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योगी आदित्यनाथ की एक झगड़े से हुई थी राजनीति में एंट्री

योगी आदित्यनाथ की एक झगड़े से हुई थी राजनीति में एंट्री
, बुधवार, 5 जून 2019 (11:45 IST)
योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। योगी आदित्यनाथ पांच बार गोरखपुर से सांसद रह चुके हैं। पांच जून 1972 को जन्मे योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं रही थीं। योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक सफ़र पर एक नज़र डाल रहे हैं गोरखपुर से पत्रकार मनोज सिंह-
 
 
बात दो दशक पहले की है। गोरखपुर शहर के मुख्य बाज़ार गोलघर में गोरखनाथ मंदिर से संचालित इंटर कॉलेज में पढ़ने वाले कुछ छात्र एक दुकान पर कपड़ा ख़रीदने आए और उनका दुकानदार से विवाद हो गया। दुकानदार पर हमला हुआ, तो उसने रिवॉल्वर निकाल ली।
 
 
दो दिन बाद दुकानदार के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग को लेकर एक युवा योगी की अगुवाई में छात्रों ने उग्र प्रदर्शन किया और वे एसएसपी आवास की दीवार पर भी चढ़ गए। यह योगी आदित्यनाथ थे, जिन्होंने कुछ समय पहले ही 15 फरवरी 1994 को नाथ संप्रदाय के सबसे प्रमुख मठ गोरखनाथ मंदिर के उत्तराधिकारी के रूप में अपने गुरु महंत अवैद्यनाथ से दीक्षा ली थी।
 
 
गोरखपुर की राजनीति में एक 'एंग्री यंग मैन' की यह धमाकेदार एंट्री थी। यह वही दौर था, जब गोरखपुर की राजनीति पर दो बाहुबली नेताओं हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही की पकड़ कमज़ोर हो रही थी। युवाओं ख़ासकर गोरखपुर विश्वविद्यालय के छात्र नेताओं को इस 'एंग्री यंग मैन' में हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे महंत दिग्विजयनाथ की 'छवि' दिखी और वो उनके साथ जुड़ते गए।
 
 
अब यह योगी 'हिंदुत्व के सबसे बड़े फ़ायरब्रांड नेता' के रूप में स्थापित हो चुका है। दिल्ली के बाद बिहार में करारी हार से यूपी में अपने प्रदर्शन को लेकर चिंतित भाजपा में पिछले ही साल उन्हें मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रूप में पेश करने की चर्चा हो रही थी। 2016 मार्च में गोरखनाथ मंदिर में हुई भारतीय संत सभा की चिंतन बैठक में आरएसएस के बड़े नेताओं की मौजूदगी में योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने का संकल्प लिया गया।
 
 
तब संतों ने कहा, "हम 1992 में एक हुए तो 'ढांचा' तोड़ दिया। अब केंद्र में अपनी सरकार है। सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला हमारे पक्ष में आ जाए, तो भी प्रदेश में मुलायम या मायावती की सरकार रहते रामजन्मभूमि मंदिर नहीं बन पाएगा। इसके लिए हमें योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाना होगा।"
 
 
गढ़वाल में पैदा हुए आदित्यनाथ
उत्तराखंड के गढ़वाल के एक गांव से आए अजय सिंह बिष्ट के योगी आदित्यनाथ बनने के पहले के जीवन के बारे में लोगों को ज़्यादा कुछ नहीं मालूम, सिवा इसके कि वह हेमवतीनंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय, गढ़वाल से विज्ञान स्नातक हैं और उनके परिवार के लोग ट्रांसपोर्ट बिज़नेस में हैं।
 
महंत अवैद्यनाथ भी उत्तराखंड के ही थे। गोरखनाथ मंदिर में लोगों की बहुत आस्था है। मकर संक्राति पर हर धर्म और वर्ग के लोग बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने आते हैं। महंत दिग्विजयनाथ ने इस मंदिर को 52 एकड़ में फैलाया था। उन्हीं के समय गोरखनाथ मंदिर हिंदू राजनीति के महत्वपूर्ण केंद्र में बदला, जिसे बाद में महंत अवैद्यनाथ ने और आगे बढ़ाया।
 
गोरखनाथ मंदिर के महंत की गद्दी का उत्तराधिकारी बनाने के चार साल बाद ही महंत अवैद्यनाथ ने योगी को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी भी बना दिया। जिस गोरखपुर से महंत अवैद्यनाथ चार बार सांसद रहे, उसी सीट से योगी 1998 में 26 वर्ष की उम्र में लोकसभा पहुंच गए। पहला चुनाव वह 26 हज़ार के अंतर से जीते, पर 1999 के चुनाव में जीत-हार का यह अंतर 7,322 तक सिमट गया। मंडल राजनीति के उभार ने उनके सामने गंभीर चुनौती पेश की।
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हिंदू युवा वाहिनी
इसके बाद उन्होंने निजी सेना के रूप में हिंदू युवा वाहिनी (हियुवा) का गठन किया, जिसे वह 'सांस्कृतिक संगठन' कहते हैं और जो 'ग्राम रक्षा दल के रूप में हिंदू विरोधी, राष्ट्र विरोधी और माओवादी विरोधी गतिविधियों' को नियंत्रित करता है। हिंदू युवा वाहिनी के खाते में गोरखपुर, देवरिया, महाराजगंज, कुशीनगर, सिद्धार्थनगर से लेकर मउ, आज़मगढ़ तक मुसलमानों पर हमले और सांप्रदायिक हिंसा भड़काने के दर्जनों मामले दर्ज हैं।
 
ख़ुद योगी आदित्यनाथ पर भी हत्या के प्रयास, दंगा करने, सामाजिक सदभाव को नुक़सान पहुंचाने, दो समुदायों के बीच नफ़रत फैलाने, धर्मस्थल को क्षति पहुंचाने जैसे आरोपों में तीन केस दर्ज हैं। हिंदू युवा वाहिनी के इन कामों से गोरखपुर में उनकी जीत का अंतर बढ़ने लगा और साल 2014 का चुनाव वह तीन लाख से भी अधिक वोट से जीते।
 
पंचरूखिया कांड
इन घटनाओं की शुरुआत महराजगंज ज़िले में पंचरूखिया कांड से होती है, जिसमें योगी आदित्यनाथ के काफ़िले से चली गोली से सपा नेता तलत अज़ीज़ के सरकारी गनर सत्यप्रकाश यादव की मौत हो गई। सूबे में कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार थी। मामला सीबीसीआईडी को सौंपा गया और उसने जांच में योगी को क्लीन चिट दे दी, हालांकि वादी तलत अज़ीज़ के डटे रहने से मुक़दमा अभी भी चल रहा है।
 
इसके बाद कुशीनगर ज़िले में साल 2002 में मोहन मुंडेरा कांड हुआ, जिसमें एक लड़की के साथ कथित बलात्कार की घटना को मुद्दा बनाकर गांव के 47 अल्पसंख्यकों के घर में आग लगा दी गई। ऐसी घटनाओं की एक लंबी फ़ेहरिस्त है लेकिन किसी में योगी के ख़िलाफ़ न तो रिपोर्ट दर्ज हुई, न उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई हुई।
 
प्रदेश में बसपा, सपा की सरकार रहते हुए भी उनके ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई नहीं हुई। हालांकि दोनों दलों के नेता अपने भाषणों में उन पर सांप्रदायिक हिंसा के आरोप लगाते रहे। हिंदू युवा वाहिनी की हरकतों के कारण पूर्वांचल में हालात खराब होते गए। योगी और हियुवा नेता खुलेआम हिंसा की धमकी देते। मामूली घटनाओं को सांप्रदायिक हिंसा में बदल दिया जाता।
 
एक बार तो नेशनल हाइवे पर ट्रक से कुचलकर गाएं मर गईं, तो इसे आईएसआई की साज़िश बताते हुए तीन दिन की बंदी का ऐलान कर दिया गया। साल 2002 में गुजरात की घटनाओं पर हिंदू युवा वाहिनी ने गोरखपुर बंद कराया था और टाउनहाल में सभा की। सभा में 'एक विकेट के बदले दस विकेट गिराने' और 'हिंदुओं से अपने घरों पर केसरिया झंडा लगा लेने की बात कही गई ताकि पहचान हो सके कि किन घरों पर हमला करना है।'
 
उनके समर्थक नारे लगाते घूमते 'गोरखपुर में रहना है तो योगी-योगी कहना है।' गोरखपुर के बाहर दूसरे जगहों पर यह नारा 'पूर्वांचल में रहना है तो योगी-योगी कहना है' हो जाता। बाद में तो यह नारा यूपी में रहना है तो योगी-योगी कहना है, में तब्दील हो गया।
 
जनवरी 2007 में एक युवक की हत्या के बाद हियुवा कार्यकर्ताओं द्वारा सैयद मुराद अली शाह की मज़ार में आग लगाने की घटना के बाद हालात बिगड़ गए और प्रशासन को कर्फ़्यू लगाना पड़ा। रोक के बावजूद योगी द्वारा सभा करने और उत्तेजक भाषण देने के कारण उन्हें 28 जनवरी 2007 को गिरफ़्तार कर लिया गया।
 
उनको गिरफ़्तार करने वाले डीएम और एसपी को दो दिन बाद ही मुलायम सरकार ने सस्पेंड कर दिया। योगी की गिरफ़्तारी के बाद कई ज़िलों में हिंसा, तोड़फोड़, आगज़नी की घटनाएं हुईं, जिनमें दो लोगों की मौत हो गई। पहली बार पुलिस ने हिंदू युवा वाहिनी पर थोड़ी सख़्ती की, जिसका बयान करते हुए वह लोकसभा में रो पड़े थे।
 
साल 2007 में गिरफ़्तारी ने उनकी और हियुवा की उग्रता में थोड़ी कमी ला दी और अब वह हर घटना में मौक़े पर पहुँचने और अपने हिसाब से न्याय करने की ज़िद नहीं करते। हालांकि आज भी वह अपने प्रिय विषयों लव जिहाद, घर वापसी, इस्लामिक आतंकवाद, माओवाद पर हिंदू सम्मेलनों का आयोजन कर गरजते रहते हैं।
 
बढ़ता हुआ दबदबा
नेपाल में राजतंत्र की समाप्ति और उसके सेकुलर होने पर दुख जताते हैं और नेपाल की एकता के लिए राजशाही की वकालत करते हैं। मंदिर द्वारा चलाए जाने वाली तीन दर्जन से अधिक शिक्षण-स्वास्थ्य संस्थाओं के वह अध्यक्ष या सचिव हैं। वह एक मेडिकल इंस्टीट्यूट बनाने में भी जुटे हैं। मंदिर की सम्पत्तियां गोरखपुर, तुलसीपुर, महराजगंज और नेपाल में भी हैं।
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उनकी दिनचर्या सुबह मंदिर में लगने वाले दरबार से होती है, जिसमें वह लोगों की समस्याएं सुनते हैं और उसके समाधान के लिए अफ़सरों को आदेश देते हैं। इसके बाद क्षेत्र में शिलान्यास, लोकार्पण के कार्यक्रमों और बैठकों में व्यस्त हो जाते हैं।
 
योगी के मीडिया प्रभारी और उनके द्वारा निकाले जाने वाले साप्ताहिक अख़बार 'हिंदवी' जो तीन वर्ष बाद बंद हो गया, के सम्पादक रहे डॉक्टर प्रदीप राव इससे सहमत नहीं हैं कि हियुवा के इस इलाक़े में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के कारण योगी को राजनीतिक सफलता मिली।
 
जनता से सीधा संपर्क
वह कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ की सबसे बड़ी ख़ासियत जनता से सीधा संवाद और संपर्क है। लोग उनमें महंत दिग्विजयनाथ के तेवर और महंत अवैद्यनाथ का सामाजिक सेवा कार्य का जोग देखते हैं। वह कहते हैं कि गोरखनाथ मंदिर के सामाजिक कार्यों का जनता पर काफ़ी असर है।
 
योगी ने हिंदू युवा वाहिनी के अलावा विश्व हिंदू महासंघ से अपने लोगों को जोड़ रखा है। भाकपा माले के सचिव राजेश साहनी कहते हैं कि हिंदू युवा वाहिनी और विश्व हिंदू महासंघ में क्षत्रिय जाति के लोगों का वर्चस्व है। यही कारण है कि कुछ दलित और पिछड़े युवा उनसे जुड़े ज़रूर पर ज़्यादा दिन तक नहीं टिक सके।
 
योगी के साथ रहने वाले नज़दीकी चेहरे बदलते रहते हैं। उनके साथ बराबर दिखने वाले विधायक विजय बहादुर यादव, शंभू चौधरी, विजय दुबे, दयाशंकर दुबे, दीपक अग्रवाल दूसरे दलों में हैं या राजनीति से दूर हो चुके हैं। कभी उनके विरोधी रहे सपा के एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह अब उनके साथ हैं। बसपा सरकार में मंत्री रहे फ़तेहबहादुर सिंह, विपिन सिंह उनके साथ दिखने लगे हैं।
 
भाजपा में रहते हुए भी उनका हर चुनाव में भाजपा नेताओं से टकराव होता रहा है। वह अपने लोगों की सूची नेतृत्व के सामने रख देते और उन्हें टिकट देने की मांग करते। कई बार उन्होंने भाजपा के ख़िलाफ़ बाग़ी उम्मीदवारों को खड़ा किया और उनके प्रचार में उतरकर पार्टी के सामने संकट खड़ा कर दिया, लेकिन अब उनका रुख नरम हुआ है।
 
पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने नाराज़ हियुवा नेताओं को सलाह दी कि वो पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों का विरोध न करें। अपने में यह बदलाव उन्होंने इसलिए किया है ताकि पार्टी की 'बड़ी भूमिकाओं' में फ़िट हो सकें। उनकी नज़र 2017 के यूपी चुनाव पर थी। हालांकि पार्टी के भीतर ही कई नेता मानते रहे हैं कि उनकी राजनीतिक ताक़त को ज़्यादा आंका जा रहा है। लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा उपचुनावों में पार्टी ने उनको आगे किया लेकिन अपेक्षित सफलता नहीं मिली।
 
जिस पूर्वांचल में वह भाजपा के सबसे बड़े नेता हैं, वहां भी 17 साल में बीजेपी विधायकों की संख्या 10 से अधिक नहीं हो पाई थी। हालांकि इस बार पूर्वांचल से भी बीजेपी को कई विधायक मिले हैं।
 
हालांकि चुनाव से साल भर पहले से ही उनके 'योगी सेवक' सोशल मीडिया में उत्तर प्रदेश में 'योगी सरकार' बनाने का प्रचार अभियान शुरू कर चुके थे। उन्हें 'हिंदू पुनर्जागरण का महानायक' और 'सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का प्रतीक' बताया जा रहा था। उनके पास संगठित मीडिया सेल भी रहा है, जिसने कार्यक्रमों का लाइव प्रसारण भी शुरू किया।
 
गायक राकेश श्रीवास्तव गीतों से उनका बखान करते हुए कई एलबम निकाल चुके हैं, जिनमें उन्हें 'हिंदू धर्म की रक्षा के लिए अवतार लेने और हाथ में तलवार उठाने' वाला बताया गया है और जिसकी सेना 'विधर्मिंयों' को घेरकर मार रही है और जिसके डर से 'माओ और नक्सली' भाग रहे हैं।

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