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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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बेटों के लिए वर्षों से तरसती माँ! (वीडियो)

बेटों के लिए वर्षों से तरसती माँ! (वीडियो)

कीर्ति राजेश चौरसिया

छतरपुर (मध्य प्रदेश)। माँ आखिर माँ होती है और माँ सा दुनिया में दूसरा कोई नहीं होता। प्रत्‍येक व्‍यक्ति के जीवन में माँ का जिक्र लाजमी है। जिला अस्पताल छतरपुर में भर्ती एक वृद्धा अपने बच्चों के लिए बिलख यही है, जिसका रो-रो कर बुरा हाल है। वह अपने बच्चों को देख़ने के लिए तड़प और तरस रही है।


हम बात कर रहे हैं जिला अस्पताल छतरपुर में भर्ती एक 75-80 वर्षीय वृद्धा की जो पिछले 7 वर्षों से वृद्धाश्रम में रह रही है। वह बीमारी के चलते जिला अस्पताल के ट्रॉमा वार्ड में भर्ती है। यह वृद्धा अपने बच्चों के लिए बिलख यही है, जिसका रो-रो कर बुरा हाल है। वह अपने बच्चों को देख़ने के लिए तड़प और तरस रही है।
वृद्धा शांति सोनी का कहना है कि वह गंभीर बीमार थी बावजूद इसके वृद्धाश्रम वाले उसका इलाज नहीं करा रहे थे, बल्कि बीमारी का बताने पर वह दुत्कार देते हैं और कहते हैं कि हम तुम्हें खिला-पिला रहे हैं बस इतना ही काफी है। बीमारी का इलाज कराना हमारा कोई काम नहीं है।

यही कारण है अब वह खुद वृद्धाश्रम से निकलकर जिला अस्पताल परिसर में में बने मंदिर तक जा पहुंची, जहां मरणासन्न और बेहोशी की हालत में उसे देख अस्पताल के कर्मचारी रोहित सोनी को तरस आ गया, जहां उसने वरिष्‍ठ अधिकारियों के सान्निध्य में महिला को अस्पताल में भर्ती कराया, जिससे वह बमुश्किल बच सकी।

कर्मचारी रोहित सोनी का कहना है कि अस्पताल में भर्ती शांतिबाई पिछले कई वर्षों से वृद्धाश्रम में रह रही है। उसके 2 बेटे भी हैं पर उसे कभी कोई देखने तक नहीं आया, वह बीमार है और ज़िन्दगी की दुआएं मांग रही है, बावजूद उसका कोई नहीं है, वह अपने बेटों की एक झलक के लिए तरस रही है।

वृद्धा शांति बाई का कहना है कि उसके बेटे तो उसे रखना भी चाहते हैं, लेकिन बहू की वजह से नहीं रह पाती है। एक बार बेटों ने मुझे रखा भी तो बहू कुएं में गिर गई थी। बहू बेटों से कहती है कि अगर तुमने अपनी माँ को अपने साथ रखा तो मैं फिर से कुँए में गिर जाऊंगी, इसलिए अब मुझे अपने बेटों के पास नहीं रहना (सिर्फ उन्हें देखना भर है) मुझे बुढ़ापे में डंडे नहीं खाना, न ही जेल जाना है। मेरी बहू बहुत खतरनाक है।

मामला चाहे जो भी हो पर इस महिला की तरसती और डबडबाई आंखें अपने बच्चों को दिल से पुकार रही हैं, पर बच्चे हैं कि पत्नियों के डर से माँ से मिलने और आने का नाम ही नहीं ले रहे, जो कि वर्षों से इसी तरह  रो-रो कर ज़िन्दगी गुज़ार रही है।

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