Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

सैटल होना मतलब आपके लिए क्या है?

सैटल होना मतलब आपके लिए क्या है?
webdunia

स्वरांगी साने

समाज में रुतबा उसी का है जिसके पास बंगला-गाड़ी और खूब सारा पैसा है...तो हमें भी इस दौड़ में हिस्सा लेना ही पड़ेगा। अश्विन ने चलते-चलते ही यह बात कही थी लेकिन बहुत विचारणीय मुद्दा है यह। सामाजिक रुतबा-प्रतिष्ठा पहले भी पैसों से ही आँकी जाती थी और आज भी लेकिन कुछ दशक पहले तक समाज में मान-प्रतिष्ठा-इज़्‍ज़त उनकी भी थी जिनके पास हुनर था, कला थी, जो लिखने-पढ़ने वाले थे, शिक्षक थे या जो मेहनती थे। इन कुछ सालों में इससे कुछ फ़र्क नहीं पड़ रहा कि आप क्या करते हैं या किस तरह पैसा कमाते हैं, बस आपके पास पैसा होना महत्वपूर्ण हो गया है।
 
सैटल होना मतलब आर्थिक स्थिरता से उसका तात्पर्य नहीं होना चाहिए। सैटल या स्थैर्य जब तक मानसिक तौर पर नहीं होगा तब तक बैंक के खाते में पैसा और तिजोरी में रखी ज्वैलरी का कोई औचित्य नहीं है। एक परिचित के सुविधासंपन्न जीवन जीने वाले बेटे ने आत्महत्या कर ली, उसकी वजह केवल पैंडामिक नहीं थी। वैश्विक आपदा तो एक बहाना भर बन गया, जो मानसिक रूप से कमज़ोर थे वे इसमें टूट गए लेकिन जो सशक्त थे वे इस आपदा से भी उबर ही गए न! 
 
फाकापरस्ती में भी सुख से दिन गुज़ार लेने की मानसिकता ही खो गई है..जैसे इस पर मुहर लगाते हुए आयुष ने पूछ ही लिया कि फाकापरस्ती मतलब क्या? सबसे पहला मतलब तो यही समझ आता है कि फाके में दिन गुज़ारना शब्द ही शब्दकोश से गायब हो गया है। नई पीढ़ी के सामने ऐसी नौबत भी नहीं आई और उन्हें उसकी ज़रूरत भी महसूस नहीं हुई। पहले तो फाके खाना मतलब जो मिल जाए उसमें निबाह कर लेना, न मिले तो भूखे सो जाना, पानी पीकर पेट भर लेना, चना-चबैना खा लेना पर शिकवा-शिकायत नहीं करना इसकी समझदारी इस पीढ़ी तक पहुँचाना बहुत ज़रूरी है। नैतिकता-सिद्धांत आदि बातें तो बाद में आएँगी, पहले तो यह जानना होगा कि हम जी क्यों रहे हैं? पैसा कमाने के लिए जीना ही जीना नहीं होता। कबीर वाणी कैसे युवाओं तक पहुँचाई जाए कि ‘सांई इतना दीजिये, जा में कुटुम (कुटुम्ब) समाय, मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय’। जीवन गुज़ारने के लिए जितने धन की न्यूनतम आवश्यकता हो उतना बहुत है बाकी तो लालसाओं का आकाश अनंत है। 
 
बीस-तीस साल पहले तक कक्षा में पहले तीन क्रमांक हासिल करने वाले छात्रों से अपेक्षा होती थी कि वे डॉक्टर, इंजीनियर, आएएस या तत्सम कुछ बनेंगे, सुविधा संपन्न जिएँगे, बाकी के छात्रों से न तो यह उम्मीद थी न उनकी भी ऐसी कोई आशा-आकांक्षा होती थी। अब तो हर क्षेत्र में असीम संभावनाएँ हैं, यह एक अच्छा पहलू है तो इसका दूसरा पहलू भी है कि सबकी महत्वाकांक्षाएँ बढ़ गई हैं। अरब में गधे-घोड़े जैसे एक समान कहलाते हैं वैसा ही हाल हो गया है। हर किसी को पैसा कमाना है। पर क्या पैसा कमाने के बाद सुख मिलने की गारंटी है? ‘सुख मिलना, सुखी रहना’ और ‘पैसा कमाना, पैसा होना’ इन दो चीज़ों को अलग-अलग कर समझना और समझाना भी होगा। गरीबी में भी चैन की नींद ली जा सकती है और डनलप के गद्दों पर भी घोड़े बेच सोने का आनंद नहीं मिल सकता।
webdunia

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

बारिश में डेंगू फैलने से होती है खून की कमी, जानिए कैसे बढ़ा सकते हैं प्लेटलेट्स