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सीडीआरआई की वैज्ञानिक परीक्षण सुविधा को मिला भरोसे का प्रमाण पत्र

सीडीआरआई की वैज्ञानिक परीक्षण सुविधा को मिला भरोसे का प्रमाण पत्र
, रविवार, 19 अप्रैल 2020 (14:35 IST)
उमाशंकर मिश्र,
नई दिल्ली, काउंसिल ऑफ साइंटिफिक ऐंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर) के अंतर्गत कार्यरत 38 प्रयोगशालाओं में शामिल सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीडीआरआई) को दवाओं पर उसके शोध एवं विकास पर आधारित कार्य के लिए जाना जाता है।

लखनऊ स्थित सीएसआईआर-सीडीआरआई की कुछ परीक्षण सुविधाओं को उत्कृष्ट वैज्ञानिक पद्धति का पालन करने लिए का गुड लैबोरेटरी प्रैक्टिस (जीएलपी) प्रमाण पत्र दिया गया है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के अंतर्गत कार्यरत राष्ट्रीय उत्तम प्रयोगशाला पद्धति (जीएलपी) अनुपालन निगरानी प्राधिकरण (एनजीसीएमए) द्वारा उत्कृष्ट मानक वैज्ञानिक पद्धति पर अमल करने वाले वैज्ञानिक परीक्षण सुविधा केंद्रों को यह प्रमाण पत्र दिया जाता है।

जीएलपी मापदंडों पर खरा उतरने वाले परीक्षण केंद्र के रूप में सीएसआईआर-सीडीआरआई की वैश्विक स्वीकार्यता बढ़ सकती है। इस प्रमाण पत्र के मिलने के बाद संस्थान द्वारा औषधि अनुसंधान एवं विकास के लिए तैयार किए गए उत्पाद एवं रिसर्च डेटा की स्वीकार्यता संयुक्त राज्य अमेरिका सहित आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) में शामिल सभी देशों में बढ़ सकती है।

सीएसआईआर-सीडीआरआई वर्ष 2017 से एक्यूट टॉक्सिसिटी ऐंड सेफ्टी फार्माकोलॉजी के लिए एक जीएलपी प्रमाणित परीक्षण सुविधा केंद्र के रूप में कार्य कर रहा है। इसी सिलसिले में टॉक्सिसिटी ऐंड म्यूटाजेनसिटी स्टडीज (विषाक्तता एवं उत्परिवर्तजनीयता अध्ययन), जैसे-रिपीट डोज टॉक्सिसिटी स्टडीज, बैक्टीरियल रिवर्स म्यूटेशन (एम्स) परीक्षण, माइक्रोन्यूक्लियस एस्से जैसे कुछ अन्य परीक्षण सुविधाओं के लिए राष्ट्रीय जीएलपी अनुपालन निगरानी प्राधिकरण (एनजीसीएमए) द्वारा जीएलपी प्रमाण पत्र प्राप्त करने में संस्थान को सफलता मिली है।

सीएसआईआर-सीडीआरआई के निदेशक प्रोफेसर तपस कुमार कुंडू ने संस्थान के वैज्ञानिकों को उनके प्रयासों के लिए बधाई दी है। उन्होंने कहा है कि “जीएलपी प्रमाण पत्र मिलने के बाद उत्पादित डेटा की गुणवत्ता अंतरराष्ट्रीय मापदंडों के आधार पर सुनिश्चित करने की हमारी जिम्मेदारी अधिक बढ़ गई है। मुझे विश्वास है कि हमारे वैज्ञानिक इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाएंगे।”

रिपीट डोज टॉक्सिसिटी स्टडीज विषाक्तता के परीक्षण पर आधारित अध्ययन होते हैं, जिन्हें पूर्व नैदानिक दवा विकास कार्यक्रम की रीढ़ माना जाता है। बार-बार दवा की खुराक देने से मरीजों पर उस दवा के दुष्प्रभाव न पड़े, इसके लिए रिपीट डोज यानी बार-बार रसायन की डोज देकर उसकी विषाक्तता के परीक्षण किए जाते हैं। ये परीक्षण सुरक्षित औषधीय उत्पादों के विकास को सुनिश्चित करने में मदद करते हैं।

बैक्टीरियल रिवर्स म्यूटेशन (एम्स) पद्धति में बैक्टीरिया पर परीक्षण किया जाता है और पता लगाने का प्रयास किया जाता है कि क्या रसायन के कारण उस परीक्षण में शामिल बैक्टीरिया के डीएनए में उत्परिवर्तन (Mutation) हो सकता है। यदि परीक्षण पॉजिटिव हो तो यह दर्शाता है कि रसायन उत्परिवर्तन को जन्म दे सकता है और कैंसरकारी हो सकता है।

इसी तरह, माइक्रोन्यूक्लियस परीक्षण का उपयोग संभावित जीनोटॉक्सिक यौगिकों के लिए विषाक्ता स्क्रीनिंग में किया जाता है। जीनोटॉक्सिक एजेंट रासायनिक या अन्य एजेंट होते हैं, जो कोशकीय डीएनए को नुकसान पहुंचाते है, जिसके परिणामस्वरूप उत्परिवर्तन या कैंसर हो सकता है।

कई देशों में लाइसेंसिंग और विनिर्माण से पहले फार्मास्युटिकल उत्पादों, खाद्य एवं पोषक पदार्थों तथा चिकित्सा उपकरणों के बारे में जीएलपी सुविधाओं के माध्यम से उत्पन्न विश्वसनीय डेटा की आवश्यकता होती है।

जीएलपी सुविधा में उत्पन्न डेटा यह सुनिश्चित करता है कि इन रसायनों या उत्पादों के उपयोग से मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए कोई खतरा पैदा नहीं होगा। भारत सहित कई देशों के विनियामक निकाय जीएलपी से प्रमाणित परीक्षण सुविधाओं में उत्पन्न डेटा एवं उत्पाद को अधिक मान्यता देते हैं।

जीएलपी-अनुपालन प्रमाण पत्र प्राप्त करना स्वैच्छिक है। लेकिन, विभिन्न रसायनों या उनके उत्पादों का प्रयोग अथवा विपणन करने वाले सुविधा केंद्र अंतरराष्ट्रीय मान्यता एवं विश्वसनीयता प्राप्त करने के उद्देश्य से अपनी परीक्षण सुविधाओं और रिसर्च डेटा की स्वीकार्यता के लिए जीएलपी प्रमाणन प्राप्त करना पसंद करते हैं। (इंडिया साइंस वायर)

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