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सफाई इंदौर के डीएनए में है, देश का सबसे स्‍वच्‍छ शहर बनने के लिए जरूरी है ‘इंदौरी’ होना

नवीन रांगियाल
- इंदौर. एक शहर के कायाकल्प की कहानी।
- कैसे इंदौर पांचवीं बार बना देश का सबसे स्वच्छ शहर।
- आज सफ़ाई इंदौरी आदमी के डीएनए और आदत में है।
 - इंदौर में सफाई के लिए दिन रात 12,000 लोग काम करते हैं।
- सफाई के लिए प्रशासन के साथ ही 600 एनजीओ का सहारा लिया गया।


यह उस इंदौर की बात जो देश का सबसे स्वच्छ शहर है। जो सपनों का शहर है। जिस शहर में हम सांस लेते हैं, और जिसे हम सांस देते हैं।

इंदौर लिटरेचर फेस्‍ट‍िवल में ‘एक शहर का कायाकल्प’ नाम से आयोजित सत्र में प्रवीण शर्मा ने नगर निगम अपर आयुक्‍त संदीप सोनी से इंदौर के स्‍वच्‍छ होने की कहानी पर विस्‍तार से चर्चा की। इस बातचीत का उदेश्‍य यह था कि कैसे आखिर इंदौर देश का सबसे स्वच्छ शहर बना। कितने लोगों ने खुद को इसके लिए झोंका और इसके पीछे की वास्‍तविक कहानी है क्या?

इंदौर नगर निगम के अपर आयुक्त संदीप सोनी ने बताया कि साल 2000 के पहले का इंदौर हम सब ने देखा हुआ है। चारों तरफ गंदगी और कचरा हुआ करता था। लेकिन आज इंदौर के हर नागरिक ने स्वच्छता का पंच लगाया है। देशभर में इंदौर एक मॉडल, एक गौरव है।

उन्‍होंने बताया कि कुछ साल पहले सिस्टम की कमी थी, सफाईकर्मी नहीं थे, न ही वैसी प्रक्रिया थी। लेकिन इंदौर प्रशासन ने सिस्टम को बदला। वाहन खरीदे, डोर टू डोर पहुंचने का सिस्टम बनाया गया।

आज हर घर के सामने सुबह साढ़े 8 बजे वाहन में गाना बजता है तो लोग समझ जाते हैं कि कचरा निकालना है। इसमें सिस्टम की तो सफ़लता है ही, इंदौरी लोगों का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है।

उन्‍होंने सत्र में कहा, हमने डोर टू डोर से घर का कचरा उठाना और लिटरबिन का इस्तेमाल करना लोगों को सिखाया।

- सफाईकर्मी से कैसे काम लिया?
इस सवाल के जवाब में उन्‍होंने कहा, हमने सफाईकर्मी को सफाई मित्र, और सफाई दीदी में तब्दील किया। उन्हें सम्मान दिया। आज देश के दूसरे शहरों में भी सफाई मित्र और सफाई दीदी शब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
उन्‍हें बताया गया कि कैसे अनुशासन में रहना है, प्राथमिकता तय करना है, कैसे झाड़ू लगाना है, कैसे पूरे शहर को एक योजनाबद्ध तरीके से साफ करना है। हमने सफाईकर्मी को नियंत्रित किया, कड़ाई भी बरती। और उन्हें मोटिवेट भी किया। दूसरी तरफ यूनियन की मदद ली गई।

- कैसे 2015 में अभियान शुरू हुआ?
संदीप सोनी ने बताया कि तब के कमिश्नर मनीष सिंह ने जो सिस्टम बनाया उसे जारी रखा। हमने नींद, खाने तक के सिडयूल बदल दिए।

रात को भी कचरा वाहन चलाए गए, जब लोग सो रहे होते हैं उस वक्‍त रात को 3 और 4 बजे हज़ारों लोग इंदौर की सड़कों पर सफ़ाई करते हैं। सफाई के लिए 12 हज़ार लोग काम करते हैं। कई लोग तो 24 बाय 7 काम करते हैं।

कचरे की सफाई, ड्यूटी और पूरे शहर की आदत को बदलने के लिए हमारे सामने चुनौती भी आई। लेकिन हमने प्रशासन के साथ इंदौर, इंदौर के नागरिकों और आसपास के 600 एनजीओ और कई लोगों का सहारा लिया।

सूखे कचरे और गीले कचरे के निपटान के लिए योजना बनाई, दोनों को अलग अलग किया। इसके लिए 150 करोड़ का प्रोजेक्ट काम कर रहा है। सभी तरह के वेस्ट को खत्म किया, उसका री- यूज़ किया। नाले नदी के कचरे को ट्रेप किया, उसे बाहर निकाला। उसके लिए व्यवस्था की गई।

आज़ाद नगर, चंदन नगर जैसे इलाको को ट्रेस किया, उन्हें अलग तरह से ट्रीट किया और आज जहां कचरा और गंदगी हुआ करती थी वहां लोग फुटबॉल और क्रिकेट खेलते हैं।

आज इंदौर दूसरे शहरों के लिए ब्रांड है, इंदौर का मॉडल दूसरे शहर अपना रहे हैं। दरअसल सफाई छोटा सा पार्ट है, लेकिन गार्डन, सड़कें, ट्रंचिंग प्लांट सबको देखा जाता है।

यह चर्चा इंदौर लिटरेचर फेस्‍ट‍िवल के तीसरे और अंतिम दिन हुई। जिसमें कई नागरिकों, लेखक, साहित्‍यकारों और कवियों ने हिस्‍सा लिया।

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