Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

धर्म और राजनीति आज की सबसे बड़ी समस्या में बदल गए हैं

धर्म और राजनीति आज की सबसे बड़ी समस्या में बदल गए हैं
webdunia

अनिल त्रिवेदी (एडवोकेट)

, सोमवार, 15 मई 2023 (21:28 IST)
जीवन को शांति और समाधान देने वाले बुनियादी साधन ही मनुष्य समाज की सबसे बड़ी चुनौती या समस्या बन जाए तो आज का मनुष्य क्या करें? यह आज के काल का यक्षप्रश्न है जिसका उत्तर जो भी मनुष्य आज जीवित है, उन्हें ही खोजना होगा। दुनियाभर में राजनीति और धर्म का जो स्वरूप बन चुका है, वो आज मनुष्यों के लिए खुली चुनौती प्रस्तुत कर रहा है।
 
करीब 70 साल पहले समाजवादी नेता डॉ. राममनोहर लोहिया ने धर्म और राजनीति पर विश्लेषण करते हुए कहा था कि 'राजनीति अल्पकालीन धर्म है और धर्म दीर्घकालीन राजनीति है।' राजनीति और धर्म दोनों ही मनुष्य के सोच-विचार और आचार-व्यवहार को तेजस्वी, यशस्वी और पराक्रमी बनाने के बुनियादी साधन हैं।
 
मनुष्य समाज की हर समस्या का समाधान निकालने का समाधानकारी मार्ग धर्म और राजनीति के पास सहजता से उपलब्ध है। इस वस्तुस्थिति के बाद भी आज की दुनिया में राजनीति और धर्म का स्वरूप ऐसा कैसे हो गया कि इन दोनों धाराओं ने मनुष्य जीवन और मन को अशांति और अंतहीन तनाव में बदल दिया।
 
आज की दुनिया की राजनीति में कभी-कभी विवाद इतने बढ़ जाते हैं कि कोई किसी की नहीं सुनता और अविवेकी, अंतहीन और नतीजाविहीन वाक्-युद्ध छिड़ जाता है। धर्म में अशांति और संघर्ष का कोई स्थान नहीं है फिर भी दुनियाभर में छोटी-बड़ी बसाहटों में भी धर्म के नाम पर नफरत, दंगा और हिंसा होती ही रहती है। आध्यात्मिक अनुभूति का कहीं कोई अता-पता नहीं है।
 
राजनीति यानी लोगों को ताकतवर बनाने का अंतहीन सिलसिला। पर राजनीति का यह अर्थ पूरी तरह बदलकर ताकतवर लोगों की नागरिक विरोधी मनमानी में बदल गया है। राजनीति, नागरिक चेतना का एक महत्वपूर्ण रास्ता है, जो इन दिनों नागरिकों को असहाय और याचक बनाने की दिशा में दिन दूना रात चौगुना बढ़ती ही जा रही है। यहां सवाल यह है कि दुनियाभर में राजनीति और धर्म की कमान नागरिकों के हाथ से फिसलकर केवल सत्तारूढ़ अर्थानुरागी राजनेताओं और तथाकथित या स्वयंभू अर्थ और चढ़ावा प्रेमी धर्मगुरुओं तक ही सिमटती जा रही है।
 
वैचारिक राजनीतिक नेतृत्व और आध्यात्मिक दृष्टि वाले संत खरमौर पक्षी की तरह लुप्तप्राय: हो चुके हैं। राजनीति और धर्म का मूल नेतृत्व नागरिकों के पास सहजता से होना ही चाहिए लेकिन आज नागरिकों की भूमिका अंधे अनुयायियों या यंत्रवत कार्यकर्ताओं में बदल गई है। इस भूमिका परिवर्तन से राजनीति और धर्म का मूल स्वरूप ही बदल गया है।
 
राजनीति और धर्म, अर्थ के बावले साधन मात्र बन गए हैं। किसी भी देश, समाज और समूह में होने वाली गड़बड़ी और अराजकता का मूल कारण प्राय: नागरिकों की उदासीनता, निष्क्रियता और राजनेताओं और धर्मगुरुओं के अंधानुकरण से निकली तात्कालिक उत्तेजना ही प्राय: होती है।
 
आजकल दुनियाभर में जितने भी देश, समाज और समूह हैं, वे सब कमोबेश राजनेताओं और धर्मगुरुओं के भरोसे है या उनकी कठपुतली की तरह हैं। इसी से दुनियाभर में नागरिकों और धर्मावलंबियों की दशा निष्क्रिय या उत्तेजित अविवेकी भीड़ की तरह हो गई है। दुनिया के किसी भी देश के नागरिक स्वतंत्र चेतना के वाहक नहीं रहे।
 
नागरिकों को राजनीति और धर्म के इस स्वरूप से बगावत करनी चाहिए, पर दुनियाभर में प्राय: अधिकांश आबादी नागरिक के बजाय वैश्वीकरण के लाचार और बेबस दृष्टिहीन उपभोक्ताओं में बदलते जा रहे हैं। उदारीकरण और भूमंडलीकरण ने दुनिया के लोगों की नागरिक आजादी को समाप्त कर दिया है।
 
अब दुनियाभर में राज्य सबसे दयनीय संस्थान बन गया है और नागरिकत्व तो हवा में ही उड़ गया है। राष्ट्राध्यक्षों से ताकतवर तो भूमंडलीकरण के व्यापारिक प्रतिष्ठान होते जा रहे हैं। दुनियाभर के राष्ट्राध्यक्ष विकसित देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पास जाकर अपने अपने देश को आर्थिक सहायता के नाम पर आर्थिक गुलाम बनाने का खुला निमंत्रण लेकर मारे मारे घूमते नजर आते हैं।
 
दुनियाभर में राजनीति और धर्म अपने संकुचित स्वरूप से अपनी सार्वभौमिकता को अपने ही हाथों समाप्त करने में मदद करते नजर आ रहे हैं। विकास की अंधी और नागरिकत्व को नेस्तनाबूत करने वाली समझ ने विकास की मारक क्षमता को गहराई से आगे बढ़ाया है। साथ ही नागरिकों की सर्वप्रभुता संपन्नता को लोकतांत्रिक गणराज्यों में भी इतिहास की बात बना दिया है।
 
सारी दुनिया के नागरिक अपनी-अपनी सोच-समझदारी से आनंददायक जीवन सदियों से जीते आए थे। उसे अंधी अर्थप्रधान राजनीति और धर्मरक्षा के स्वयंभू कर्ताधर्ताओं ने स्थायी तनाव पूर्ण जीवन में पूरी तरह बदल दिया है।
 
दुनियाभर के नागरिकों को अपनी स्वतंत्र चेतना और चिंतन के साथ जीते रहने की प्राकृतिक जीवनशैली, विकास की दौड़ में पिछड़ापन है, ऐसा अंधा विचार लोगों के अंतरमन में कूट-कूटकर भर दिया है। तभी तो दुनियाभर में राजनीति की पहली पसंद युद्ध और हिंसा के आधुनिकतम हथियार हैं और नागरिकों के स्वतंत्र विचार बुद्धि से खाने कमाने के स्वावलंबी औजार अजायबघर में जाते जा रहे हैं।
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

Health : क्या सिगरेट छोड़ने में मदद करती है वेपिंग?