हिन्दू माह के अनुसार हर माह में 5 ऐसे दिन आते हैं जबकि कुछ शुभ कार्य करना उसमें वर्जित होता है और ऐसी भी मान्यता या धारणा है कि इन दिनों में मरने वाले व्यक्ति परिवार के अन्य पांच लोगों को भी साथ ले जाते हैं। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार बैसाख माह का पंचक 15 अप्रैल से प्रारंभ हो रहा है जो 19 अप्रैल तक रहेगा। जानिए इसका असर।
पंचक क्या है : ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चन्द्र ग्रह का धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण और शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद तथा रेवती नक्षत्र के चारों चरणों में भ्रमण काल पंचक काल कहलाता है। इस तरह चन्द्र ग्रह का कुम्भ और मीन राशी में भ्रमण पंचकों को जन्म देता है।
नक्षत्र प्रभाव : हर नक्षत्र के पंचक का अलग अलग प्रभाव या असर होता है। 15 अप्रैल को सुबह 7:36 तक श्रवण नक्षत्र इसके बाद धनिष्ठ नक्षत्र रहेगा। धनिष्ठा नक्षत्र में अग्नि का भय रहता है। इसके बाद शतभिषा नक्षत्र रहेगा।
वार का प्रभाव : जिस भी वार से पंचक प्रारंभ हो रहा है उस वार के अनुसार उनका असर देखा गया है। इस बार का पंचक शनिवार से प्रारंभ हो रहा है। शनिवार को पड़ने वाला पंचक मृत्यु पंचक कहलाता है, जोकि सबसे अशुभ माना गया है।
पंचक में नहीं करते हैं ये पांच कार्य:-
'अग्नि-चौरभयं रोगो राजपीडा धनक्षतिः।
संग्रहे तृण-काष्ठानां कृते वस्वादि-पंचके।।'-मुहूर्त-चिंतामणि
अर्थात:- पंचक में तिनकों और काष्ठों के संग्रह से अग्निभय, चोरभय, रोगभय, राजभय एवं धनहानि संभव है।
-
लकड़ी एकत्र करना या खरीदना
-
मकान पर छत डलवाना
-
शव जलाना
-
पलंग या चारपाई बनवाना
-
दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना।
पंचक के उपाय और समाधान :-
-
यदि लकड़ी खरीदना अनिवार्य हो तो पंचक काल समाप्त होने पर गायत्री माता के नाम का हवन कराएं।
-
यदि मकान पर छत डलवाना अनिवार्य हो तो मजदूरों को मिठाई खिलने के पश्चात ही छत डलवाने का कार्य करें।
-
यदि पंचक काल में शव दाह करना अनिवार्य हो तो शव दाह करते समय पांच अलग पुतले बनाकर उन्हें भी आवश्य लाएं।
-
इसी तरह यदि पंचक काल में पलंग या चारपाई लाना जरूरी हो तो पंचक काल की समाप्ति के पश्चात ही इस पलंग या चारपाई का प्रयोग करें।
-
यदि पंचक काल में दक्षिण दिशा की यात्रा करना अनिवार्य हो तो हनुमान मंदिर में फल चढ़ाकर यात्रा प्रारंभ कर सकते हैं।
-
ऐसा करने से पंचक दोष दूर हो जाता है।