भाषा के दोधारी तलवार हो सकने के बारे में चेतावनी देते हुए यूनेस्को ने कहा है कि पाकिस्तानी स्कूलों में उर्दू का लगातार इस्तेमाल इस विविध जातीय मुल्क को राजनीतिक तनाव की ओर ले गया है। साथ ही इसने यह सिफारिश की है कि बच्चों को उसी भाषा में शिक्षा देनी चाहिए जिसे वे समझते हैं।
'मातृ भाषा दिवस' के अवसर पर यूनेस्को ने एक नीति पत्र जारी करते हुए तुर्की, नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश और ग्वाटेमाला में विविध जातीय समाजों का हवाला दिया और इस बात की सिफारिश की कि बच्चों को उस भाषा में शिक्षा दी जाए जिन्हें वे समझते हैं और जो उनकी भाषा है। गौरतलब है कि उर्दू पाकिस्तान के किसी भी प्रांत की भाषा नहीं है। वहां उर्दू को थोपा गया है जिसके चलते वहां के लोगों में असंतोष है।
यूनेस्को ने शुक्रवार को प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पाकिस्तान के सरकारी स्कूलों में उर्दू भाषा को निर्देश भाषा की तरह लगातार इस्तेमाल किए जाने ने भी राजनीतिक तनाव को बढ़ाया है।
हालांकि पाकिस्तान में आठ प्रतिशत से भी कम आबादी उर्दू भाषा बोलती है। यूनेस्को ने कहा कि आजादी के बाद पाकिस्तान ने अपना गठन होने पर राष्ट्रभाषा के रूप में और स्कूलों में निर्देश भाषा के तौर पर उर्दू का इस्तेमाल स्वीकार किया था। लेकिन छह बड़े भाषायी समूहों और 58 छोटे भाषायी समूहों वाले इस देश में उर्दू अलगाव की भाषा बन गई है। (एजेंसी)