नानी आज अकेली है।
बात नहीं अब करता कोई,
घर में नाना-नानी से,
गुड़िया रानी को अब मतलब,
रहता नहीं कहानी से।
बचपन में नाना की गोदी,
में हर दिन जो खेली है।
गर्मी की छुट्टी में नाती,
नातिन घर में आए हैं।
लेकिन मोबाइल में दोनों,
बैठे आंख गड़ाए हैं।
मोबाइल से ही करते हैं,
पल-पल वे अठखेली है।
दादा-दादी भी तो शायद,
घर में निपट अकेले हैं।
घर के सोफे बिस्तर सब पर
मोबाइल के मेले हैं।
पता नहीं खुशियों की चादर,
वापस किसने ले ली है।
ऐसा कुछ क्या हुआ चमन में,
फूल नहीं अब मुस्काते।
कर दी बंद महक फैलाना,
सब सुगंध खुद पी जाते।
यही अराजकता किस कारण,
दुनिया भर में फैली है।
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