Webdunia - Bharat's app for daily news and videos

Install App

यूपी में नई शुरुआत से क्या संस्कृत के दिन बहुरेंगे

Webdunia
शुक्रवार, 21 जून 2019 (11:55 IST)
उत्तर प्रदेश सरकार ने एक महत्वपूर्ण फैसले में राज्य में सरकारी प्रेस विज्ञप्तियां अब संस्कृत भाषा में भी जारी करने की शुरुआत कर दी है। ऐसा पहली बार हो रहा है कि संस्कृत में प्रेस नोट जारी किये जा रहे हैं। इससे पहले सरकारी प्रेस नोट सिर्फ हिंदी, इंग्लिश और उर्दू में जारी होते थे।
 
 
सरकार अपने इस कदम को लेकर बहुत आशान्वित है। सहायक सूचना निदेशक दिनेश कुमार गर्ग के अनुसार सरकार का मंतव्य है कि संस्कृत बोलने और जानने वाले लोगों तक सरकार की उपलब्धियां पहुंचे। गर्ग ने बताया, "जैसे अन्य भाषा बोलने वाले को उस भाषा में जानकारी मिल रही है उसी तरह जो संस्कृत भाषा बोलते और पढ़ते हैं उन तक भी सरकार अपनी बात पहुंचाना चाहती है। उनको भी ये लगना चाहिए कि शासन उनका भी है और उनकी भाषा में सब बताया जा रहा है।”
 
 
फिलहाल मुख्यमंत्री सूचना परिसर से संस्कृत के प्रेस नोट का वितरण हो रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सरकार ने इसकी तैयारी पहले भी की थी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भाषण का संस्कृत अनुवाद करवा कर के चुनिंदा लोगों तक भेजा गया था। गर्ग बताते हैं,”अभी तो शुरुआत है। धीरे धीरे लोगों को जानकारी होगी। अभी तो कुछ ही लोगों तक पहुंच पा रहा है। कोशिश है कि वाराणसी में संस्कृत विश्वविद्यालय में इसका प्रचार प्रसार कराया जाये। वहां लगभग पचास हजार छात्र विभिन्न कॉलेजों में हैं जो संस्कृत पढ़ते हैं। अगर उन तक पहुंच गए तो बहुत बड़ी बात होगी। उनको भी शासन की जानकारी उनकी भाषा में होगी।”
 
 
संस्कृत प्रकाशकों का हाल
गर्ग के अनुसार बहुत पहले एक संस्कृत अखबार 'गांडीवम' वाराणसी से निकलता था। उसके बारे में पता किया जा रहा है। दक्षिण भारत के जिन राज्यों में संस्कृत भाषा प्रचलित है उनसे भी यूपी सरकार संस्कृत में प्रेस नोट के लिए संपर्क करने की कोशिश कर रही है। हालांकि इस तरह की योजना से संस्कृत के अखबार संपादक बहुत उत्साहित नहीं है।
 
 
लखनऊ से संस्कृत में युग जागरण साप्ताहिक निकालने वाले संपादक अनिल त्रिपाठी कहते हैं, "सरकार द्वारा प्रेस नोट को संस्कृत भाषा में जारी करने से कुछ नहीं होगा। आप बताइये, जब संस्कृत भाषा कोई पढ़ेगा नहीं, जानेगा नहीं, तो फिर प्रेस नोट से क्या फायदा। आप संस्कृत भाषा को बढ़ाएं, संस्कृत अखबार अपने आप बिकने लगेंगे।”
 
 
त्रिपाठी ये भी कहते हैं कि सरकारी संस्कृत प्रेस नोट छापने के लिए वो बाध्य नहीं है। वे कहते हैं, "हम कोई सरकारी भोंपू नहीं हैं कि सरकार जो दे वो छाप दें। लेकिन अगर सरकार संस्कृत के अखबार को जिंदा करना चाहती है तो संस्कृत भाषा को जीवित करे, इसको लोकवाणी के रूप में स्थापित करे। जब भाषा नहीं बढ़ रही तो अखबार क्या बढ़ेगा।”
 
 
संस्कृत की मदद कैसे
वैसे सरकार समाचार पत्रों को विज्ञापन के माध्यम से सहायता करती है। सरकारी विज्ञापन छपने का पैसा सरकार की तरफ से होता है। वहीं त्रिपाठी का मानना है कि अगर कहीं सरकार ने ये फैसला ले लिया कि संस्कृत के अखबार को विज्ञापन अधिक देना है तो और बर्बादी होगी।
 
 
वे कहते हैं, "फिर देखिएगा संस्कृत के अखबारों की दुकानें खुल जाएंगी। जिसमें भले संस्कृत किसी को ना आती हो लेकिन विज्ञापन के चक्कर में छापेंगे। ऐसा ही उर्दू अखबारों के साथ हुआ है। जरुरत है भाषा को प्रोत्साहित करिए, अखबार अपने आप चल जायेंगे।”
 
 
वाराणसी स्थित सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राजाराम शुक्ला इसको एक महत्वपूर्ण कदम मानते हैं। वे बताते हैं, "इससे संस्कृत भाषा का प्रचार और प्रसार होगा। हमारा विश्वविद्यालय इसमें पूरा सहयोग करेगा। अब संस्कृत पढ़ने वालों की संख्या भी बढ़ेगी।”
 
 
समाजवादी पार्टी के विधायक सुनील सिंह के अनुसार पहले लोगों में संस्कृत के प्रति आकर्षण पैदा होना चाहिए। वे कहते हैं, "इसको रोजगार से जोड़िए। हमारी सरकार में संस्कृत के लेखकों और विद्वानों को प्रोत्साहन दिया जाता था। संस्कृत विद्वान डॉ नाहीद आब्दी को प्रदेश का सर्वोच्च यश भारती पुरस्कार दिया गया था।"
 
 
संस्कृत पढ़ने और बोलने वाले
साल 2011 के जनगणना के आंकड़ों के हिसाब से मात्र 24,821 लोगों ने संस्कृत को अपनी मातृभाषा बताया है। हालांकि ये आंकड़ा पिछली जनगणना से बढ़ा है। साल 2001 में मात्र 14,135 लोगों ने संस्कृत को मातृभाषा बताया था। भारत में मातृभाषा के रूप में दर्ज 22 भाषाओं में संस्कृत सबसे आखिरी नंबर पर आती है। उत्तर प्रदेश में मात्र 3,062 लोगों ने ही अपनी मातृभाषा संस्कृत बताई है, जिसमें 1,697 पुरुष और 1,365 महिलाएं हैं। इससे पता चलता है कि संस्कृत बोलचाल की भाषा के रूप में ज्यादा लोकप्रिय नहीं है।
 
 
इंटरनल क्वालिटी एशोरेंस सेल द्वारा जारीआंकड़ों के हिसाब से, उत्तर प्रदेश के वाराणसी में संस्कृत के सबसे जाने माने संस्थान, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में साल 2017-18 में मात्र 1,964 छात्र पंजीकृत हैं। जिसमें 1260 स्नातक, 689 परास्नातक और 15 पीएचडी मकर रहे हैं। यहां 63 विदेशी छात्र भी हैं। पिछले साल से ये संख्या घट गयी है। पिछले साल 2,041 छात्र थे। इसके अलावा प्रदेश में संस्कृत संस्थानम भी है जो भाषा विभाग के अधीन है। यह पुरस्कारों, ग्रन्थ प्रकाशन, संरक्षण और व्याख्यानों पर काम करती है।
 
 
रिपोर्ट फैसल फरीद
 

सम्बंधित जानकारी

सभी देखें

जरूर पढ़ें

साइबर फ्रॉड से रहें सावधान! कहीं digital arrest के न हों जाएं शिकार

भारत: समय पर जनगणना क्यों जरूरी है

भारत तेजी से बन रहा है हथियार निर्यातक

अफ्रीका को क्यों लुभाना चाहता है चीन

रूस-यूक्रेन युद्ध से भारतीय शहर में क्यों बढ़ी आत्महत्याएं

सभी देखें

समाचार

Cyclone Dana : चक्रवात दाना पर ISRO की नजर, जानिए क्या है अपडेट, कैसी है राज्यों की तैयारियां

भारत के 51वें CJI होंगे जस्टिस संजीव खन्ना, 11 नवंबर को लेंगे शपथ

चीन के साथ समझौते पर क्‍या बोले रक्षामंत्री राजनाथ सिंह

આગળનો લેખ
Show comments