पहले से ही तुर्की और आसपास के क्षेत्र में बड़े भूकंप का अंदेशा था। 2021 में भी एक फॉल्ट लाइन में असामान्यता देखे जाने की चेतावनी दी गई थी। अंदेशा जताया गया कि यह लाइन टूट सकती है और भूकंप आ सकता है। भारत पर भूकंप का ख़तरा मंडराया हुआ। सरकार को इस ओर भी ध्यान देना होगा।
तुर्की और सीरिया में आए भूकंप में मारे गए लोगों की संख्या 19 हजार से ज्यादा हो गई है। तुर्की की आपदा प्रबंधन एजेंसी ने बताया कि 28,000 से ज्यादा लोगों को भूकंप प्रभावित इलाकों से बाहर निकाला जा चुका है।
6 फरवरी को आए दो मुख्य भूकंपों के बाद से अब तक 1,000 से ज्यादा आफ्टरशॉक आ चुके हैं। राहत और बचाव कार्य की धीमी रफ्तार के बीच एक बड़ी चिंता भूकंप में अनाथ हुए बच्चों से जुड़ी है। स्थानीय रिपोर्टों के मुताबिक दर्जनों ऐसे अनाथ हो चुके बच्चे अस्पतालों में भर्ती हैं। तुर्की की परिवार और सामाजिक सेवा मंत्रालय ने ऐसे बच्चों की मदद के लिए हॉटलाइन सेवा शुरू की है और लोगों से मदद मांगी जा रही है।
टेक्टोनिक प्लेटों की हलचल
बड़ी इमारतों के कमजोर ढांचे और भूकंपरोधी निर्माण की कमी के अलावा हादसे की गंभीरता की एक बड़ी वजह जमीन के भीतर प्लेट्स में हो रही गतिविधियां हैं। तुर्की 4 भूगर्भीय टेक्टोनिक प्लेट्स के इंटरसेक्शन पर बसा है। ये चारों प्लेट हैं- अनातोलियन, अरेबियन, यूरेशियन और अफ्रीकन प्लेट्स। इसके कारण तुर्की भूकंप संभावित बेहद सक्रिय जोन का हिस्सा है।
जानकारों के मुताबिक अरेबियन प्लेट उत्तर की ओर बढ़ रही है और अनातोलियन प्लेट से टकरा रही है। अरेबियन प्लेट 20 मिलीमीटर सालाना की अनुमानित रफ्तार से अनातोलियन प्लेट की ओर बढ़ रही है। अनातोलियन प्लेट में उत्तर और पूरब की ओर दो प्रमुख फॉल्ट जोन हैं।
भूविज्ञान में दो बड़ी चट्टानों के बीच एक किस्म की दरार या दरार के क्षेत्र को फॉल्ट जोन कहा जाता है। इन फॉल्ट्स के कारण दोनों ब्लॉक एक-दूसरे के सापेक्ष गति करते हैं। इस गतिविधि की रफ्तार तेज भी हो सकती है, जिसके चलते भूकंप आता है।
उत्तरी अनातोलियन फॉल्ट को जानकार सबसे ज्यादा विनाशकारी मानते रहे हैं क्योंकि यह अनातोलियन और यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेट्स के मिलन बिंदु पर पड़ता है। पिछली एक सदी में यहां आए ज्यादातर बड़े भूकंप उत्तरी अनातोलियन फॉल्ट के ही पास आए हैं। भूकंप का केंद्र इसी फॉल्ट के पास नुरदागी शहर से करीब 26 किलोमीटर पूर्व में जमीन में लगभग 18 किलोमीटर की गहराई पर था।
भूकंप के इलाके में बढ़ता दबाव
दूसरी ओर पूर्वी फॉल्ट के पास दबाव बढ़ तो रहा था, लेकिन पिछले करीब 100 साल से यहां असामान्य रूप से काफी शांति थी। अब 6 फरवरी को तड़के तुर्की-सीरिया में आया 7.8 तीव्रता वाला भूकंप और इसके नौ घंटे बाद आया 7.5 तीव्रता का भूकंप के बाद का झटका, दोनों पूर्वी अनातोलियन फॉल्ट जोन में केंद्रित थे। उत्तर की ओर खिसक रहे अरेबियन प्लेट के अनातोलियन प्लेट में घर्षण को इसका कारण बताया जा रहा है।
भूविज्ञानियों के मुताबिक, टेक्टोनिक प्लेट्स में हो रही हलचल और शिफ्टिंग के कारण तुर्की का भूभाग दब रहा है। अरबी इलाका धीरे-धीरे उत्तर की ओर बढ़ते हुए तुर्की से टकरा रहा है और तुर्की पश्चिम की ओर खिसक रहा है। टेक्टोनिक प्लेट्स में तब्दीली और प्लेट्स के घर्षण के कारण पहले भी कई बड़े भूकंप आ चुके हैं। ऐसे ही एक भूकंप ने 1,138 में सीरिया के प्राचीन शहर अलेप्पो को समतल कर दिया था। इस भूकंप में दो लाख से ज्यादा लोग मारे गए थे।
लंबे समय से थी बड़ा भूकंप आने की आशंका
भूकंपविज्ञानी लंबे समय से इस क्षेत्र में बड़ा भूकंप आने का अंदेशा जता रहे थे। विशेषज्ञों ने बताया था कि इस्तांबुल के तीन जिलों के समुद्रतट से होकर गुजरने वाली एक फॉल्ट लाइन में काफी असामान्यता देखी जा रही है। अंदेशा जताया गया कि यह लाइन टूट सकती है और भूकंप आ सकता है।
बोआजिचे यूनिवर्सिटी स्थित कंदिल्ली ऑब्जर्वेटरी और भूकंप शोध संस्थान के निदेशक प्रोफेसर हाइलुक ओजनर और ऑब्जर्वेटरी के क्षेत्रीय भूकंप-सुनामी ट्रैकिंग सेंटर के निदेशक दोगान कलाफात ने 2021 में बताया था कि उनके द्वारा जमा किए गए आंकड़े बताते हैं कि एक बड़े इलाके के बीच का हिस्सा, जहां से फॉल्ट लाइन आड़ी-तिरछी होकर गुजरती है, वह किसी आगामी भूकंप का केंद्र हो सकता है।
इन विशेषज्ञों ने 'मिलियत' अखबार से बातचीत में कहा था कि भविष्य में कम-से-कम रिक्टर स्केल पर 7 तीव्रता का भूकंप आएगा और इसके मद्देनजर बस इतना किया जा सकता है कि नुकसान को कम-से-कम करने के प्रयास किए जाएं।
भारत को भी देना होगा ध्यान
भारत में भी खास हिमालयी क्षेत्र में बड़े भूकंप का अंदेशा है। ऐसे में जानकार लंबे समय से निर्माणकार्य को भूकंपरोधी बनाने पर ध्यान देने की सलाह दे रहे हैं। निर्माण सामग्री तो दूर, ऊंचे पहाड़ी शहरों में भी कई जगहों पर इमारतों की ऊंचाई से जुड़े नियमों पर ध्यान नहीं दिया जाता। यहां तक कि राजधानी दिल्ली में भी ज्यादातर इमारतें भूकंप सुरक्षा के मुताबिक नहीं हैं। भूकंप की संवेदनशीलता के लिहाज से 4 जोन हैं, जिनमें पांचवां जोन सबसे ज्यादा सक्रियता वाला क्षेत्र माना जाता है।
विज्ञान और तकनीक मंत्रालय में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने 2022 में लोकसभा में जानकारी दी थी कि भारत का करीब 11 फीसदी हिस्सा 5वें जोन में आता है। इस अति-संवेदनशील क्षेत्र में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, बिहार, उत्तरपूर्वी राज्य और अंडमान-निकोबार के हिस्से शामिल हैं।
दिल्ली समेत लगभग 18 प्रतिशत भूभाग चौथे जोन में, 30 फीसदी क्षेत्र तीसरे जोन और बाकी दूसरे यानी सबसे कम जोखिम वाले हिस्से में आते हैं। 2019 में 'इंडिया टुडे' ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि दिल्ली नगरपालिका और भूकंप विशेषज्ञों का मानना है कि भूकंप का तगड़ा झटका आने की स्थिति में राजधानी की लगभग 90 फीसदी इमारतों पर जोखिम होगा।
तुर्की और सीरिया में आए भूकंप से हजारों इमारतें ढह गई हैं। अकेले तुर्की में ही करीब साढ़े छह हजार इमारतें तबाह हो गई हैं। इमारतों के मलबे में दबकर और फंसकर कई लोग मारे गए हैं। भूकंप विज्ञानियों का कहना है कि जानमाल का नुकसान कम करने के लिए लोगों में जागरूकता और भूकंपरोधी निर्माण को तरजीह देना जरूरी है।