Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

महान महाराणा प्रताप ने अकबर और उसकी सेना को चटा दी थी धूल

Maharana Pratap
, गुरुवार, 2 जून 2022 (07:30 IST)
The Great Maharana Pratap: वर्षों से महाराणा प्रताप की महानता को दबाया गया है। उनके सामने तुर्क विदेशी सम्राट अकबर को महान बताया जाता रहा है, जबकि अकबर एक क्रूर शासक था और जिसमें महानता के जरा भी गुण नहीं थे। अकबर भारत के कई राजाओं से युद्ध हारा था। उसी तरह महाराणा प्रताप से भी वह युद्ध हार गया था।
 
 
इतिहासकार डॉ. चन्द्रशेखर शर्मा के अनुसार साल 1576 में हुए हल्दीघाटी के इस भीषण युद्ध में अकबर को नाको चने चबाने पड़े और आखिर जीत महाराणा प्रताप की हुई। लेकिन इतिहास की किताबों में पिछले 70 वर्षों से उल्टा ही पढ़ाया जा रहा है। मुगल कभी भी मेवाड़ को फतह नहीं कर पाए।
 
मुगल न तो महाराणा प्रताप को पकड़ सके और न ही मेवाड़ पर पूर्ण आधिपत्य जमा सके। मेवाड़ का इतिहास वीरता, बलिदान और साहस की गाथा है। इसे आज तक कोई जीत नहीं सकता है। कुछ समय के लिए भले ही मुगलों का अधिकार कुम्भलगढ़, गोगुंदा, उदयपुर और आसपास के ठिकानों पर पर हो गया था लेकिन महाराणा प्रताप से पुन: इस पर अपना अधिकार कर लिया था।
 
इतिहास में दर्ज है कि 1576 में हुए हल्दीघाटी युद्ध के बाद भी अकबर ने महाराणा को पकड़ने या मारने के लिए 1577 से 1582 के बीच करीब एक लाख सैन्यबल भेजे। अंगेजी इतिहासकारों ने लिखा है कि हल्दीघाटी युद्ध का दूसरा भाग जिसको उन्होंने 'बैटल ऑफ दिवेर' कहा है, मुगल बादशाह के लिए एक करारी हार सिद्ध हुआ था। इतिहासकार कर्नल टॉड ने महाराणा और उनकी सेना के शौर्य, युद्ध कुशलता को स्पार्टा के योद्धाओं सा वीर बताते हुए लिखा है कि वे युद्धभूमि में अपने से 4 गुना बड़ी सेना से भी नहीं डरते थे। 
webdunia
Maharana Pratap Jayanti
दिवेर युद्ध की योजना महाराणा प्रताप ने अरावली स्थित मनकियावस के जंगलों में बनाई थी। भामाशाह द्वारा मिली राशि से उन्होंने एक बड़ी फौज तैयार कर ली थी। बीहड़ जंगल, भटकावभरे पहाड़ी रास्ते, भीलों, राजपूत, स्थानीय निवासियों की गुरिल्ला सैनिक टुकड़ियों के लगातार हमले और रसद, हथियार की लूट से मुगल सेना की हालत खराब कर रखी थी।
 
हल्दीघाटी के बाद अक्टूबर 1582 में दिवेर का युद्ध हुआ। इस युद्ध में मुगल सेना की अगुवाई करने वाला अकबर का चाचा सुल्तान खां था। विजयादशमी का दिन था और महाराणा ने अपनी नई संगठित सेना को दो हिस्सों में विभाजित करके युद्ध का बिगुल फूंक दिया। एक टुकड़ी की कमान स्वयं महाराणा के हाथ में थी, तो दूसरी टुकड़ी का नेतृत्व उनके पुत्र अमर सिंह कर रहे थे।  
 
महाराणा प्रताप की सेना ने महाराज कुमार अमर सिंह के नेतृत्व में दिवेर के शाही थाने पर हमला किया। यह युद्ध इतना भीषण था कि प्रताप के पुत्र अमर सिंह ने मुगल सेनापति पर भाले का ऐसा वार किया कि भाला उसके शरीर और घोड़े को चीरता हुआ जमीन में जा धंसा और सेनापति मूर्ति की तरह एक जगह गड़ गया।
 
उधर महाराणा प्रताप ने बहलोल खान के सिर पर इतनी ताकत से वार किया कि उसे घोड़े समेत 2 टुकड़ों में काट दिया। स्थानीय इतिहासकार बताते हैं कि इस युद्ध के बाद यह कहावत बनी कि "मेवाड़ के योद्धा सवार को एक ही वार में घोड़े समेत काट दिया करते हैं"। 
 
अपने सिपाहसालारों की यह गत देखकर मुगल सेना में बुरी तरह भगदड़ मची और राजपूत सेना ने अजमेर तक मुगलों को खदेड़ा। भीषण युद्ध के बाद बचे-खुचे 36000 मुग़ल सैनिकों ने महाराणा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। दिवेर के युद्ध ने मुगलों के मनोबल को बुरी तरह तोड़ दिया। दिवेर के युद्ध के बाद प्रताप ने गोगुंदा, कुम्भलगढ़, बस्सी, चावंड, जावर, मदारिया, मोही, माण्डलगढ़ जैसे महत्वपूर्ण ठिकानों पर कब्ज़ा कर लिया।   
 
स्थानीय इतिहासकार बताते हैं कि इसके बाद भी महाराणा और उनकी सेना ने अपना अभियान जारी रखते हुए सिर्फ चित्तौड़ को छोड़ के मेवाड़ के अधिकतर ठिकाने/ दुर्ग वापस स्वतंत्र करा लिए। यहां तक कि मेवाड़ से गुजरने वाले मुगल काफिलों को महाराणा को रकम देनी पड़ती थी।

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

History of Maharana Pratap : महाराणा प्रताप की वीरता और शौर्य का समग्र इतिहास...