रिपोर्ट आमिर अंसारी
भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए तीसरे चरण का लॉकडाउन लागू है। हालांकि तीसरे चरण में कुछ रियायतें दी गईं लेकिन आशंका जताई जा रही है कि जून और जुलाई में बीमारी चरम पर पहुंच सकती है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय संस्था के आकलन में यह दावा किया गया है कि देश में जून-जुलाई में कोरोना वायरस के संक्रमण के मामले बढ़ सकते हैं, लेकिन यह सिर्फ आकलन भर है। उनके मुताबिक जो रुझान हैं, उससे तो यही लगता है कि मामले बढ़ेंगे।
डॉ. गुलेरिया ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि हालांकि अनुमान मई से अगस्त के बीच बदलते रहे हैं और यह मॉडलिंग डाटा के मुताबिक उपयोग किए जाने वाले मापदंडों के आधार पर बदलते रहते हैं और जिस तरह से हमारे यहां मामले फिलहाल बढ़ रहे हैं, उनके हिसाब से यह संभव है कि हमारे यहां मामला जून-जुलाई में चरम पर जा सकता है। साथ ही उन्होंने कहा है कि इसको कई चीजें प्रभावित करती हैं और सटीक अनुमान लगाना कठिन है।
डॉ. गुलेरिया कोविड-19 विशेषज्ञ टीम में भी शामिल हैं। नोएडा स्थित जेपी अस्पताल के डॉ. गौरव राठौर कहते हैं कि आने वाले महीनों को लेकर जो अनुमान लगाए जा रहे हैं, वे कई फैक्टरों पर निर्भर करते हैं और कई वैरिएबल्स ऐसे हैं, जो बदलते रहते हैं। भारत में टेस्टिंग की प्रक्रिया भी अच्छी है और ऐसे लोगों का टेस्ट हो रहा है, जो किसी के संपर्क में आए हैं। उनके मुताबिक टेस्ट ज्यादा हो रहे हैं और मामले अधिक सामने आ रहे हैं।
लॉकडाउन का असर
डॉ. राठौर के मुताबिक भारत में अमेरिका की तुलना में हालात ज्यादा अच्छे हैं और यहां सही समय पर लॉकडाउन लगाया गया। वे कहते हैं कि लॉकडाउन के लागू होने से इस बात का बहुत फायदा यह हुआ कि इतनी बड़ी आबादी को कोरोना वायरस के बारे में पता चल गया। सरकार और अस्पतालों को लॉकडाउन के पहले चरण को लागू करते ही 3 हफ्ते की मोहलत तैयारियां करने को लेकर मिल गईं। लेकिन कई मामलों में नाकामी भी दिखी, जैसे कि पीपीई किट मामले में हमने देखा।
25 मार्च को जब लॉकडाउन का पहला चरण लागू हुआ तो भारत में कोविड-19 के केस 600 से थोड़े अधिक थे और 13 लोगों की ही मौत हुई थी। लेकिन 12 मई तक की बात करें तो कोरोना पॉजिटिव केस 70,768 के करीब हैं और इस महामारी के कारण 2294 लोगों की मौत हो चुकी है।
डॉ. गुलेरिया के मुताबिक नए मामलों का पता इसलिए चल रहा है, क्योंकि जांच में तेजी आई है। उनके मुताबिक लॉकडाउन के कारण संक्रमण की रफ्तार को कम करने में मदद मिली है। हालांकि ग्राफ नीचे आना चाहिए था फिर भी पॉजिटिव केस बढ़े हैं। उनका सुझाव है कि हॉटस्पॉट इलाके में आक्रामक तरीके से अभियान चलाया जाए तो संक्रमण को रोका जा सकता है।
दूसरी ओर डॉ. राठौर कहते हैं कि इटली में लोग तो कोरोना को लेकर कितने गंभीर थे, यह वहां के आंकड़ों को देखकर ही पता चलता है। लेकिन वे साथ ही कहते हैं कि लॉकडाउन हमारे देश में हमेशा के लिए नहीं रह सकता है। डॉ. राठौर कहते हैं कि लॉकडाउन के बाद हालात थोड़े गंभीर हो सकते हैं। पौष्टिक खाने की कमी और इम्युनिटी के कारण बीमारी से लड़ने की क्षमता कमजोर हो सकती है।
लॉकडाउन और बीमारी का भय लोगों के दिल और दिमाग पर भी गहरा असर कर रहा है। दिल्ली स्थित सर गंगाराम अस्पताल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सीएस अग्रवाल के मुताबिक सामाजिक आइसोलेशन की वजह से दिमाग में एक तरह का भटकाव आ जाता है, लॉकडाउन की वजह से घर में रहते-रहते उदासी व घबराहट की समस्या बढ़ी है। यह समस्या सभी के साथ हुई। किशोरों और वयस्कों के बीच यह समस्या अधिक है, क्योंकि उनको उस तरह का माहौल नहीं मिल पा रहा है, जैसा कि लॉकडाउन के पहले मिल रहा था।
डॉ. अग्रवाल के मुताबिक रूटीन लाइफस्टाइल को बदलना चाहिए और जीवन में भागने की रफ्तार को थामना चाहिए। वे सलाह देते हैं कि अपने रूटीन को बेहतर करने का यही वक्त है। अगर भविष्य में ऐसी स्थिति दोबारा पैदा होती है तो लोग वातावरण के मुताबिक खुद को ढाल पाएंगे। उनके मुताबिक योग भी इस समस्या का हल हो सकता है। दूसरी तरफ डॉ. गुलेरिया ने एक न्यूज चैनल से बात करते हुए कहा कि सामाजिक दूरी की वजह से लंबे समय के लिए लोगों की जीवनशैली बहुत बदलने वाली है।
देश में तीसरे चरण का लॉकडाउन चल रहा है और यह 17 मई को समाप्त हो जाएगा। फिलहाल स्कूल, कॉलेज तो पूरी तरह से बंद हैं और लोग लॉकडाउन के खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं। हालांकि स्वास्थ्य विशेषज्ञ आगाह करते हैं कि लॉकडाउन के बाद भी जनता को बेहद सावधानी से अपनी जिंदगी चलानी होगी।