Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

नजरिया: कश्मीर पर पाकिस्तान का साथ क्यों नहीं दे रहे खाड़ी के देश

नजरिया: कश्मीर पर पाकिस्तान का साथ क्यों नहीं दे रहे खाड़ी के देश
, बुधवार, 4 सितम्बर 2019 (11:30 IST)
कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बना हुआ है। खाड़ी देश इस मुद्दे पर अभी पाकिस्तान का साथ नहीं दे रहे हैं। इसके पीछे आर्थिक कारण बड़ी वजह हैं। लेकिन आने वाले समय में भी वो भारत के साथ रहें, ऐसा जरूरी नहीं है।
 
 
जब संयुक्त अरब अमीरात ने अप्रैल में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश का सर्वोच्च सम्मान देने की घोषणा की थी तो भारत में चुनाव चल रहे थे। चुनाव के दौरान मोदी को मुस्लिम देश द्वारा सम्मान दिए जाने का पाकिस्तान में मौन विरोध हुआ था। अब जब मोदी को पिछले दिनों ऑर्डर ऑफ जायेद सम्मान ने नवाजा गया तो भारत ने कश्मीर में धारा 370 को हटा दिया था और जम्मू और कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था।
 
इस बार पाकिस्तान में अमीराती कदम का खुला विरोध हुआ। पाकिस्तानी सीनेट के एक प्रतिनिधिमंडल ने अपना दौरा रद्द कर दिया। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने मुस्लिम देशों के रवैये पर देशवासियों की निराशा पर कहा है कि उन्हें निराश होने की जरूरत नहीं है। यदि कुछ देश अपने आर्थिक हितों के कारण इस मुद्दे को नहीं उठा रहे हैं, वे आखिरकार इस मुद्दे को उठाएंगे। समय के साथ उन्हें ऐसा करना होगा।
 
कश्मीर के मुद्दे ने पाकिस्तान को असमंजस में डाल दिया है। आर्थिक मुश्किलों में फंसा पाकिस्तान एक ओर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का फिर से भरोसा जीतने की कोशिश में लगा है, तो कश्मीर मुद्दे ने उसे अपना ध्यान बांटने को मजबूर कर दिया है। और जब उसने पश्चिमी देशों से इतर निगाह घुमाई तो पाया कि खाड़ी के देश उससे दूर जा रहे हैं। इस्लामी एकता बिखर रही है और कभी कश्मीर पर बार बार प्रस्ताव पास करने वाले इस्लामी देशों के संगठन ओआईसी के सदस्य देश अब कश्मीर पर भारत का साथ खुलकर न भी दे रहे हों, लेकिन कुछ बोल नहीं रहे हैं। सुन्नी देशों के संगठन ने भारत और पाकिस्तान से विवाद कम करने का अनुरोध किया है। सऊदी अरब ने भी न तो भारतीय कदम की निंदा की है और न ही कोई रवैया तय किया है।
 
ईरान और तुर्की ने जरूर कश्मीर पर अपनी रोटी सेंकने की कोशिश की है। तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोआन ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान को कश्मीर पर पूरे समर्थन का वादा किया है और संयुक्त राष्ट्र से सक्रिय भूमिका निभाने को कहा है। आर्थिक प्रतिबंध झेल रहे ईरान ने भी कश्मीर पर भारत सरकार के फैसले के बाद बयान देकर शिया सुन्नी में बंटी मुस्लिम दुनिया में नई भूमिका तलाशने की कोशिश की है, लेकिन खाड़ी के अरब देश आम तौर पर चुप रहे हैं।
 
ईरान ने कश्मीर फैसले के बाद उम्मीद जताई कि भारत और पाकिस्तान अपना विवाद कूटनैतिक तरीके से निबटाएंगे और यह भी कहा कि कश्मीरी मुसलमान अपने कानूनी अधिकारों का इस्तेमाल कर पाएंगे। देश के सर्वोच्च इस्लामी नेता अयातोल्लाह खमेनेई ने कहा, "हमें उम्मीद है कि भारत सरकार कश्मीर के लोगों के प्रति न्यायोचित नीति अपनाएगी और इलाके में मुसलमानों पर अत्याचार को रोकेगी।”
 
संयुक्त अरब अमीरात पाकिस्तान की परेशानी का सबसे बड़ा उदाहरण बन गया है। अब तक दोनों देशों की दोस्ती को अत्यंत गहरी दोस्ती कहा जा रहा था। पाकिस्तान न सिर्फ इस्लामी देशों के संगठन का सदस्य है वह खाड़ी के सुन्नी देशों के मोर्चे का भी अहम सदस्य है। यमन के शिया विद्रोहियों के खिलाफ बने मोर्चे में पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख राहील शरीफ सैन्य गठबंधन का नेतृत्व कर रहे हैं। अमीरात के कश्मीर संकट के बीचोबीच भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश का सर्वोच्च सम्मान देकर पाकिस्तान की समस्याएं बढ़ा दी है। दूसरी ओर उसने संकेत भी दिया है कि आर्थिक तौर पर खस्ताहाल पाकिस्तान से उसकी दूरियां बढ़ रही हैं।
 
कश्मीर पर मध्यपूर्व की प्रतिक्रिया से लगता है कि पाकिस्तान और ईरान तथा तुर्की के विपरीत अरब दुनिया की कश्मीर में अब उतनी दिलचस्पी नहीं बची है। इसकी सबसे बड़ी वजह तो यह है कि सऊदी और अमीरात हालिया तेल संकट के बाद व्यापार पर ध्यान दे रहे हैं और भारत उनके बड़े व्यापारिक और निवेश सहयोगियों में एक के रूप में उभरा है।
 
अरब देशों के भारत और पाकिस्तान दोनों के ही साथ अच्छे संबंध रहे हैं और उसने भारत को कभी अपना दुश्मन नहीं समझा है। भारत के 70 लाख से ज्यादा कुशल कामगार अरब देशों में काम कर रहे हैं और वहां के विकास में अहम योगदान दे रहे हैं। भारत वहां के प्रमुख देशों के लिए निवेश का प्रमुख केंद्र है। हाल में कश्मीर समस्या की शुरुआत पर सऊदी अरब भारत में 15 अरब डॉलर के निवेश को अंतिम रूप देने में लगा था।
 
भारत ने पिछले सालों में अरब देशों के साथ संबंध बढ़ाने में महत्वपूर्ण पहलकदमियां की हैं। आर्थिक संबंधों को बेहतर बनाने और खाड़ी के देशों में काम करने वाले भारतीयों के लिए सुविधाएं उपलब्ध कराने के अलावा इसका मकसद आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष भी रहा है। बढ़ते संबंधों के बीच पिछले सालों में खाड़ी के देशों ने अपने यहां से बहुत सारे संदिग्धों को भारत प्रत्यर्पित किया है।
 
सऊदी अरब को कट्टरपंथी इस्लाम के निर्यात का केंद्र समझा जाता रहा है लेकिन वह खुद भी इसकी चपेट में आया है और कट्टरपंथ के खिलाफ सख्त हुआ है। भारत के साथ आतंकवाद विरोधी अभियान में निकट सहयोग को मोदी सरकार के दौरान प्राथमिकता दी गई है और खुद प्रधानमंत्री मोदी ने खाड़ी के शासकों के साथ अपने निकट संबंधों को खासी तवज्जो दी है।
 
कश्मीर पर पाकिस्तान का अलग थलग पड़ना इसका नतीजा हो सकता है। पाकिस्तान में भी इस बात पर सवाल उठाए जा रहे हैं कि उसे मुसलमान देशों का समर्थन क्यों नहीं मिल रहा है। फिलहाल पाकिस्तान ने कश्मीर के मुद्दे को राष्ट्रीय बहस के केंद्र में लाने के अलावा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने का फैसला किया है।
 
सुरक्षा परिषद में नाकामी के बावजूद पाकिस्तान हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर कश्मीर का मुद्दा उठा रहा है और भारतीय नेता और राजनयिक उस पर आपत्ति कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत और पाकिस्तान की तू-तू मैं-मैं जारी रही तो हो सकता है कि खाड़ी के अरब देश कश्मीर पर बोलने को मजबूर हो जाएं लेकिन ये भी संभव है कि कश्मीर में उनकी रही सही दिलचस्पी भी खत्म हो जाए।
 
रिपोर्ट महेश झा
 

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

अफगान युद्ध की किसने कितनी कीमत चुकाई