Webdunia - Bharat's app for daily news and videos

Install App

जब काग़ज़ के पुर्ज़े ही क़ीमती स्मृति चिन्ह बन जाते हैं!

श्रवण गर्ग
बुधवार, 24 जून 2020 (12:37 IST)
पच्चीस जून ,1975 का दिन। पैंतालीस साल पहले। देश में ‘आपातकाल’ लग चुका था। हम लोग उस समय ‘इंडियन एक्सप्रेस’ समूह की नई दिल्ली में बहादुरशाह ज़फ़र मार्ग स्थित बिल्डिंग में सुबह के बाद से ही जमा होने लगे थे। किसी को समझ में नहीं आ रहा था कि आगे क्या होने वाला है। प्रेस सेंसरशिप भी लागू हो चुकी थी।
 
इंडियन एक्सप्रेस समूह तब सरकार के मुख्य निशाने पर था। उसके प्रमुख रामनाथ गोयंनका इंदिरा गांधी से टक्कर ले रहे थे। वे जेपी के नज़दीकी लोगों में एक थे। उन दिनों मैं प्रभाष जोशी, अनुपम मिश्र, जयंत मेहता, मंगलेश डबराल आदि के साथ ‘प्रजनीति’ हिंदी साप्ताहिक में काम करता था। शायद उदयन शर्मा भी साथ में जुड़ गए थे। जयप्रकाश जी के स्नेही श्री प्रफुल्लचंद्र ओझा ‘मुक्त’ प्रधान सम्पादक थे पर काम प्रभाष जी के मार्गदर्शन में ही होता था।
 
मैं चूंकि जेपी के साथ लगभग साल भर बिहार में काम करके नई दिल्ली वापस लौटा था, पकड़े जाने वालों की प्रारम्भिक सूची में मेरा नाम भी शामिल था। वह एक अलग कहानी है कि जब पुलिस मुझे पकड़ने गुलमोहर पार्क स्थित एक बंगले में गैरेज के ऊपर बने मेरे एक कमरे के अपार्टमेंट में पहुंची तब मैं साहित्यकार रमेश बक्षी के ग्रीन पार्क स्थित मकान पर मौजूद था। वहां हमारी नियमित बैठकें होतीं थीं। कमरे पर लौटने के बाद ही सबकुछ पता चला।
 
मकान मालिक ‘दैनिक हिंदुस्तान’ में वरिष्ठ पत्रकार थे। उन्होंने अगले दिन कमरा ख़ाली करने का आदेश दे दिया। वह सब एक अलग कहानी है। बहरहाल, अगले दिन एक्सप्रेस बिल्डिंग में जब सबकुछ अस्तव्यस्त हो रहा था और सभी बड़े सम्पादकों के बीच बैठकों का दौर जारी था, जेपी को नज़रबंद किए जाने के लिए दिए गए डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के आदेश की कॉपी अचानक ही हाथ लग गई।
 
उस जमाने में प्रिंटिंग की व्यवस्था आज जैसी आधुनिक नहीं थी। फ़ोटोग्राफ़ और दस्तावेज़ों के ब्लॉक बनते थे। जेपी की नज़रबंदी के आदेश के दस्तावेज का भी प्रकाशन के लिए ब्लॉक बना था। मैंने चुपचाप एक्सप्रेस बिल्डिंग के तलघर की ओर रुख़ किया जहां तब सभी अख़बारों की छपाई होती थी। वह ब्लॉक वहां बना हुआ रखा था। मैंने हाथों से उस ब्लॉक पर स्याही लगाई और फिर एक काग़ज़ को उस पर रखकर आदेश की प्रति को निकाल पॉकेट में सम्भाल कर रख लिया।
 
पिछले साढ़े चार दशक से उस काग़ज़ को सहेजे हुए हूं। इस बीच कई काम, मालिक, शहर और मकान बदल गए पर जो कुछ काग़ज़ तमाम यात्राओं में बटोरे गए वे कभी साथ छोड़कर नहीं गए। बीता हुआ याद करने के लिए जब लोग कम होते जाते हैं, ये काग़ज़ के क़ीमती पुर्ज़े ही स्मृतियों को सहारा और सांसें देते हैं। नीचे चित्र में जेपी की नज़रबंदी के आदेश की फ़ोटो छवि। (आज के आपातकाल पर मेरा आलेख कल।)

सम्बंधित जानकारी

सभी देखें

जरुर पढ़ें

इस Festive Season, इन DIY Ubtans के साथ घर पर आसानी से बनाएं अपनी स्किन को खूबसूरत

दिवाली पर कम मेहनत में चमकाएं काले पड़ चुके तांबे के बर्तन, आजमाएं ये 5 आसान ट्रिक्स

दिवाली पर खिड़की-दरवाजों को चमकाकर नए जैसा बना देंगे ये जबरदस्त Cleaning Hacks

जानिए सोने में निवेश के क्या हैं फायदे, दिवाली पर अच्छे इन्वेस्टमेंट के साथ और भी हैं कारण

दीपावली की तैयारियों के साथ घर और ऑफिस भी होगा आसानी से मैनेज, अपनाएं ये हेक्स

सभी देखें

नवीनतम

एक खोया हुआ ख़ज़ाना जिसने लाओस में भारतीय संस्कृति उजागर कर दी

Diwali Recipes : दिवाली स्नैक्स (दीपावली की 3 चटपटी नमकीन रेसिपी)

फेस्टिव दीपावली साड़ी लुक : इस दिवाली कैसे पाएं एथनिक और एलिगेंट लुक

दीवाली का नाश्ता : बच्चों से लेकर बड़ों तक के लिए ये आसान और मजेदार स्नैक्स

Diwali 2024: दिवाली फेस्टिवल पर बनाएं ये खास 3 नमकीन, जरूर ट्राई करें रेसिपी

આગળનો લેખ
Show comments