Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

लोकसभा चुनाव 2019: आखिर क्यों न हो सका दिल्ली में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन?

लोकसभा चुनाव 2019: आखिर क्यों न हो सका दिल्ली में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन?
, बुधवार, 24 अप्रैल 2019 (17:01 IST)
- प्रमोद जोशी (वरिष्ठ पत्रकार)
 
महीनों की बातचीत और गहमागहमी के बाद भी दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच समझौता नहीं हुआ और मुकाबला तिकोना होकर रह गया। यह स्थिति दोनों पार्टियों के ख़िलाफ़ और बीजेपी के पक्ष में है। इस तरह से बीजेपी-विरोधी मोर्चे के अंतर्विरोधों का निर्मम सत्य दिल्ली में खुलकर सामने आया है। जब आप दिल्ली में बीजेपी के ख़िलाफ़ एक नहीं हो सकते, तो बाकी देश में क्या होंगे?
 
 
दिल्ली का प्रतीकात्मक महत्व है। यहां सीधा मुक़ाबला होने पर राष्ट्रीय राजनीति में एक संदेश जाता, जिसकी अलग बात होती। दिल्ली के परिणामों का प्रभाव राष्ट्रीय राजनीति में देखने को मिलता और अब मिलेगा। वह कौन सी जटिल गुत्थी थी, जो दिल्ली में सुलझ नहीं पाई? आख़िर क्या बात थी कि दोनों दलों के बीच गठबंधन नहीं हो सका? कांग्रेस कुछ पीछे हटती या 'आप' कुछ छूट देती, तो क्या समझौता सम्भव नहीं था?
 
 
अधकचरी समझ
लगता है कि दोनों तरफ परिपक्वता का अभाव है। पिछले कई महीनों से दोनों तरफ से ट्विटर-संवाद चल रहा था। कभी इसका 'यू टर्न' कभी उसका। कभी इसके दरवाज़े खुले रहते, कभी उसके बंद हो जाते। पता नहीं आपस में बैठकर बातें करते भी थे या नहीं। दोनों तरफ से क्या असमंजस थे कि ऐन नामांकन तक भ्रम बना रहा?
 
 
लगता है कि किसी निश्चय पर पहुंचे बगैर बातें हो रही थीं। यूपी में सपा-बसपा, बिहार में बीजेपी-जेडीयू और महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना के गठबंधनों पर गौर करें, तो पाएंगे कि इन पार्टियों ने समय रहते न केवल गठबंधन किए, बल्कि किसी न किसी ने एक कदम पीछे खींचा। बीजेपी ने बिहार में अपनी जीती सीटों को छोड़ा, तो यह उसकी समझदारी थी। राजनीति में देश-काल के अनुसार ही फ़ैसले होते हैं।
 
 
दोनों तरफ से अनिर्णय
दिल्ली में वोटर को अभी तक यह बात समझ में नहीं आई कि मसला क्या था? एक साल पहले तक आम आदमी पार्टी दिल्ली में गठबंधन चाहती थी, कांग्रेस की दिलचस्पी नहीं थी। अब लग रहा था कि कांग्रेस चाहती थी, वह भी सिर्फ दिल्ली में, पर 'आप' की दिलचस्पी नहीं थी।
 
 
अजय माकन के रहते कुछ और बात थी, उनकी जगह शीला दीक्षित के आने के बाद लगा कि नेतृत्व नहीं चाहता, कार्यकर्ता चाहता है। फिर मामला हरियाणा और पंजाब की सीटों का उठा। अंत में राहुल गांधी का ट्वीट आया कि हम दिल्ली में गठबंधन को तैयार हैं। तब तक 'आप' के घोड़े मुंह मोड़ चुके थे।
 
 
किसे, क्या मिलेगा?
बहरहाल अब दो-तीन सवाल हैं। एक, चुनाव परिणाम क्या होगा? गठबंधन न हो पाने का ज़्यादा नुकसान किसे होगा? और कुछ महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में क्या होगा? गठबंधन होगा या नहीं? उसके पहले लोकसभा चुनाव परिणामों से जुड़ी कुछ पहेलियां भी हैं। जिनके जवाब 23 मई के बाद मिलेंगे।
 
 
गठबंधन होने पर बीजेपी को नुकसान होता, जो अब काफी हद तक नहीं होगा। यह भी सच है कि गठबंधन की सूरत में कांग्रेस और 'आप' के सारे वोटर एक जगह नहीं आ जाते। 'आप' के काफी समर्थक कांग्रेस विरोधी हैं और कांग्रेस के बहुत से वोटर 'आप' विरोधी। कुछ न कुछ वोट तब भी बिखरते। पर एक राजनीतिक सूरत बनती, जो भविष्य की बुनियाद डालती।
 
 
अस्तित्व का सवाल
यह भी साफ़ है कि अब 'आप' के अस्तित्व का सवाल है। पंजाब और दिल्ली से कुछ सांसद आ जाते, तो संसद में उसकी सम्मानजनक स्थिति बनती। राज्यसभा में उपस्थिति पहले से है। ऐसे में वह विधानसभा चुनाव में ज़्यादा आत्मविश्वास के साथ उतरती। संसद में उसे उम्मीद के अनुरूप प्रतिनिधित्व नहीं मिला, तो विधानसभा में उसका दावा और कमज़ोर होगा।
 
 
कांग्रेस की जीवनी शक्ति 'आप' के मुक़ाबले ज़्यादा है। दिल्ली में गठबंधन होता, तो शायद उसे एकाध सीट ज़्यादा मिलती, जो अब नहीं मिलेगी। पर उसे अपनी सामर्थ्य तोलने का मौका मिलेगा। उसकी असल परीक्षा विधानसभा चुनाव में होगी। कांग्रेस को दिल्ली में अपनी खोई ज़मीन वापस लेनी है, तो 'आप' से भी तो लेनी होगी।
 
 
आंकड़ों का खेल
कांग्रेस ने अपने कार्यकर्ताओं के बीच एक सर्वे कराया, जिसका निष्कर्ष था कि गठबंधन करने पर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को फायदा होगा। राहुल गांधी ने इंटरनेट के मार्फत पार्टी कार्यकर्ताओं की राय भी ली। पार्टी तीन सीटों पर लड़ने को राज़ी भी हो गई थी, पर हरियाणा का सवाल आ गया।
 
 
यह पूरा खेल आंकड़ों का है। साल 2014 लोकसभा चुनाव के आंकड़ों को देखें तो दिल्ली में बीजेपी ने 46.63 फ़ीसदी वोटों के साथ सभी सातों सीटों पर कब्जा किया था। आम आदमी पार्टी के वोट प्रतिशत को देखें तो वह 33.08 फ़ीसदी के साथ दूसरे नंबर पर थी। जबकि 15.22 फ़ीसदी वोट के साथ कांग्रेस तीसरे स्थान पर थी।
 
 
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के वोट 48 फ़ीसदी से ज़्यादा होते हैं, जिनके आधार पर बीजेपी को हराया जा सकता था। यह सीधा गणित है, पर पार्टी को कुछ और बातों के बारे में विचार करना है। इस नियम से बंगाल और उत्तर प्रदेश में भी गठबंधन होना चाहिए था, पर नहीं हुआ।
 
 
अगली परीक्षा विधानसभा चुनाव
लोकसभा चुनाव के कुछ महीने बाद जनवरी-फ़रवरी तक विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं। उस चुनाव में भी गठबंधन का सवाल उठेगा। पर बहुत कुछ लोकसभा चुनाव के परिणामों पर निर्भर करेगा। आम आदमी पार्टी का रुख इस वक्त बीजेपी के ख़िलाफ़ है। पता नहीं कुछ महीने बाद उसकी राजनीति की दिशा क्या होगी।
 
 
आम आदमी पार्टी की चिंता मुस्लिम वोटर को लेकर है। राष्ट्रीय स्तर पर धीरे-धीरे मुस्लिम वोट कांग्रेस के साथ जा रहा है। दिल्ली में मुस्लिम वोट का विभाजन हुआ, तो बीजेपी को फायदा होगा। राजनीतिक मैदान में समय के साथ रणनीतियां बदलती हैं। कांग्रेस और 'आप' दोनों की रणनीतियां वास्तविकताओं के दायरे में बनेंगी। दोनों के सामने अस्तित्व का संकट है।
 

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

चर्चा में क्यों है इमरान खान का बयान?