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हिंदी दिवस पर निबंध : हृदय की भाषा है हिंदी, जनमानस की अभिलाषा है हिंदी

हिंदी में हस्ताक्षर कर, करें हिंदी दिवस मनाने की शुरुआत

hindi diwas

WD Feature Desk

, शनिवार, 7 सितम्बर 2024 (14:28 IST)
Hindi Diwas 2024 : हृदय की कोई भाषा नहीं है, हृदय-हृदय से बातचीत करता है और हिंदी हृदय की भाषा है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के ये विचार हिंदी दिवस के उपलक्ष में बहुत प्रासंगिक हैं। ये भाषा है हमारे सम्मान, स्वाभिमान और गर्व की। 
 
कबीर का गयान है हिंदी, सरल शब्दों में कहा जाए तो जीवन की परिभाषा है हिंदी। स्वतंत्रता संग्राम के बाद, हमारे देश ने 14 सितंबर 1949 को हिंदी को अपनी राजभाषा के रूप में स्वीकार किया था, जिसके बाद हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से, 14 सितंबर 1953 को पहली बार हिंदी दिवस मनाया गया था। तभी से हर साल इसी दिन ये उत्सव मनाया जाता है ताकि हर व्यक्ति को हिंदी का ज्ञान हो। 
 
अपनी भावना को व्यक्त करने की भाषा है हिंदी 
आज भारत में हिंदी साहित्य की भाषा है, सिनेमा की भाषा है, मनोरंजन की भाषा है। ये हम सभी जानते है, लेकिन इसके पीछे का कारण ये है कि हिंदी सिर्फ भाषा ही नहीं, हमारी भावना भी है। ये हमारी आत्मा का हिस्सा है, और हमारी पहचान है। भारत, विविधताओ का देश है, जहां जितनी संस्कृतियां है, उतनी भाषाएं हैं और उतनी ही बोलिया बोली जाती हैं। इसलिए, हमारा देश भाषाओं का गढ़ है। भारत में लगभग 20,000 भाषाएं बोली जाती हैं। प्रत्येक भाषा की अपनी खासियत और खूबसूरती है, अपनी मधुरता है। भारत देश को एकता के सूत्र में पिरोने वाली हिंदी को राजभाषा का गौरव प्राप्त है। हिंदी भाषा के प्रयोग को बढ़ावा देने और इसके महत्व से भारतीयों को अवगत कराने के लिए हर वर्ष 1-15 सितंबर तक हर वर्ष हिंदी पखवाड़े का आयोजन भी किया जाता है। 
 
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।
- भारतेंदु हरिश्चंद्र 
कई हिंदी के लेखकों ने भी हिंदी में प्रसिद्ध रचनाएं प्रकाशित कीं, जिन्हें हम बचपन से पढ़ते, सुनते और लिखते आ रहे हैं, लेकिन इसके साथ ही उन साहित्यकारों ने हिंदी को राष्ट्र व निज उन्नति का मूल भी बताया जिससे आज हम ये कह सकते हैं कि कहीं  न कहीं, हिंदी, रोजगार की भाषा भी बन सकती है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी को महत्वपूर्ण रूप से स्थापित करवाने के लिए काका कालेलकर, व्यौहार राजेन्द्र सिंह, मैथिलीशरण गुप्त, हजारीप्रसाद द्विवेदी, महादेवी वर्मा, सेठ गोविन्ददास जैसे महान साहित्यकारों ने भी अथक प्रयास किए।
 
साहित्य के हर क्षेत्र में हिंदी भाषा की अहम भूमिका 
किसी भी रूप में, नाटक हो, व्यंग हो, या देशभक्ति गीत हो, साहित्य के हर क्षेत्र में हिंदी भाषा की अहम भूमिका रही है। फिर वो शिवमंगल सिंह की प्रसिद्ध कविता, "वरदान माँगूँगा नही" हो, माखनलाल चतुर्वेदी की कविता, "पुष्प की अभिलाषा" हो, कवि प्रदीप द्वारा लिखा गया, देशभक्ति गीत " ऐ मेरे वतन के लोगो " हो, सुभद्रा कुमारी चौहान की "खूब लडी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी " जैसी कालजयी कविता हो, या शरद जोशी की "परिक्रमा" जैसी रचनाएँ हो।  हिंदी हमेशा भारत की अस्मिता, भारत की राष्ट्र एकता को जोड़ने वाली कड़ी और भारत की गौरवशाली परंपरा का प्रतीक रही है। 
 
कैसे हो भाषा को संजोने की पहल, हस्ताक्षर और नेम प्लेट से करें शुरुआत 
आज ये हम सब का, खासकर हमारी युवा पीढी का कर्तव्य बनता है की हम इस धरोहर को संजो कर रखे और स्वयं हिंदी का वर्चस्व विश्व पटल पर उचा करें। कहते हैं हर काम की शुरुआत हम स्वयं से कर सकते हैं। जैसे यज्ञ में छोटी- छोटी आहुती देकर हमें उसका बड़ा फल प्राप्त होता है, ठीक उसी तरह आप शुरुआत स्वयं से कर सकते हैं और कोई भी संकल्प एक से अनेक की ओर बढ़ता है। जैसे अपने हस्ताक्षर? किसी भी अन्य देश का व्यक्ति अपने हस्ताक्षर अपनी भाषा में करता है, वैसे हम भी ये संकल्प लें  की हम हमारी हिंदी भाषा में अपने हस्ताक्षर करें। अपने घर की नेम प्लेट पर अपना नाम हिंदी भाषा में लिखें। हिंदी दिवस केवल एक दिन मनाया जाए ये ज़रूरी तो नहीं? जैसे हम रोज़ की दिनचर्या के काम करते है वैसे हिंदी को भी अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं और अपनी भूमिका निभाएं। 
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