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‘जनता कर्फ्यू’ मजाक नहीं, जिंदा रहने के जज्‍बे की प्रैक्‍टिस है, करना ही होगी

नवीन रांगियाल
दुनिया जिस संकट से गुजर रही है, ऐसे वक्‍त में किसी भी देश के प्रधानमंत्री को जिस तरह संबोधित करना चाहिए वो पीएम नरेंद्र मोदी के उद्बोधन में 19 मार्च को नजर आया, यह कोई राजनीतिक भाषण नहीं था, इसमें कोई ‘नैरेटिव’ नहीं था, एक लगातार पसरते और जानलेवा वायरस से आगाह करते हुए उन्‍होंने बेहद गरीमा और पूरी संवेदना के साथ अपनी बात कही।

उन्‍होंने चीन, इटली और इराक की तरह ‘लॉकडाउन’ को देश के ऊपर थोपा नहीं, बल्‍कि उसे ‘जनता कर्फ्यू’ के रूप में स्‍वीकार करने के लिए नागरिकों से उनका सिर्फ एक दिन का वक्‍त मांगा। जो डॉक्‍टर्स कोरोना से लोगों को बचाने के लिए जूझ रहे हैं, जो मीडियाकर्मी देश तक ये सारी सूचनाएं पहुंचा रहे हैं, जो डिलिवरी ब्‍वॅाय आपके लिए भोजन पहुंचा रहे हैं, उनके प्रोत्‍साहन के लिए ‘ताली और थाली’ का कॉन्‍सेप्‍ट रखा, लेकिन जिस तरह से एक वर्ग ने सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री के इस संबोधन का मजाक बनाया, वो दिल को दुखाने वाला है।

इस वर्ग को प्रधानमंत्री से यह अपेक्षा थी कि वो कुछ रोमांचक कहे और देशभर में ‘पैनिक’ फैल जाए। प्रधानमंत्री की बात सुनकर सारे भारतवासी दुकानों और माल्‍स को लूटने के लिए दौड पड़े।

हालांकि जिन कुछ लोगों ने प्रधानमंत्री की अपील को अपने व्‍यंग्‍य का हिस्‍सा बनाया, उनका मोटिव सिर्फ प्रधानमंत्री की खिल्‍ली उड़ाना था, क्‍योंकि वो मोदी हैं।

अगर मोदी इस भाषण के अलावा कोई दूसरा भाषण भी देते तो भी वे इसी तरह उसमें से अपने हिस्‍से की मसखरी निकाल लेते और प्रधानमंत्री पर हास्‍य करते। क्‍योंकि उनका ‘नैरेटिव’ तय था, और उनका नैरेटिव है हर हाल में मोदी का विरोध।

जबकि संकट की इस घड़ी में पीएम की अपील को ‘कलेक्‍टिव’ तरीके से लिया जाना और माना जाना चाहिए, क्‍योंकि प्रधानमंत्री के भाषण में जो संदेश में एक सावधानी, चेतावनी और सजगता छुपी हुई थी। उन्‍होंने फिलहाल सिर्फ एक दिन का ‘जनता कर्फ्यू’ स्‍वीकार करने की बात कही। उन्‍होंने कहा कि जिस तरह से हम निश्‍चिंत होकर बाजार में घूम रहे हैं यह सोचकर की हमारे साथ ऐसा कुछ नहीं होगा, यह सोच गलत है। ऐसे में उन्‍होंने ‘जनता कर्फ्यू’ के तौर पर एक दिन के ‘लॉकडाउन’ की अपील कर लोगों से एक दिन की ‘प्रैक्‍टिस’ करने का संकेत दिया है। मतलब साफ है आने वाले दिनों में स्‍थिति और ज्‍यादा भयावह हो सकती है।

जो आलम इटली और चीन जैसे विकसित देशों में हुआ है, वो भारत जैसे विकासशील देश के लिए कितना चुनौतीभरा होगा। इसी बात को प्रधानमंत्री मोदी ने अपने आधे घंटे के उदबोधन में कहा है।

जाहिर है जनता को अपनी जिम्‍मेदारी समझना होगी, नागरिक होने के प्रमाण देने होंगे। न सिर्फ खुद को बल्‍कि अपने आसपास के लोगों की सेहत का भी ख्‍याल रखना होगा।

समझने की कोशिश करनी होगी कि प्रधानमंत्री ने इतना संभलकर क्‍यों अपनी बात कही, इसे इस तरह समझा जा सकता है कि ‘लॉकडाउन’ से पहले ही कई शहरों में लोग ‘पैनिक बाइंग’ कर रहे हैं, घरेलू चीजों और खाने-पीने की वस्‍तुओं का स्‍टॉक करने लगे हैं।

इसलिए बेहतर होगा प्रधानमंत्री की बात को समझिए, किसी रोमांच की तलाश में मत रहिए, उनका मजtक मत बनाइए, ‘जनता कर्फ्यू’ एक दिन की प्रैक्‍टिस है, संकल्‍प और संयम की प्रैक्‍टिस।

स्‍थिति गंभीर हो सकती है, जिसे सरकार तो पहले से ही संभाल ही रही है, अब आगे यह हमारे जिंदा रहने के जज्‍बे की ‘प्रैक्‍टिस’ जिसे हर हाल में निभाना ही होगी।

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