पवित्र मांगलिक समारोह के रूप में बताया गया है। पौधों को रोपने के पूर्व उन्हें औषधीय पौधों के रस से नहलाया जाता था या कुछ समय के लिए डुबोया जाता था। इसके पीछे भावना यही होती थी कि पौधे में यदि कोई संक्रमण वगैरह हो तो समाप्त हो जावे एवं पौधे से एक स्वस्थ पेड़ बने। इसके बाद शीर्षस्थ भागों पर, जहां से वृद्धि होती है, वहां सोने की सलाई से हल्दी कुंकु लगाकर अक्षत से पूजा की जाती थी। सूर्य जब मेष राशि में हो तब किसी शुभ मुहूर्त में मंत्रोच्चार के साथ रोपित किया जाता था एवं बाद में नियमित देखभाल की जाती थी। 
 
गुजरात के अहमदाबाद पर 52 वर्षों तक शासन करने वाले सुल्तान मेहमद बेगड़ा ने 60 हजार से ज्यादा पौधे रोपकर उन्हें वृक्ष बनाए। बेगड़ा के शासनकाल में वर्षा के दिनों में 15 दिनों तक पौधारोपण का महोत्सव मनाया जाता था। राजा स्वयं अपने परिवार के साथ पौधारोपण स्थल पर रहते थे। शुभ मुहूर्त में खोदे गए गड्ढ़ों में बैंडबाजों की धुन के साथ इमली, चंदन, अशोक, पीपल तथा नीम आदि के पौधे सावधानीपूर्वक रोपे जाते थे। रोपे गए पौधों को सिंचाई हेतु कुएं भी आवश्यकता अनुसार खोदे जाते थे। पौधारोपण के इन दिनों में जनता से किसी प्रकार की कोई कर वसूली नहीं की जाती थी। निजी भूमि पर पौधारोपण हेतु राजकीय कोष से सहायता भी प्रदान की जाती थी। पौधारोपण के इन दिनों में इस कार्य से जुड़े लोगों को भोजन कराया जाता था एवं जरूरतमंदों को वस्त्र भी वितरित किए जाते थे। 
 
सावन माह की अंतिम पूर्णिमा के दिन जब समारोह का समापन होता था, उस समय एक घंटे में अधिक से अधिक पौधे रोपने वाली युवती को 'वृक्षों की रानी', नाम की पद्वी देकर उसका सम्मान किया जाता था। शांति निकेतन में गुरु रविन्द्रनाथ टैगोर द्वारा आयोजित पौधारोपण जीवंतता एवं प्रसन्नता के लिए एक महकता आयोजन बन जाता था। इसी आयोजन के कारण आज शांति निकेतन में सैकड़ों वृक्ष खड़े हैं। गुरुवर स्वयं पेड़-पौधों से परिजन समान प्यार कर बंधुत्व की भावना बनाए रखते थे। 
 
बंगाल में बंग पंचांग का चलन ज्यादा है जिसके तहत बाइशे श्रावण यानी सावन की बाईसवीं तिथि का काफी महत्व है। अतः शांति निकेतन में भी इसी दिन पौधारोपण किया जाता था। गुरुवर ने पौधारोपण पर गीत एवं मंत्र आदि लिखे थे जो आसानी से समझ में आ जाते थे। पौधों का रोपण खुशी का मौका तथा पवित्र अवसर माना जाता था। पौधारोपण के दिन (बाइशे श्रावण) सभी लोग सजधज कर आते थे। लड़के बसंती रंग के कुर्ते व धोतियां पहनकर कमर में दुपट्टा व सिर पर बसंती रंग का ही रूमाल समान कोई कपड़ा बांधते थे। महिलाएं तथा लड़कियां भी बसंती घाघरा व साड़ी पहनकर गले में फूलमालाएं व बालों में गजरे सजाती थीं। सभी लोग एक जगह एकत्र हो फिर एक जुलूस के रूप में नाचते-गाते पूरे परिसर में घूमते। इस जुलूस के पीछे फूल-पत्तियों से सजे पौधों (बाल-तरू) की पालकी लिए पांच बच्चे सफेद पोषाक पहने चलते थे, जो पंचभूत का प्रतिनिधित्व करते थे। 
 
कुछ बच्चे पालकी के आसपास भी चलते जिनमें से कुछ झांझ मजीरे व शंख बजाकर गीत गाते एवं कुछ पौधों पर ताड़ की पत्तियों से चंवर डुलाते। निश्चित स्थानों पर जहां पहले से खोदे गढडे तैयार रहते थे, वहां गीत गाते माटी की गोद में बाल तरू को इस भावना से रोपा जाता था कि धरती की कोख में अपनी विजय पताका फहराओ एवं फलो फूलो। रोपित पौधे की सुरक्षा हेतु बांस का सुंदर कटघरा (ट्री-गार्ड) भी लगाया जाता था एवं आशीर्वाद स्वरूप मांगलिक गाए जाते थे, जिनका तात्पर्य होता था शतायु बनो, तुम्हारी छाया आंगन में बनी रहे एवं पंचभूतों की कृपा हो। शाम के समय संगीत कार्यक्रम से समारोह समाप्त होता था। 
 
शांति निकेतन के इस आयोजन से सम्भवतः प्रेरणा पाकर समाजसेवी बाबा आमटे के महाराष्ट्र में स्थित आनंदवन में भी ऐसा आयोजन होने लगा। आनंदवन से जुड़े लोगों का एक मिलन समारोह प्रतिवर्ष होता था जिसमें कवि, साहित्यकार, नाटककार एवं गायक आदि आते थे। सामाजिक कार्यकर्ता श्री पु.ल. देशपांडे की सलाह पर मिलन समारोह के दूसरे दिन पौधारोपण से जुड़ा बालतरू पालकी यात्रा का कार्यक्रम जोड़ा गया। इस कार्यक्रम में बाहर से आए लोगों के साथ-साथ स्थानीय लोगों को भी शामिल किया गया। रातभर पालकी यात्रा की तैयारी की जाती जिसमें बालतरू के छोटे-छोटे मटके रखे जाते थे। 
 
सभी लोग स्नान कर एवं सजकर आनंदवन के एक छोर पर एकत्र होते एवं वहीं से बालतरू पालकी का जुलूस प्रारंभ होता। आरंभ में आनंदवन में बैंड, फिर भजन गाती टोलियां, अखाड़े तथा सिर पर मंगल कलश लिए महिलाएं होती थीं। इसके पीछे अबीर, गुलाल उड़ाती बालतरू की पालकी चलती थी। बाबा आमटे स्वयं भी बालतरू पालकी उठाते थे। पालकी जुलूस जगह-जगह रूककर बालतरू का रोपण करता जाता था। समाप्ति पर एक शमियाने में एक मंच पर पालकी रख उसका अभिवादन कर सभी लोग बिदा होते थे। इतिहास के ये उदाहरण बताते हैं कि पौधारोपण का कार्य कितनी भावना, निष्ठा एवं आनंदमयी तरीके से किया जाता था। हमें इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। (सप्रेस)
 
(डॉ. ओपी जोशी स्वतंत्र लेखक हैं तथा पर्यावरण के मुद्दों पर लिखते रहते हैं।)

सम्बंधित जानकारी

सभी देखें

जरुर पढ़ें

दीपावली पर 10 लाइन कैसे लिखें? Essay on Diwali in Hindi

फेस्टिव दीपावली साड़ी लुक : इस दिवाली कैसे पाएं एथनिक और एलिगेंट लुक

दीपावली पर बनाएं ये 5 खास मिठाइयां

धनतेरस पर कैसे पाएं ट्रेडिशनल और स्टाइलिश लुक? जानें महिलाओं के लिए खास फैशन टिप्स

दिवाली पर खिड़की-दरवाजों को चमकाकर नए जैसा बना देंगे ये जबरदस्त Cleaning Hacks

सभी देखें

नवीनतम

लाओस, जहां सनातन हिन्दू धर्म मुख्‍य धर्म था, आज भी होती है शिवभक्ति

दिवाली कविता : दीपों से दीप जले

दीपावली पर कविता: दीप जलें उनके मन में

भाई दूज पर हिन्दी निबंध l 5 Line Essay On Bhai Dooj

Healthcare Tips : दीपावली के दौरान अस्थमा मरीज कैसे रखें अपने स्वास्थ्य का ध्यान

આગળનો લેખ
Show comments