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हिन्दी कविता : रेवड़ियां बंट रही हैं...

सुशील कुमार शर्मा
शिक्षा का सम्मान बिकाऊ है भाई,
पैरों पर गिरना टिकाऊ है भाई।
 
तुम मेरे हो तो आ जाओ मिल जाएगा,
मैं अध्यक्ष हूं मैडल तुम पर खिल जाएगा।
 
क्या हुआ गर शिष्याओं को तुमने छेड़ा है,
क्या हुआ गर शिक्षा को तुमने तोड़ा-मोड़ा है।
 
क्या हुआ गर माता-पिता को दी तुमने हाला है,
मत डरो समिति का अध्यक्ष तुम्हारा साला है।
 
शिक्षा को भरे बाजारों में तुमने बेचा है,
ट्यूशन में अच्छा जलवा तुमने खेंचा है।
 
क्या हुआ गर शिष्यों के संग बैठ सुरापान किया,
क्या हुआ गर विद्या के मंदिर का अपमान किया।
 
सम्मान की सूची में सबसे ऊपर नाम तेरा,
नोटों की गड्डी में बन गया काम तेरा।
 
अपने-अपनों को रेवड़ियां बांट रहे,
दीमक बनकर ये सब शिक्षा को चाट रहे।
 
योग्य शिक्षक राजनीति में पिसता है,
चरण वंदना का सम्मानों से रिश्ता है।
 

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