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Analysis : म्यांमार में सेना सत्ता पर नियंत्रण क्यों करती है...

Analysis : म्यांमार में सेना सत्ता पर नियंत्रण क्यों करती है...
, सोमवार, 1 फ़रवरी 2021 (18:47 IST)
जकार्ता। म्यांमार की सेना ने एक वर्ष के आपातकाल के तहत देश की सत्ता को अपने नियंत्रण में कर लिया है और खबरों में बताया गया है कि स्टेट काउंसलर आंग सान सू ची तथा अन्य नेताओं को हिरासत में ले लिया गया है। सेना द्वारा सत्ता पर नियंत्रण करने के कुछ संभावित कारण- संविधान : सेना के स्वामित्व वाले 'मयावाडी टीवी' ने देश के संविधान के अनुच्छेद 417 का हवाला दिया, जिसमें सेना को आपातकाल में सत्ता अपने हाथ में लेने की अनुमति हासिल है।

प्रस्तोता ने कहा कि कोरोनावायरस (Coronavirus) का संकट और नवंबर में चुनाव कराने में सरकार का विफल रहना ही आपातकाल के कारण हैं। सेना ने 2008 में संविधान तैयार किया और चार्टर के तहत उसने लोकतंत्र, नागरिक शासन की कीमत पर सत्ता अपने हाथ में रखने का प्रावधान किया। मानवाधिकार समूहों ने इस अनुच्छेद को संभावित तख्तापलट की व्यवस्था करार दिया था।

संविधान में कैबिनेट के मुख्य मंत्रालय और संसद में 25 फीसदी सीट सेना के लिए आरक्षित है, जिससे नागरिक सरकार की शक्ति सीमित रह जाती है और इसमें सेना के समर्थन के बगैर चार्टर में संशोधन से इंकार किया गया है।

कुछ विशेषज्ञों ने आश्चर्य जताया कि सेना अपनी शक्तिशाली यथास्थिति को क्यों पलटेगी लेकिन कुछ अन्य ने सीनियर जनरल मीन आउंग हलैंग की निकट भविष्य में सेवानिवृत्ति को इसका कारण बताया जो 2011 से सशस्त्र बलों के कमांडर हैं।

म्यांमार के नागरिक एवं सैन्य संबंधों पर शोध करने वाले किम जोलीफे ने कहा, इसकी वजह अंदरूनी सैन्य राजनीति है जो काफी अपारदर्शी है। यह उन समीकरणों की वजह से हो सकता है और हो सकता है कि यह अंदरूनी तख्तापलट हो और सेना के अंदर अपना प्रभुत्व कायम रखने का तरीका हो। सेना ने उप राष्ट्रपति मींट स्वे को एक वर्ष के लिए सरकार का प्रमुख बनाया है जो पहले सैन्य अधिकारी रह चुके हैं।

चुनाव : सू ची की पार्टी ने नवंबर में हुए संसदीय चुनाव में 476 सीटों में से 396 सीटों पर जीत हासिल की। केंद्रीय चुनाव आयोग ने परिणाम की पुष्टि की है। लेकिन चुनाव होने के कुछ समय बाद ही सेना ने दावा किया कि 314 शहरों में मतदाता सूची में लाखों गड़बड़ियां थीं जिससे मतदाताओं ने संभवत: कई बार मतदान किया या अन्य चुनावी फर्जीवाड़े किए। जोलीफे ने कहा, लेकिन उन्होंने उसका कोई सबूत नहीं दिखाया।

चुनाव आयोग ने पिछले हफ्ते दावों से इंकार किया और कहा कि इन आरोपों के समर्थन में कोई सबूत नहीं है।
चुनाव के बाद नई संसद के पहले ही दिन सेना ने तख्तापलट कर दिया। सू ची एवं अन्य सांसदों को पद की शपथ लेनी थी लेकिन उन्हें हिरासत में ले लिया गया। ‘मयावाडी टीवी’ पर बाद में घोषणा की गई कि सेना एक वर्ष का आपातकाल समाप्त होने के बाद जीतने वाले को सत्ता सौंप देगी।

अभी क्या हो रहा है : देश में सुबह और दोपहर तक संचार सेवाएं ठप हो गईं। राजधानी में इंटरनेट और फोन सेवाएं बंद हैं।देश के कई अन्य स्थानों पर भी इंटरनेट सेवाएं बाधित हैं। देश के सबसे बड़े शहर यांगून में कंटीले तार लगाकर सड़कों को जाम कर दिया गया और सिटी हिल जैसे सरकारी भवनों के बाहर सेना तैनात है। काफी संख्या में लोग एटीएम और खाद्य वेंडरों के पास पहुंचे और कुछ दुकानों एवं घरों से सू ची की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी के निशान हटा दिए गए।

अब आगे क्या होगा : विश्वभर की सरकारों एवं अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने तख्तापलट की निंदा की है और कहा है कि म्यांमार में सीमित लोकतांत्रिक सुधारों को इससे झटका लगा है। ह्यूमन राइट्स वाच की कानूनी सलाहकार लिंडा लखधीर ने कहा, लोकतंत्र के रूप में वर्तमान म्यांमार के लिए यह काफी बड़ा झटका है। विश्व मंच पर इसकी साख को बट्टा लग गया है।

मानवाधिकार संगठनों ने आशंका जताई कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और सेना की आलोचना करने वालों पर कठोर कार्रवाई संभव है। अमेरिका के कई सीनेटरों एवं पूर्व राजनयिकों ने सेना की आलोचना करते हुए लोकतांत्रिक नेताओं को रिहा करने की मांग की है और जो बाइडन सरकार एवं दुनिया के अन्य देशों से म्यांमार पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है।(भाषा)

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