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बेगूसराय: क्या कन्हैया और तनवीर की लड़ाई में गिरिराज की राह हुई आसान

बेगूसराय: क्या कन्हैया और तनवीर की लड़ाई में गिरिराज की राह हुई आसान
, गुरुवार, 25 अप्रैल 2019 (08:02 IST)
रजनीश कुमार, बीबीसी संवाददाता, बेगूसराय
बेगूसराय में चाहे जो जीते लेकिन यहां लोग इस बात का पूरा श्रेय दे रहे हैं कि कन्हैया कुमार के कारण शहर की चर्चा देश भर में हो रही है। यहां के अच्छे होटलों में जगह नहीं है। कन्हैया के कारण शहर में सैकड़ों ऐसे लोग पहुंचे हैं जो इससे पहले कभी बिहार नहीं आए। यहां तक कि विदेशी रिसर्चर भी पहुंचे हैं और कन्हैया के चुनावी अभियान को क़रीब से देख रहे हैं।
 
फ्रांस के थॉमस जो भी इन्हीं रिसर्चरों में से एक हैं। बुधवार की दोपहर थॉमस कन्हैया के कैंपेन को देखने के बाद लंच कर रहे थे तभी उनसे मुलाकात हुई।
 
थॉमस का आकलन है कि कन्हैया जातीय वोट बैंक को तोड़ते दिख रहे हैं और उन्हें हर जाति से वोट मिलेगा। थॉमस का मानना है कि संभव है कि कन्हैया को सबसे कम वोट उनकी अपनी जाति भूमिहार से मिले।
 
थॉमस पिछले 12 दिनों से बेगूसराय में हैं। वो मुस्लिम बस्तियों में जा रहे हैं, दलितों से मिल रहे हैं और इस चीज़ को समझने की कोशिश कर रहे हैं कि कोई युवा जातीय वोट बैंक को ब्रेक कर सकता है या नहीं।
 
थॉमस को बेगूसराय की गलियों और गांवों में झारखंड के सरफराज घूमा रहे हैं। सरफराज जेएनयू में इतिहास से एमए कर रहे हैं। सरफराज पिछले 20 दिनों से बेगूसराय में हैं और उन्होंने मुस्लिम बस्तियों में घूमकर लोगों के मिजाज़ को समझने की कोशिश की।
 
सरफराज कहते हैं, 'मुसलमान कन्हैया को लेकर बहुत आशान्वित हैं। कन्हैया को ये ध्यान से सुन रहे हैं। तनवीर हसन के कारण इनके मन में पसोपेश की स्थिति ज़रूर है। लेकिन इतना तय है कि 50 फीसदी से ज़्यादा मुसलमानों का वोट कन्हैया को जरूर मिलेगा।'
 
बेगूसराय में मुसलमान वोटरों की तादाद लगभग तीन लाख है। यहां किसी एक जाति में भूमिहार सबसे बड़ा तबका है। भूमिहार वोटर चार लाख से ज़्यादा हैं। भूमिहारों के बाद दलित वोटर सबसे ज़्यादा हैं। सरफराज का भी मानना है कि कन्हैया को अपनी जाति से बहुत ज़्यादा वोट नहीं मिलेगा।
 
बेगूसराय के आम मुसलमान आरजेडी उम्मीदवार तनवीर हसन के साथ रहने की बात तो करते हैं लेकिन कन्हैया की भी तारीफ करते हैं।
 
'कन्हैया निर्दलीय रहते तो ज़्यादा अच्छा होता'
 
सोमवार को बेगूसराय के बछवाड़ा में तेजस्वी यादव की रैली में आए मोहम्मद तबरेज से पूछा कि मुसलान क्या सोच रहे हैं? उनका जवाब था, 'तनवीर हसन ठीक हैं। कन्हैया भी ठीक हैं। लेकिन कन्हैया को सीपीआई से नहीं लड़ना चाहिए था। वो निर्दलीय रहते तो ज़्यादा अच्छा होता।'
 
बेगूसराय में ग़ैर-भूमिहारों में कन्हैया की छवि अच्छी है लेकिन उनकी पार्टी की छवि अच्छी नहीं है। यहां तक कि मुसलमानों में भी सीपीआई की छवि बहुत अच्छी नहीं है।
 
सीपीआई यानी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की छवि गैर-भूमिहारों में ऊंची जाति की पार्टी के तौर पर है। बेगूसराय में अभी की सीपीआई की कमान के लिहाज देखें तो ये बात सही भी लगती है। अभी हाल ही में तेजस्वी ने कहा कि बिहार में वर्तमान सीपीआई एक जिले और एक जाति की पार्टी है।
 
कन्हैया का वोट बैंक नहीं है'
बेगूसराय में सीपीएम नेता और वामपंथी विचारक भगवान प्रसाद सिन्हा कहते हैं कि तेजस्वी को जो सिखाया जा रहा है वो कह रहे हैं।
 
सिन्हा कहते हैं, 'लालू प्रसाद भी यही नारा देते थे कि सीपीआई भूमिहारों की पार्टी है। 90 के दशक में सीपीआई जलालुद्दीन अंसारी के नेतृत्व में आगे बढ़ी। कम्युनिस्ट पार्टी में जाति के नाम पर नेतृत्व नहीं मिलता है, जिसमें क्षमता है वो नेतृत्व संभालता है। रामावतार यादव शास्त्री पटना से एमपी रहे। रामअसरे यादव एमपी बने, चंद्रशेखर सिंह यादव एमपी बने, सूरज प्रसाद सिंह कुशवाहा एमपी रहे। जिस समय सीपीआई की बिहार में अच्छी स्थिति थी उस वक़्त की ये हालत थी। कई मुसलमान विधायक बने। क्या अब भी इसे भूमिहारों की पार्टी कहेंगे?'
 
भगवान सिन्हा कहते हैं, 'कन्हैया जाति की राजनीति करता तो उसे सबसे ज़्यादा अपनी जाति से वोट मिलता जबकि सच ये है कि सबसे कम मिलेगा। कन्हैया का कोई वोट बैंक नहीं है। वोट बैंक है तनवीर हसन और बीजेपी का। कन्हैया वोट बैंक की राजनीति को तोड़ रहा है और यह अब दिखने भी लगा है।'
 
सिन्हा मानते हैं कि कन्हैया के उभार से तेजस्वी खुद को राजनीतिक रूप से असुरक्षित महसूस कर रहे हैं इसलिए वादा करने के बाद भी बेगूसराय में तनवीर हसन को महागठबंधन का उम्मीदवार बना दिया। हालांकि तनवीर हसन इस बात से इनकार करते हैं कि तेजस्वी ने कन्हैया को उम्मीदवार बनाने का कोई वादा किया था।
 
तनवीर हसन का मानना है कि भले सीपीआई ऊपरी तौर से जाति विरोधी बातें करती है लेकिन इनके नेताओं के आचरण में जातीय श्रेष्ठता की ग्रंथि उतनी ही मजबूत है।
 
भगवान सिन्हा कहते हैं कि तनवीर हसन भूमिहार मुसलमान हैं इसलिए वो श्रेष्ठता की ग्रंथि का आरोप दूसरों पर नहीं लगा सकते। सिन्हा कहते हैं कि हसन का परिवार भूमिहार से ही मुसलमान बना था।
 
मोदी लहर में भी मिले वोट
तनवीर हसन 2014 के चुनाव में बीजेपी से 58 हज़ार वोटों से हारे थे। मोदी लहर में भी तनवीर हसन को इतना वोट क्यों मिला था?
 
सरफराज कहते हैं, 'तनवीर हसन को तीन लाख 61 हज़ार जो वोट मिले थे वो केवल आरजेडी के वोट नहीं थे। मुसलमानों ने मोदी के कारण उन्हें एकमुश्त वोट किया था। 2014 में तनवीर को सीआईएमएल का भी वोट मिला था। इस बार वो स्थिति नहीं है।'
 
बेगूसराय के भूमिहार कन्हैया को भविष्य के नेता के तौर पर स्वीकार करने को तैयार क्यों नहीं हैं? भगवान सिन्हा कहते हैं कि ऐसा इसलिए भी है क्योंकि कन्हैया खुद भी किसी तबके का नेता बनने नहीं आया है।
 
लेकिन जो भूमिहार वोट करेंगे वो क्यों करेंगे? बेगूसराय में हिन्दुस्तान दैनिक अख़बार के ब्यूरो प्रमुख स्मित पराग कहते हैं, 'कन्हैया जल्लेवाड़ भूमिहार हैं और बेगूसराय में कुल भूमिहारों में ये लगभग आधे हैं। जल्लेवाड़ों में कन्हैया को लेकर सहानुभूति है और ये वोट करेंगे।'
 
कन्हैया-तनवीर की लड़ाई में बीजेपी को फायदा
बेगूसराय में वोटों की लड़ाई कन्हैया और तनवीर हसन में सबसे ज़्यादा है क्योंकि दोनों का निशाना एक ही जगह है। बीजेपी को लग रहा है कि इन दोनों की लड़ाई में उसे फायदा होगा।
 
इस भाव को गिरिराज सिंह के कैंपेन को देखकर भी महसूस किया जा सकता है। मंगलवार को मैं गिरिराज सिंह और उनके काफ़िले के साथ राष्ट्रकवि दिनकर के गांव सिमरिया समेत आठ गांवों में शामिल था लेकिन सिंह ने गाड़ी से उतरने की ज़हमत नहीं उठाई। कहीं किसी को संबोधित नहीं किया। यहां तक कि दिनकर के घर तक नहीं गए।
 
कई लोग मानते हैं गिरिराज सिंह अपनी जीत को लेकर बिल्कुल आश्वस्त हैं और यह भाव तनवीर और कन्हैया के मैदान में होने से और मजबूत हुआ है।
 
सिमरिया के लोगों ने गिरिराज के गाड़ी से नहीं उतरने पर नाराजगी भी जताई लेकिन कई लोगों ने कहा कि मोदी के कारण वो गिरिराज को वोट करेंगे। गिरिराज का काफ़िला सिमरिया पंचायत के गंगा प्रसाद गांव से गुजर रहा था। संकरी गली होने के कारण गाड़ियां रुक गईं।
 
गली में एक घर के बाहर हीरा पासवान से पूछा कि टक्कर में कौन है? उनका जवाब था, 'डफली वाला लड़का (कन्हैया) ठीक लगै छए।'

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