Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

हज़ारों किमी दूर बैठे अब्बास की पीएम को याद क्यों आ गई?

हज़ारों किमी दूर बैठे अब्बास की पीएम को याद क्यों आ गई?
webdunia

श्रवण गर्ग

प्रधानमंत्री को लगभग पचास साल पहले वड़नगर (गुजरात) में उनके डेढ़ कमरे वाले मिट्टी और खपरैल के मकान में साथ रहने वाले अब्बास की अचानक ही इतनी भावुकता के साथ याद आ जाने के पीछे क्या कारण हो सकते हैं? वैसे तो पुरानी स्मृतियाँ, सपने और हिचकियाँ पूछकर या अपाइंटमेंट लेकर नहीं आतीं, वे कभी भी आ सकतीं हैं, पर नरेंद्र भाई द्वारा अपने अब्बास भाई को माँ हीराबा के सौवें जन्मदिन पर याद करने का कोई भला-सा कारण तलाश कर पाना मुश्किल हो रहा है। मौक़ा किसी ईद, दीवाली या उत्तरायण का भी नहीं था। साल 2014 में गाँधीनगर से दिल्ली पहुँचने के बाद माँ से मिलने पीएम पहले भी कई बार गुजरात जा चुके हैं।

दुनिया जानती है कि पीएम इस समय एकसाथ कई कामों और चिंताओं से घिरे हुए हैं। 'अग्निवीर' योजना को लेकर देश के अंदर मचे घमासान और नूपुर शर्मा-नवीन जिंदल द्वारा की गई टिप्पणियों के कारण अल्पसंख्यक समुदाय और मुस्लिम मुल्कों में उपजी नाराज़गी का उल्लेख करना ही इस संबंध में काफ़ी होगा। राष्ट्रपति का चुनाव और बाक़ी समस्याएँ अपनी जगह हैं।

इस सबके बावजूद हीराबा के सौवें जन्मदिन पर लिखे गए अपने भावुक ब्लॉग में अब्बास को याद करते हुए पीएम ने लिखा है : वड़नगर के जिस घर में हम लोग रहा करते थे वह बहुत ही छोटा था। उसमें कोई बाथरूम नहीं था, कोई शौचालय नहीं था। कुल मिलाकर मिट्टी की दीवारों और खपरैल की छत से बना वो डेढ़ कमरे का ढाँचा ही हमारा घर था।उसी में माँ-पिताजी, हम सब भाई-बहन रहा करते थे। माँ हमेशा दूसरों को ख़ुश देखकर ख़ुश रहा करती है। घर में जगह भले कम हो लेकिन उनका दिल बहुत बड़ा है।

हमारे घर से थोड़ी दूरी पर एक गाँव था जिसमें मेरे पिताजी के बहुत करीबी दोस्त रहा करते थे। उनका बेटा था अब्बास। दोस्त की असमय मृत्यु के बाद पिताजी अब्बास को हमारे घर ही ले आए थे। एक तरह से अब्बास हमारे घर में रहकर ही पढ़ा। हम सब बच्चों की तरह माँ अब्बास की भी बहुत देखभाल करती थीं।

ईद पर माँ अब्बास के लिए उसकी पसंद के पकवान बनाती थी। त्योहारों के समय आसपास के कुछ बच्चे हमारे यहाँ आकर ही खाना खाते थे।उन्हें भी माँ के हाथ का बनाया खाना बहुत पसंद था। इस बीच एक पत्रकार ज़ुल्फ़िकार तुंवर के साथ सिडनी से बातचीत में अब्बास ने पुष्टि की है कि साल 1973-74 में हीराबा के घर पर रहकर मैट्रिक की परीक्षा वड़नगर से पास की। आगे की पढ़ाई के लिए विसनगर चला गया।

पीएम ने अपने ब्लॉग में ज़िक्र करके अब्बास को रातोंरात एक सेलिब्रिटी बना दिया। गुजरात और बाहर के लोग उनकी तलाश में जुट गए। उन्हें लेकर तरह-तरह की कहानियाँ प्रकट होने लगीं। बाद में उनके फ़ोटो के दावे के साथ जारी हुए एक ट्वीट में एक पत्रकार द्वारा जानकारी दी गई कि गुजरात सरकार के खाद्य और नागरिक आपूर्ति विभाग से सेवानिवृत होने के बाद अब्बास इस समय अपने छोटे बेटे और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ सिडनी (ऑस्ट्रेलिया) में रह रहे हैं।उनका बड़ा बेटा पैतृक गाँव में ही रहता है। सोशल मीडिया पर पैतृक गाँव में बने एक विशाल मकान की तस्वीरें भी प्रसारित हुईं हैं जिसके अब्बास के होने का दावा किया गया है।

उत्सुकता सभी को यह जानने की थी कि गाँधीनगर से दस हज़ार किलोमीटर की दूरी पर सिडनी में बैठे अब्बास को जब खबर पड़ी होगी कि प्रधानमंत्री ने उन्हें अपने बहु-प्रसारित ब्लॉग में याद किया है तो उन्हें किस तरह की अनुभूति या सिहरन महसूस हुई होगी? क्या उन्हें आश्चर्य नहीं हुआ होगा कि अचानक से ऐसा क्या हो गया कि ‘नरेंद्र भाई’ को उनकी इस तरह से याद आ गई कि पचास साल पुरानी व्यक्तिगत जानकारी सार्वजनिक हो गईं! अब्बास का कहना है कि आजकल लोग किसी को याद नहीं रखते ऐसे में नरेंद्र भाई और हीराबा ने मुझे याद किया, यह मेरे लिए गौरव की बात है।

अब्बास की प्रतिक्रिया और उनके एक सेलिब्रिटी बन जाने से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण यह समझना है कि अपने पिताजी के मुस्लिम मित्र के बेटे के बारे में पीएम द्वारा ब्लॉग में दी गई जानकारी का हरिद्वार की ‘धर्म संसद’ के धर्माध्यक्षों और संघ से संबद्ध हिंदुत्ववादी तत्वों पर क्या प्रभाव पड़ा होगा! (अब्बास भाई ने तुंवर से यह भी कहा कि साल 2014 में मैं हज करने गया था।वहाँ से लौटकर हीराबा से मिलने गया था।हीराबा को उस दिन मैंने जन्नतुल फ़िरदौस इत्र और वहाँ से लाया जमजम का पवित्र पानी दिया था।हीराबा बहुत खुश हुईं थीं।

क्या पीएम अपने ब्लॉग के माध्यम से पार्टी और संबद्ध संगठनों के विभाजनकारी तत्वों तक कोई संदेश पहुँचाना चाह रहे थे? नूपुर शर्मा द्वारा पैग़म्बर साहब को लेकर की गई टिप्पणी के बाद धार्मिक रूप से निर्मित हो गए संवेदनशील समय में प्रधानमंत्री का यह खुलासा कि उनके पिताजी के मुस्लिम मित्र का बेटा उनके ही परिवार के साथ रहता और ईद मनाता था मायने रखता है।

पीएम के ब्लॉग में अब्बास को लेकर किए गए उल्लेख और उसी के आसपास राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल द्वारा एक समाचार एजेंसी को दिए गए इंटरव्यू को अगर साथ-साथ पढ़ा जाए तो चीज़ें अलग तरह से नज़र आने लगतीं हैं।इंटरव्यू में एक सवाल के जवाब में डोवाल ने कहा कि नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल द्वारा की गई टिप्पणियों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा को क्षति पहुँची है।

भारत की छवि वास्तविकता से अलग बनाई जा रही है या उसके बारे में ग़लत जानकारी प्रसारित की जा रही है।डोवाल के छोटे से कहे को बड़ा करके देखने से हक़ीक़त को ज़्यादा अच्छे से समझा जा सकता है।सिर्फ़ अनुमान ही लगाया जा सकता है कि अब्बास नामक एक परिचित चरित्र का अपने ब्लॉग में उल्लेख करके क्या पीएम देश और दुनिया के मुसलमानों के दिलों में इमोशनली प्रवेश करने का कोई धर्मनिरपेक्ष रास्ता तलाश कर रहे हैं?

पीएम ने ब्लॉग में अब्बास का ज़िक्र करके इतना भावुक कर दिया है कि दो सप्ताह बाद की जाने वाली अपनी सिडनी यात्रा के दौरान कोशिश रहेगी कि कम से कम फ़ोन पर ही उनसे दुआ-सलाम हो जाए या उनके निवास के इलाक़े का एक चक्कर ही लगा लिया जाए। मुझे पता है कि दोनों ही कोशिशें सफल नहीं होने वाली हैं। ऑस्ट्रेलिया में नागरिकों की निजता का हरेक स्तर पर सम्मान किया जाना ज़रूरी माना जाता है।

बरसों पहले गुजरात में रहते हुए अपनी वडोदरा यात्रा के दौरान मैंने 2002 के दंगों में जलाई गई हनुमान टेकरी क्षेत्र स्थित बेस्ट बेकरी ढूँढी थी और साथ ही मांडवी के पुराने इलाक़े की उस जुम्मा मस्जिद भी गया था जिसके डेढ़-दो कमरों के तंग घर में मशहूर क्रिकेटर भाई इरफ़ान और यूसुफ़ पठान अपने माता-पिता और बहन के साथ रहते थे।इरफ़ान के पिता ने मुझे घर के साथ-साथ पूरी मस्जिद भी दिखलाई थी। उन्होंने अपने छोटे से घर के बाहर ही बरामदे में रखी उस छोटी सी अलमारी से भी रूबरू करवाया था जिसमें इत्र की शीशियाँ ख़ूबसूरती के साथ जमाकर रखी हुईं थीं।

मस्जिद की सफ़ाई और उसके रखरखाव से उन दिनों मिलने वाली दो-ढाई सौ रुपए महीने की राशि और इत्र की शीशियों की बिक्री से प्राप्त होने वाले धन से ही तब पठान परिवार का काम चलता था।पीएम के ब्लॉग में अब्बास का ज़िक्र पढ़ते हुए मेरी आँखों के सामने वडोदरा के शेख़ परिवार की ‘बेस्ट बेकरी’ और पठान भाइयों को महान क्रिकेटर बनाने वाली जुम्मा मस्जिद के चित्र तैरने लगे थे।

अब्बास ने पत्रकार तुंवर को यह भी बताया कि मैं जब हीराबा के घर रहा उससे पहले से ही नरेंद्र भाई घर पर नहीं रहते थे इसलिए उनके साथ बहुत मिलना नहीं हुआ। (इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

विजयसार की लकड़ी के Health Benefits आपको आश्चर्य में डाल देंगे, diabetes और blood pressure का करती है इलाज