सावन शिवरात्रि श्रावण मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। सावन शिवरात्रि को उत्तर भारत में कांवड़िए गंगाजी से जल लाकर शिवजी का जलाभिषेक करते हैं। शिवरात्रि के बाद सावन में चलने वाली कांवड़ यात्रा समाप्त हो जाती है।
शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव का जलाभिषेक कर उनकी पूजा करने से हर कष्ट से छुटकारा मिल जाता है। श्रावण मास की शिवरात्रि पर महादेव की पूजा से विशेष फल मिलता है। सावन का महीना भगवान शिव के अलावा मां पार्वती की पूजा-आराधना के लिए भी सर्वेत्तम है। ऐसी मान्यता है कि जो भक्त पूरे मन से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना करता है उस पर शिव-पार्वती की असीम अनुकंपा होती है।.
इस शिवरात्रि को व्रत रखने और 11 जोड़ा बेलपत्र चढ़ाने से होता है मनवांछित विवाह। शादीशुदा महिलाएं अपने आगामी जीवन को सुखमय बनाने के लिए उनकी प्रार्थना करती हैं वहीं दूसरी तरफ कुंवारी लड़कियां अच्छे वर की प्राप्ति हेतु शिव पार्वती की पूजा करती हैं।.