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भारत की अनदेखी कर चीन के साथ सैन्य अभ्यास करेगा नेपाल

भारत की अनदेखी कर चीन के साथ सैन्य अभ्यास करेगा नेपाल
, बुधवार, 12 सितम्बर 2018 (22:38 IST)
काठमांडू। नेपाल ने बिम्सटेक देशों के साथ सैन्य अभ्यास में हिस्सा नहीं लेने की घोषणा कर भारत की अनदेखी की है और चीन के साथ 12 दिवसीय सैन्य अभ्यास में हिस्सा लेने का फैसला किया है। मीडिया रिपोर्टों में यह जानकारी दी गई है।
 
 
गौरतलब है कि पुणे में बिम्सटेक देशों के संयुक्त सैन्य अभ्यास में नेपाल शामिल नहीं हो रहा है और कुछ दिन बाद ही चीन की सेना के साथ नेपाली सेना 12 दिनों तक सैन्य अभ्यास करेगी।

नेपाल के अलावा बिम्सटेक सदस्य देशों की सेनाओं ने सोमवार से पुणे के पास औंध में एक सप्ताह का आतंकविरोधी सैन्य अभ्यास शुरू किया। इस अभ्यास का मकसद इस क्षेत्र में आतंकवाद की चुनौती से निपटने में सहयोग में बढ़ोतरी करना है। बिम्सटेक में भारत, बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, थाईलैंड, भूटान और नेपाल जैसे देश शामिल हैं।
 
नेपाली सेना के प्रवक्ता ब्रिगेडियर जनरल गोकुल भंडारी ने बताया कि चीन के साथ यह अभ्यास 17 से 28 सितंबर तक छेंगदू में किया जाएगा और इसका मुख्य मकसद आतंकवाद विरोधी अभ्यास करना है।
 
चीन के साथ सैन्य अभ्यास का फैसला नेपाल सरकार ने सत्तारूढ़ नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष नेताओं के विरोध तथा अन्य लोगों की आलोचना के बाद लिया है। नेपाल सरकार ने यह निर्णय ऐसे समय लिया है, जब उसने चीन के साथ पारगमन एवं यातायात संबंधी समझौते को अंतिम रूप दे दिया है और इसके बदले उसकी पहुंच चीन के समुद्री बंदरगाहों तथा जमीनी रास्ते तक हो जाएगी।
 
इस समझौते में कहा गया कि अब नेपाल, चीन के शुष्क बंदरगाहों लांझहू, ल्हासा तथा शिगात्सी और इन्हें जोड़ने वाली सड़कों का भी इस्तेमाल कर सकेगा। इस बीच भारत ने नेपाल के इस फैसले पर नाखुशी जाहिर की है और उसे स्पष्ट कर दिया कि यह फैसला उचित नहीं है। एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत सरकार ने नेपाली नेतृत्व को स्पष्ट कर दिया है कि आंतरिक राजनीतिक दबाव का उसका स्पष्टीकरण यकीन करने लायक नहीं है।
 
वाणिज्य मंत्रालय के एक अधिकारी रवि शंकर सैंजू ने बताया कि जापान, दक्षिण कोरिया और अन्य उत्तर एशियाई देशों से नेपाल आने वाला सामान अब चीन के रास्ते से होकर आएगा जिससे सामान लागत तथा समय दोनों की बचत होगी। नेपाल का जमीनी व्यापार कोलकाता के पूर्वी बंदरगाह से मुख्यत: होता है जिसमें कम से कम 3 महीने का समय लगता है।
 
जानकारों का मानना है कि चीन के साथ जाकर नेपाल व्यापार के क्षेत्र में भारत के प्रभुत्व को कम करना चाहता है, क्योंकि ईंधन और अन्य जरूरी सामानों के लिए वह भारत के बंदरगाह पर अधिक निर्भर रहता है।
 
दरअसल 2015 और 2016 में नेपाल और भारत सीमा पर काफी लंबे समय तक जारी आर्थिक नाकेबंदी से नेपाल को बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा था और यहां ईंधन तथा दवाओं की किल्लत हो गई थी। नेपाल के इस फैसले को इस लिहाज से भी आश्चर्यजनक नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का झुकाव काफी हद तक चीन की तरफ है। 

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