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Artemis 2: NASA के चंद्रयान से चांद की परिक्रमा करेंगे 4 यात्री, कई मायनों में ऐतिहासिक होगी यह यात्रा

राम यादव
NASA Mission Moon 2025 : अमेरिकी अंतरिक्ष अधिकरण नासा 2025 से एक बार फिर चंद्रमा पर अपने अंतरिक्ष यात्री भेजना शुरू करने जा रहा है। 50 वर्षों से भी अधिक समय के बाद अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री एक बार फिर चंद्रमा पर अपने पैर रखेंगे। 
 
'आर्तेमिस-2' कहलाने वाले इस नए चंद्र आभियान के लिए एक नए विशाल रॉकेट का डिज़ाइन तैयार किया गया है। नए डिज़ाइन वाले पहले रॉकेट का मुख्य चरण न्यू ऑर्लियन्स में बनाया गया है। पूरे रॉकेट के सभी भागों के एकीकरण और संयोजन के लिए हाल ही में उसे सड़क के रास्ते से फ्लोरिडा में स्थित कैनेडी स्पेस सेंटर (KSC) ले जाया गया। अपने चार विशाल इंजनों के साथ पूरा रॉकेट 65 मीटर लंबा होगा। 
 
'आर्तेमिस-2' मिशन, इस समय की योजना के अनुसार, सितंबर 2025 में चार अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा तक ले जाएगा। 1970 वाले दशक के बाद के लंबे अंतराल का अंत करने वाली चंद्रमा तक जाने की यह पहली उड़ान 10 दिनों तक चलेगी। ALSO READ: दो क्षुद्रग्रह गुजर रहे हैं पृथ्वी के पास से, यदि टकराए तो...
 
चंद्र यात्री अंतरिक्ष यान में ही बैठे रहेंगे : इस पहली उड़ान में चारों चंद्र यात्री 'ओरायन' नाम के अपने अंतरिक्ष यान में ही बैठे रहेंगे। चंद्रमा पर उतरने के बदले वे उसकी केवल परिक्रमा करेंगे और पृथ्वी पर लौट आएंगे। इस उड़ान का मुख्य उद्देश्य यह देखना-परखना होगा कि प्रक्षेपण रॉकेट से लेकर चंद्र यात्रियों के रहने-बैठने के 'ओरायन' अंतरिक्ष यान की वापसी तक की सारी प्रणालियां सुचारु रूप से काम करती हैं या नहीं। पहली बार क्रिस्टीना कोख़ नाम की एक महिला भी चंद्र यात्री बनेंगी।
 
चंद्रमा की सतह पर उतरने और वहां कुछ दिन रहने के 'आर्तेमिस-3' अभियान का प्रक्षेपण कब होगा, यह अभी तय नहीं है। हर हाल में वह 2026 से पहले नहीं होगा। जब भी होगा, 30 दिनों तक चलेगा। दो चंद्र यात्री चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरेंगे और वहां करीब एक सप्ताह रह कर विभिन्न प्रकार की खोजें करेंगे। दूसरे दोनों चंद्र यात्री 'ओरायन' यान में ही रहकर चंद्रमा की परिक्रमा करते हुए उसके चित्र आदि लेंगे और पृथ्वी पर मिशन कंट्रोल सेंटर से संपर्क बनाए रखेंगे। 
 
चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास स्थायी अड्डा : नासा का लक्ष्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास अपनी स्थायी उपस्थिति स्थापित करना है, क्योंकि वहां बर्फ के रूप में एक बड़ी मात्रा में पानी पाया गया है। विद्युत-अपघटन (इलेक्ट्रोलाइसिस) विधि के द्वारा इस पानी से ईंधन के तौर पर हाइड्रोजन गैस और सांस लेने के लिए ऑक्सीजन गैस प्राप्त की जा सकती है।  ALSO READ: मंगल ग्रह पर जीवन रहे होने के कई संकेत मिले
 
आर्तेमिस-2 की उड़ान से जुड़ी कई बातें ऐसी होंगी, जो पहली बार हुई कहलाएंगी। उदाहरण के लिए 'ओरायन' अंतरिक्षयान के मिशन-पायलट विक्टर ग्लोवर के रूप में पहली बार एक अश्वेत अमेरिकी प्रथम चंद्रयात्री बनेगा। क्रिस्टीना कोख़ प्रथम महिला चंद्र यात्री बनेंगी और जेरेमी हान्सन प्रधम ग़ैर-अमेरिकी सहयात्री होंगे।
 
'आर्तेमिस-2' और 'आर्तेमिस-3' से पहले 'आर्तेमिस-1' का प्रक्षेपण 16 नवंबर 2022 को हुआ था। उस समय कोई मनुष्य नहीं, अपितु तीन पुतले चंद्रमा की परिक्रमा कक्षा में भेजे गए थे। 25 दिन बाद, 11 दिसंबर 2022 को 'ओरायन' यान की पृथ्वी पर सकुशल वापसी के साथ उस प्रथम अभियान का सफल समापन हुआ था।  
      
चंद्रमा भावी मंगल यात्राओं के अभ्यास का पड़ाव : चंद्रमा को वास्तव में मंगल ग्रह की भावी लंबी यात्राओं के लिए एक आवश्यक अभ्यास और पड़ाव की सुविधा के तौर पर देखा जा रहा है। चंद्रमा हमारी पृथ्वी से औसतन 3,84,400 किलोमीटर दूर है, जबकि मंगल ग्रह तक की औसत दूरी 22 करोड़ 50 लाख किलोमीटर है। यह दूरी पृथ्वी और मंगल ग्रह के बीच की निकटतम और अधिकतम दूरी का मध्यमान है। ALSO READ: झुलसती, डूबती जिंदगियां, एशिया पर जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक कहर   
 
पृथ्वी और मंगल, दोनों सूर्य की परिक्रमा करते हुए लगभग हर 687 दिनों पर एक बार एक-दूसरे के सबसे निकट और एक बार सबसे दूर होते हैं। मंगल ग्रह तक की यात्रा, अंतरिक्षयान की गति के अनुसार, उस दिन के 6 से 9 महीने पहले ही शुरू हो जानी चाहिए, जब वह पृथ्वी के सबसे निकट होगा। इसी तरह, पृथ्वी पर वापसी के लिए भी निकटतम दूरी वाले दिन के 6 से 9 महीने पहले ही मंगल पर से रवानगी भी हो जानी चाहिेए, वर्ना दो साल से अधिक समय तक वहां इंतज़ार करना पड़ेगा।
 
नया 'पल्स प्लाज़्मा' रॉकेट : नासा अब एक ऐसे रॉकेट का विकास करने में निवेश कर रहा है, जो मंगल ग्रह पर जाने वालों को 1,60,000 किलोमीटर प्रति घंटे से भी अधिक गति से, दो महीने में ही वहां पहुंचा और वहां से वापस भी ला सकेगा। उसके इंजनों के लिए 'पल्स प्लाज़्मा' (स्पंदित प्लाज़्मा) नाम की जिस नई प्रणोदन (प्रोपल्सन) तकनीक की आवश्यकता है, उसके विकास के लिए नासा 7,25,000 डॉलर निवेशित कर रहा है। 
 
वर्तमान तकनीक के साथ, मंगल ग्रह पर एक बार जाने-आने में लगभग दो साल लगेंगे। अंतरिक्ष यात्रियों के लिए अंतरिक्ष में इतने लंबे समय तक रहना स्वास्थ्य संबंधी कई घातक जोखिमों से भरा है। उन्हें उच्च स्तर के सौर एवं ब्रह्मांडीय विकिरण के साथ-साथ भारहीनता के हानिकारक प्रभावों को झेलना और लंबे समय तक दीन-दुनिया से विरक्त रहना पड़ेगा।
 
हानिकारक विकिरण : अंतरिक्ष में रेडियोधर्मी विकिरण संभवतः सबसे बड़ा ख़तरा है। जो अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में केवल छह महीने बिताते हैं, उनके शरीर में इन छह महीनों में जितना हानिकारक विकिरण पहुंचता है, वह किसी डॉक्टर या अस्पताल द्वारा लिए गए किसी व्यक्ति के लगभग 1000 बार के एक्स-रे वाले विकिरण के बराबर होता है। नासा के अनुसार, अंतरिक्ष यात्रियों को इससे कैंसर हो जाने, तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) और हड्डियों को नुकसान पहुंचने तथा हृदय रोग का ख़तरा रहता है।
 
किसी अंतरिक्ष यात्रा के दौरान विकिरण के जोखिम और अन्य प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभावों को कम करने का सबसे अच्छा तरीका है यात्रा के समय को कम करना। नासा, इसीलिए स्पंदित प्लाज़्मा रॉकेट (PPR) विकसित करने पर ज़ोर दे रहा है। इस तकनीक वाले रॉकेटों की सहायता से केवल दो महीने के भीतर मंगल ग्रह तक जाना-आना संभव हो जायेगा। हालांकि इस स्थिति तक पहुंचने में अभी 20 साल और लगेंगे। 
 
पीपीआर का लाभ : PPR एक ऐसी गतिदायक प्रणोदन प्रणाली है, जो गैस-रूपी अत्यधिक गर्म प्लाज़्मा के स्पंदों का उपयोग करते हुए बहुत कुशलता से प्रचंड शक्तिदायी प्रघात (थ्रस्ट) उत्पन्न करती है। यह तकनीक इस समय अपने विकास के दूसरे चरण में है। PPR इंजन का सबसे बड़ा लाभ यह है कि उससे बहुत उच्च कोटि का प्रणोदन और विशिष्ट क़िस्म का उच्च आवेग, दोनों प्राप्त होंगे।
विशिष्ट आवेग इंगित करता है कि रॉकेट का इंजन कितनी तेज़ी से अंतरिक्ष यान को आगे बढ़ाने वाला बल पैदा कर सकता है। कहा जा रहा है कि PPR इंजन 5000 सेकंड के विशिष्ट आवेग के साथ 10,000 न्यूटन के बराबर बल उत्पन्न करेगा। इसका मतलब है कि पीपीआर से लैस एक अंतरिक्ष यान, चार से छह यात्रियों के साथ, लगभग 1,60,934 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से उड़ान भर सकता है। इतनी तेज़ी से यात्रा करने वाले अंतरिक्ष यान को अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए किसी न किसी बिंदु पर धीमा भी होना पड़ेगा। अतः मंगल ग्रह पर उतरने और वहां से पुनः उड़ने के लिए आवश्यक अतिरिक्त ऊर्जा और ईंधन को भी ध्यान में रखना होगा।
 
दूसरा चरण पूरा होने के बाद भी, PPR को मंगल ग्रह पर अंतरिक्ष यात्रियों को पहुंचाने और उन्हें वापस लाने लायक बनाने में अभी भी कई दशक लग जाएंगे। लेकिन, एक बार अंतरिक्ष यात्रा के लिए उपलब्ध होने के बाद यह तकनीक अंतरिक्ष अन्वेषण की मानवीय क्षमताओं का निश्चित रूप से व्यापक विस्तार करेगी और एक दिन शायद हमारे सौरमंडल के सबसे दूरस्थ लघु ग्रह प्लूटो तक पहुंचना भी संभव बना देगी।  

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