Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

क्या धरती के लिए अच्छा है कोरोना वायरस का लॉकडाउन

क्या धरती के लिए अच्छा है कोरोना वायरस का लॉकडाउन
, बुधवार, 8 अप्रैल 2020 (07:56 IST)
रिपोर्ट ऋतिका पाण्डेय
 
कोविड-19 के कारण दुनिया के कई हिस्सों में लॉकडाउन के कारण न केवल शहरों में प्रकृति की छटा फैली है बल्कि खुद धरती के सीस्मिक कंपन भी कम हो गए हैं।
 
लॉकडाउन झेल रहे दुनिया के कई हिस्सों से वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण के कम होने की सूचनाएं आने लगी हैं। एक तरफ तो लगातार कोरोना वायरस के नए-नए मामले सामने आने के कारण लोगों को अपने जीवन और देशों को अपनी अर्थव्यवस्था की रफ्तार काफी कम करनी पड़ी है, वहीं दूसरी ओर इस अवसर का फायदा उठाते हुए प्रकृति अपनी मरम्मत करती नजर आ रही है।
बेल्जियम की रॉयल ऑब्जर्वेट्री के विशेषज्ञों के अनुसार विश्व के कई हिस्सों में जारी लॉकडाउन के कारण धरती की ऊपरी सतह पर कंपन कम हुए हैं। भूकंप वैज्ञानिक यानी सीस्मोलॉजिस्ट को धरती के सीस्मिक नॉयज और कंपन में कमी देखने को मिली है। 'सीस्मिक नॉयज' वह शोर है, जो धरती की बाहरी सतह यानी क्रस्ट पर होने वाले कंपन के कारण धरती के भीतर एक शोर के रूप में सुनाई देता है।
 
इस साउंड को सटीक तौर पर मापने के लिए रिसर्चर और भूविज्ञानी एक डिटेक्टर की रीडिंग का सहारा लेते हैं, जो कि धरती की सतह से 100 मीटर की गहराई में गाड़ा जाता है। लेकिन फिलहाल धरती की सतह पर कंपन पैदा करने वाली इंसानी गतिविधियां काफी कम होने के कारण इस साउंड की गणना सतह पर ही हो पा रही है।
webdunia
असल में भूकंप जैसी किसी प्राकृतिक घटना में धरती के क्रस्ट में जैसी हरकतें होती हैं, वैसी ही हलचलें थोड़े कम स्तर पर धरती की सतह पर वाहनों की आवाजाही, मशीनों के चलने, रेल यातायात, निर्माण कार्य, जमीन में ड्रिलिंग जैसी इंसान की तमाम गतिविधियों के कारण भी होती हैं।
 
लॉकडाउन के कारण ऐसी इंसानी हरकतें कम होने के कारण ही इसका असर धरती के आंतरिक कंपनों पर पड़ता दिख रहा है। इन कंपनों को दर्ज कर वैज्ञानिक न केवल धरती के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटाते हैं बल्कि आने वाले भूकंपों और ज्वालामुखी विस्फोट का आकलन करने की कोशिश भी करते हैं। अब तक कंपनों में इस तरह की कमी साल के उस समय में भी दिखती आई थी जिस दौरान लोगों की लंबी छुट्टियां चल रही होती हैं।
ALSO READ: lockdown : सकारात्मक सोच है जरूरी
1 से 20 हर्ट्ज वाली इन्फ्रासाउंड फ्रीक्वेंसी ज्यादातर इंसानी गतिविधियों से पैदा होती हैं। बेल्जियम के शहर ब्रुसेल्स का ही उदाहरण देखें तो मध्य मार्च से लागू लॉकडाउन के कारण अब तक इसमें 30 से 50 फीसदी की बड़ी कमी दर्ज हुई है। भू-विज्ञानियों को ऐसे रुझान पेरिस, लंदन, लॉस एंजिल्स जैसे तमाम बड़े शहरों में भी दिखे हैं।
 
24 मार्च से भारत में लागू देशव्यापी लॉकडाउन के कारण देश के कई हिस्सों में भी इंसानी गतिविधियों की रफ्तार थमी है और इस दौरान प्रकृति अपनी मरम्मत खुद करती नजर आ रही है। पंजाब के जालंधर में रहने वालों ने बीते दिनों ऐसी तस्वीरें साझा की हैं जिनमें वहां से लोगों को हिमाचल प्रदेश में स्थित धौलाधार पर्वत श्रृंखला की चोटियां दिख रहीं हैं।
 
दिल्ली से होकर बहने वाली यमुना नदी को इतना साफ देखकर लोग काफी हैरानी भी जता रहे हैं। इस नदी को साफ करने की कोशिश में सालों से अलग-अलग सरकारों ने कितनी ही योजनाएं और समितियां बनाईं और कितना ही धन खर्च किया लेकिन ऐसे नतीजे कभी नहीं दिखे, जो लॉकडाउन के दौरान अपने आप ही सामने आए हैं।
 
दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से तमाम लोगों ने अपनी सरकारों को कोरोना संकट बीत जाने के बाद भी प्रकृति को हर साल कुछ दिनों का ऐसा ही ब्रेक देने के आइडिया पर विचार करने की सलाह दी है।

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

आज का इतिहास : भारतीय एवं विश्व इतिहास में 8 अप्रैल की प्रमुख घटनाएं