अथर्व पंवार
हमारा जीवन संगीत के बिना अधूरा है। अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का सबसे अच्छा माध्यम संगीत ही है। हमें गीतों के साथ में संगीत वाद्यों को सुनाने में भी रूचि होती है। चाहे वह तबले की चंचलता भरी थाप हो या फिर मनमोहक सी बंसी हो,सितार की मींड का सीधे ह्रदय तक पहुंचाना हो या हारमोनियम पर की गयी कलाकारी हो, हमें कुछ न कुछ याद रह ही जाता है।
चलिए जानते हैं इन वाद्यों के बारे में रोचक बात -
भारतीय शास्त्रीय संगीत के अनुसार संगीत वाद्यों का चार भागों में वर्गीकरण किया गया है-तत, सुषिर, अवनद्ध और घन।
तत वाद्य-ये वे वाद्य होते हैं जिनमें तारों का उपयोग होता है। इनमें तारों को किसी वस्तु से आघात कर के बजाया जाता है। जैसे सितार को मिजराब से, गिटार को प्लेक्ट्रम से। इसी के साथ सारंगी, वॉयलिन, इसराज भी इसी की श्रेणी में आते हैं जो किसी बॉ के माध्यम से बजाए जाते हैं। वीणा, इत्यादि ऐसे वाद्य जिसमें तारों का प्रयोग होता है तत वाद्य की श्रेणी में आते हैं।
सुषिर वाद्य-इस श्रेणी में वह वाद्य आते हैं जिनमें हवा के माध्यम से स्वर निकलते हैं। बांसुरी, हारमोनियम, शहनाई, माऊथऑर्गन, सेक्सोफोन इत्यादि इसी श्रेणी में आते हैं।
अवनद्ध वाद्य-ये वे वाद्य होते हैं जिनके मुख पर चमड़ा मढ़ा हुआ होता है। इसे हाथ से या लकड़ी के आघात से बजाया जाता है। तबला ,ढोल, पखावज, ढोलक, नगाड़ा इत्यादि इस श्रेणी में आते हैं। मुख्यतः इन वाद्यों में ताल वाद्य ही आते हैं।
घन वाद्य-इन वाद्यों में स्वर या नाद किसी लकड़ी या अन्य धातु के आघात से निकलता है। जल तरंग, काष्ठतरंग इत्यादि इस श्रेणी में आते हैं। संतूर को कई विद्वान घन और तात दोनों श्रेणियों में मानते हैं।