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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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शब्द उल्लास में आज का शब्द 'उजास' : जलता रहे आशा का दीया, फैलता रहे प्रकाश

शब्द उल्लास में आज का शब्द 'उजास' : जलता रहे आशा का दीया, फैलता रहे प्रकाश

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शब्द उल्लास वेबदुनिया की अभिनव श्रृंखला है। इसमें एक किसी सरल, सकारात्मक  और सार्थक शब्द को केन्द्र में रखकर उसकी व्याख्या की जाती है। इस श्रृंखला का उद्देश्य समाज में फैल रहे नकारात्मक, निरर्थक और नफरत फैलाने वाले शब्दों को प्रचलन से बाहर करना और अच्छे शब्दों को हर मानस तक पंहुचा कर मीडिया की महती भूमिका का निर्वहन करना है। रोशनी और ज्योति का पर्व नजदीक है आइए आज हम चुनते हैं शब्द उजास को.... 
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उजास यानी उजला प्रकाश, उजास यानी उजाला, जगमगाहट, झिलमिलाहट,प्रकाश पुंज जिसमें दिव्यता है, चमक है, चकाचौंध है, चमत्कार है। प्रकाश, उजाला, कांति, आभा, चमक, दमक...light, radiance, shine, glitter... 
 
उजास शब्द के साथ ही हमारे मानस में सबसे पहले एक प्रकाश पुंज फैलता है फिर आते हैं बहुत सारे शब्द जो प्रकाशयुक्त है, प्रकाशपूर्ण, दीप्तिपूर्ण, प्रकाशमान, आलोकित, ज्योतित, उजियार, उजियारा, उजियाला, उजेरा, उजेला, उजीता.... 
 
परिभाषा देने जाएं तो वह शक्ति या तत्व जिसके योग से वस्तुओं आदि का रूप आंख को दिखाई देता है : सूर्य के उदित होते ही चारों ओर प्रकाश फैल गया"
 
यह तो बात हुई शब्द उजास की लेकिन इस बहाने सोचें कि ऐसे कितने शब्द हैं जिन्हें सुनते ही हमारे भीतर उजाला फूट पड़ता है। रोशन रोशन किरणें जगमगाने लगती हैं। हमें समाज में इन्हीं किरणों का जाल बिछाना है और नफरत, हिंसा और मलीनता के अंधेरों को काटना है।  
 
उजास शब्द को कल्पना के साथ भीतर उतारिए दीप दीप दीए को देखकर, नारंगी दिव्य सूर्य को देखकर,शीतल सौम्य चंद्रमा को देखकर...जैसे अंधेरे कमरे में खिड़की के खोलते ही भर जाता है उजास कोने कोने में ऐसे ही मन, मस्तिष्क,दिल-दिमाग, आचार-विचार,आचरण, सोच, संस्कार, व्यवहार,व्यक्तित्व, वाणी सब में उजास शब्द को सुनते ही भर लीजिए खूब चमकदार अहसास-अनुभूति को अपने भीतर... जब भीतर उजाला होगा तो बाहर भी वही आएगा, झरेगा, बहेगा और दिखेगा....
 
 प्रकाश, आलोक, उजाला, ज्योति, दीप्ति, रोशनी, चमक, ओज, कांति जैसे शब्द अपने जीवन में उनके अर्थों के साथ शामिल कीजिए, आपकी भाव सरिता से जो सीपियां निकलेगीं समाज में उनसे ही चमचमाते शब्दों के मूल्यवान मोती आएंगे... यह दायित्व किसी एक का नहीं हम सबका है कि समाज को निरंतर स्वस्थ, सुंदर और सुव्यवस्थित बनाने के लिए शब्दों की महत्ता को समझें और समझाएं.... ताकि बंद ना भी हो सके तो कम तो हो हिंसा,छल, कपट, अवसाद, धोखा, चालाकी और उग्रता, व्यग्रता जैसे कुत्सित भाव, शब्द और उनके अर्थ... 
 
दीपों का पर्व हमें संदेश देता है। भव्य जगमग झिलमिलाहट के बीच भी एक दीये की छबि सबसे अलग सबसे पवित्र है, उसी तरह उजास शब्द भी दीप की भांति शब्दों के राजमहलों के बीच अपनी एक अनूठी पहचान बनाता है। दीये के पास जो आत्मविश्वास है तूफानों के बीच भी जलने का, अडिग रहने का, झिलमिल झिलमिल मुस्कुराने का तो उसकी बहुत बड़ी वजह है उससे प्रस्फुटित होने वाला उजास...उजियारा, उज्वलन, दीप्ति, दमक, ज्योति, तेज, द्युति, आभा, प्रभा, रौनक, कान्ति, जगमगाहट, नूर, ताब, प्रदीप, द्युतिमा....
 
यही रोशनी मन के अंधेरों का नाश करती है... और उसी तरह अच्छे शब्दों की निरंतरता समाज के अंधेरों से निपटने में सहायक होगी...
 
आइए समाज से चुनकर लाएं अच्छे शब्दों की प्रदीप्ति और प्रयोग करें हर दिन, हर पल, बार-बार लगातार ये शब्द चाहे वह उल्लास हो, उम्मीद हो या आस्था....रूकनी नहीं चाहिए, चलती रहना चाहिए यह शब्दों की गरिमामयी गाथा...  उजास-इस शब्द के साथ एक ही आस, जलता रहे दीया, फैलता रहे प्रकाश....    

शब्द,
यह तुम्हारा ही नूर है जो आ रहा है चेहरे पर 
वरना कौन देखता अंधेरों में हमें..... 

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