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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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बाल कविता : प्रात:काल

बाल कविता : प्रात:काल

अंशुमन दुबे (बाल कवि)

Sun
 
निशा के अंधेरे के पश्चात्,
फिर से सुबह आ जाती है।
घोर अंधकार की काली रात,
फिर पराजय पाती है।
 
सूरज प्रात: उद‍ित है होता,
करने रोशनी का उजियारा।
किरणें देती हैं हमें प्रेरणा,
दूर हो जाता है आलस सारा।
 
सुंदर पुष्प सर उठाए उपवन में,
जैसे रंग-बिरंगे खेत लहरा रहे हों।
चहचहाते पक्षियों की आवाज गगन में,
जैसे मधुर गीत गुनगुना रहे हों।
 
नदी के निर्मल जल पर,
पेड़ों का प्रतिबिम्ब उभर आता है।
गलियों में आभा का प्रवास और,
हर पत्ता प्रफुल्लित नजर आता है।
 
रात्रि का साम्राज्य खो जाता है,
अंधकार आंखें मूंद सो जाता है।
प्रकृति सुंदरता के चरम पर होती है,
और सारा संसार सुंदर हो जाता है।
 
साभार- छोटी-सी उमर (कविता संग्रह)
 

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