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विश्‍व बुजुर्ग दिवस : बच्‍चों की तरह बुजुर्गों की भी होती है अहमियत

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शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2021 (11:42 IST)
अंतरराष्‍ट्रीय बुजुर्ग दिवस हर साल 1 अक्‍टूबर को मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्‍य अपने बुजुर्गों के प्रति समभाव रखें। उनका आदर सत्‍कार करें। इस दिवस के माध्‍यम से बुजुर्गों को सम्‍मान और उनका हक दिलाने का प्रयास किया जाता है। लेकिन आज के वक्‍त में लोग My Life, My Rules यानी 'मेरी जिंदगी, मेरे नियम' की तर्ज पर चल रहे हैं। अपनों को अनदेखा करके, अपनों को अनसुना करके बाहरी दुनिया की सेवा कर रहे हैं। सेवा करने के दौरान कई तरह के पोस्‍ट सोशल मीडिया पर अपलोड कर वाहवाही लुटी जाती है। लेकिन घर में बैठे बुजुर्गों को पूछने के लिए कोई नहीं होता है। 
 
द सेवन एजिस ऑफ मैन यह किताब विलियम शेक्सपियर द्वारा लिखी गई थी। जिसमें इंसान के जन्‍म से लेकर उनके बुढ़ापे तक का जिक्र किया गया है। इंसान का सबसे पहले जन्‍म होता है, फिर वह सेकेंड स्‍टेज पर पहुंचता। इस पड़ाव पर वह अपना बचपन जीता है। तीसरे स्‍टेज पर पहुंचकर वह यूथ वर्ग में आ जाता है। इस दौरान वह एक प्रेमी की भूमिका में रहता है। चौथे पड़ाव पर एडल्‍ट कैटेगरी में प्रवेश करता है। इस दौरान जिंदगी की सही राह पर निकलने का सबसे सही वक्‍त होता है। पांचवे पड़ाव पर पहुंचकर मैच्‍योर स्‍टेज पर पहुंचता है। ये वक्‍त अपनी जिम्‍मेदारी उठाने, शादी करने का वक्‍त होता है। इसके बाद जीवन के आखिरी पड़ाव पर पहुंच जाता है जहां उन्‍हें अपने बच्‍चों की सबसे अधिक जरूरत होती है। अक्‍सर देखा जाता है कि बुढ़ापे में कई लोग जिद्दी, गुस्‍सैल, हंसना-खेलना इस तरह से व्‍यवहार करने लगते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्‍योंकि बुढ़ापें में फिर से बचपन लौट आता है। 
 
पहले माता-पिता अपने बच्‍चों को संभालते हैं वहीं बुढ़ापे में बच्‍चों को बारी होती है कि वह अपने माता-पिता का ख्‍याल रखें। कई बार वह कुछ काम करने से बार-बार रोकते हैं। क्‍योंकि घर में उन्‍हें जीवन का सबसे अधिक तजुर्बा होता है। जिस तरह से बच्‍चे घर की रौनक होते हैं उसी तरह बुजुर्ग भी घर की रौनक होते हैं। हालांकि आज के वक्‍त में मेरी जिंदगी, मेरे सपने, मेरा लक्ष्‍य पाने के लिए बुजुर्गों को वृद्धाश्रम में भेज दिया जाता है। और उनसे हर रविवार मिलने आने के लिए वादा किया जाता है। लेकिन वक्‍त कुछ ओर ही बयां करता है....

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