मुट्ठी खोली हाथ घुमाकर,
बल्लू बोला छूमंतर।
जय माता कंकाली बोला,
जय कलकत्ते वाली बोला।
चुन्नू, मुन्नू, डॉली बोला,
बजा-बजाकर ताली बोला।
सबको खाली हाथ दिखाकर,
बल्लू बोला छूमंतर।
फिर से मुट्ठी बांधी उसने,
ध्यान साधना साधी उसने।
अम-अम-अम-डम-डम चिल्लाया,
सिर के ऊपर हाथ घुमाया।
फिर मुट्ठी को फूंक-फुंकाकर,
बल्लू बोला छूमंतर।
ज्यों ही उसकी खुली हथेली,
हाथों में थी गुड़ की ढेली।
बोला आया जादूवाला,
देखो लाली, देखो लाला।
सबको गुड़ का ढेर दिखाकर,
बल्लू बोला छूमंतर।
हाथ घुमाकर जादू करता,
दुखी जनों के वह दु:ख हरता।
रोते मुखड़े रोज हंसाता,
ओंठों पर मुस्कानें लाता।
हंसते-हंसते फिर इठलाकर,
बल्लू बोला छूमंतर।