सरोज सिंह, बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
केवल दो महीने के ट्रायल के बाद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने दावा किया है कि उनके वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस की ऐसी वैक्सीन तैयार कर ली है, जो कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ कारगर है। गेमालेया इंस्टीट्यूट में विकसित इस वैक्सीन के बारे में उन्होंने कहा कि उनकी बेटी को भी यह टीका लगा है।
रूस ने इस वैक्सीन का नाम 'स्पुतनिक वी' दिया है। रूसी भाषा में 'स्पुतनिक' शब्द का अर्थ होता है सैटेलाइट। रूस ने ही विश्व का पहला सैटेलाइट बनाया था।
उसका नाम भी स्पुतनिक ही रखा था। इसलिए नए वैक्सीन के नाम को लेकर ये भी कहा जा रहा है कि रूस एक बार फिर से अमेरिका को जताना चाहता है कि वैक्सीन की रेस में उसने अमेरिका को मात दे दी है, जैसे सालों पहले अंतरिक्ष की रेस में सोवियत संघ ने अमरीका को पीछे छोड़ा था।
राष्ट्रपति पुतिन ने अपनी बेटी का ज़िक्र करके सबको अचरज में डाल दिया है। वो पब्लिक प्लेटफॉर्म पर अपनी बेटियों के बारे में कहने से हमेशा बचते रहे हैं।
वैक्सीन के बारे में उन्होंने सरकार के मंत्रियों को मंगलवार को संबोधित करते हुए कहा, "आज सुबह कोरोना वायरस की पहली वैक्सीन का पंजीकरण हो गया है।"
पुतिन ने कहा कि इस टीके का इंसानों पर दो महीने तक परीक्षण किया गया और ये सभी सुरक्षा मानकों पर खरा उतरा है।
इस वैक्सीन को रूस के स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी मंज़ूरी दे दी है। माना जा रहा है कि रूस में अब बड़े पैमाने पर लोगों को यह वैक्सीन देनी की शुरुआत होगी, जिसके लिए अक्तूबर के महीने में मास प्रोडक्शन शुरू करने की बात कही जा रही है।
रूसी मीडिया के मुताबिक़ 2021 में जनवरी महीने से पहले दूसरे देशों के लिए ये उपलब्ध हो सकेगी।
हालाँकि रूस ने जिस तेज़ी से कोरोना वैक्सीन विकसित करने का दावा किया है, उसको देखते हुए वैज्ञानिक जगत में इसको लेकर चिंताएँ भी जताई जा रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत दुनिया के कई देशों के वैज्ञानिक अब खुल कर इस बारे में कह रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि उसके पास अभी तक रूस के ज़रिए विकसित किए जा रहे कोरोना वैक्सीन के बारे में जानकारी नहीं है कि वो इसका मूल्यांकन करें।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अंतर्गत आने वाले पैन-अमेरिकन हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के सहायक निदेशक जरबास बारबोसा ने कहा, "कहा जा रहा है कि अब ब्राज़ील वैक्सीन बनाना शुरू करेगा। लेकिन जब तक और ट्रायल पूरे नहीं हो जाते ये नहीं किया जाना चाहिए।"
उनका कहना था- वैक्सीन बनाने वाले किसी को भी इस प्रक्रिया का पालन करना है, जो ये सुनिश्चित करेगा कि वैक्सीन सुरक्षित है और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उसकी सिफ़ारिश की है।
पिछले हफ़्ते विश्व स्वास्थ्य संगठन ने रूस से आग्रह किया था कि वो कोरोना के ख़िलाफ़ वैक्सीन बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय गाइड लाइन का पालन करे।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के तहत जिन छह वैक्सीन का तीसरे चरण का ट्रायल चल रहा हैं, उनमें रूस की वैक्सीन का ज़िक्र नहीं है। विश्व के दूसरे देश इसलिए भी रूस की वैक्सीन को लेकर थोड़े आशंकित हैं।
वैक्सीन ट्रायल डेटा उपलब्ध नहीं : स्पुतनिक-वी को लेकर एक और भी चिंता है। दरअसल जिस कोरोना वैक्सीन को बना लेने का दावा रूस कर रहा है, उसके पहले फेज़ का ट्रायल इसी साल जून में शुरू हुआ था।
बीबीसी लंदन के चिकित्सा संवाददाता, फ़र्गस वाल्श के मुताबिक़ रूस ने वैक्सीन बनाने के सारे ट्रायल पूरा करने में ज़्यादा ही तेज़ी दिखाई है। चीन, अमरीका और यूरोप में वैक्सीन ट्रायल शुरू होने के बाद रूस ने अपने वैक्सीन का ट्रायल 17 जून को शुरू किया था।
मॉस्को के गेमालेया इंस्टीट्यूट में विकसित इस वैक्सीन के ट्रायल के दौरान के सेफ़्टी डेटा अभी तक जारी नहीं किए गए हैं। इस वज़ह से दूसरे देशों के वैज्ञानिक ये स्टडी नहीं कर पाए हैं कि रूस का दावा कितना सही है।
फ़र्गस वाल्श के मुताबिक़ किसी भी बीमारी में केवल पहले वैक्सीन बना लेने का दावा ही सब कुछ नहीं होता। वैक्सीन कोरोना संक्रमण से बचाव में कितनी कारगर है, ये साबित करना सबसे ज़रूरी है। रूस की वैक्सीन के बारे में ये जानकारी दुनिया को अभी नहीं है और ना ही रूस ने इस बारे में कोई दावा ही किया है।
अमेरिका और रूस में भी उठ रहे हैं सवाल : पिछले महीने अमेरिका के संक्रमण रोग विशेषज्ञ डॉक्टर एंथनी फाउची ने भी रूस और चीन के वैक्सीन के ट्रायल की तेज़ी पर शक जताया था।
उस वक़्त भी डब्लूएचओ के प्रवक्ता ने कहा था कि किसी वैज्ञानिक ने वैक्सीन बनाने की दिशा में कोई भी क़ामयाबी हासिल की, ये अच्छी ख़बर है। लेकिन नया वैक्सीन खोजना और उस दिशा में एक क़दम आगे बढ़ाने, इन दोनों बातों में बहुत बड़ा फ़र्क होता है।
दरअसल वैक्सीन ट्रायल में कई स्टेज होते हैं, जिनको पार करने में सालों का वक़्त लगता है।
मेडिकल जर्नल लैंसेट के एडिटर इन चीफ़ रिचर्ड आर्टन के मुताबिक़ विश्व में सबसे तेज़ी से आज तक जो टीका बना है, वो ज़ीका वायरस का बना है, जिसमें दो साल का वक़्त लगा था।
लेकिन उन्होंने ये भी जोड़ा कि जब तक ज़ीका वायरस के ख़िलाफ़ टीका बन कर तैयार हुआ, तब तक, उसका कहर कम हो चुका था, इसलिए वो टीका कितना सफल रहा है, इस बारे में ज़्यादा डेटा उपलब्ध नहीं है। हालाँकि किसी भी वैक्सीन का पूरी तरह ट्रायल ख़त्म होने में अमूमन 7 साल लगते हैं।
अगर कोरोना वैक्सीन दुनिया इतने समय से पहले खोज लेती है, तो ये अब तक का सबसे तेज़ी से खोजा जाने वाला वैक्सीन होगा।
रूस के वैक्सीन बना लेने के दावे पर विश्व स्वास्थ्य संगठन और अमरीका को ही केवल भरोसा नहीं है। ख़ुद रूस में भी इन दावों पर सवाल उठ रहे हैं।
मॉस्को स्थित एसोसिएशन ऑफ क्लीनिकल ट्रायल्स ऑर्गेनाइजेशन (एक्टो) ने रूसी सरकार से इस वैक्सीन की अप्रूवल प्रक्रिया को टालने की गुज़ारिश की है। उनके मुताबिक़ जब तक इस वैक्सीन के फेज़ तीन के ट्रायल के नतीजे सामने नहीं आ जाते, तब तक रूस की सरकार को इसे मंज़ूरी नहीं देनी चाहिए।
एक्टो नाम के इस एसोसिएशन में विश्व की टॉप ड्रग कंपनियों का प्रतिनिधित्व है। एक्टो के एक्ज़िक्यूटिव डायरेक्टर स्वेतलाना ज़ाविडोवा नें रूस की मेडिकल पोर्टल साइट से कहा है कि बड़े पैमाने पर टीकाकरण का फ़ैसला 76 लोगों पर इस वैक्सीन के ट्रायल के बाद लिया गया है। इतने छोटे सैम्पल साइज़ पर आज़माए गए टीके की सफलता की पुष्टि बहुत ही मुश्किल है।
आपको बता दें कि ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में जिस कोरोना वैक्सीन के तीसरे चरण का ट्रायल चल रहा है, उसमें 10000 लोगों पर इसका ट्रायल किया जा रहा है। पहले चरण में भी 1000 से ज़्यादा लोगों पर इसका ट्रायल किया गया था।
द टेलीग्राफ़ की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ ब्रिटेन ने रूस की वैक्सीन में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है।
क्या भारत इस वैक्सीन को ख़रीदेगा : ऐसे में सवाल उठता है कि क्या डब्लूएचओ, अमरीका और ब्रिटेन के बाद भरोसा ना करने पर भी भारत ये वैक्सीन ख़रीदेगा?
भारत और रूस अच्छे दोस्त हैं। हाल ही में देश के रक्षा मंत्री कोरोना के समय में रूस का दौरा करके भी लौटे हैं। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ रूस भारत को भी ये वैक्सीन बेचना चाहता है। लेकिन भारत की तरफ़ से अब तक इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।
मंगलवार को रूस की वैक्सीन संबंधित दावे आने के बाद स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने कहा कि इस बारे में वैक्सीन पर बनी एक्सपर्ट ग्रुप ही फ़ैसला करेगी।
भारत में कोरोना की वैक्सीन कब और कैसे मिलेगी, इसको लेकर बुधवार को एक अहम बैठक होने वाली है। इस बैठक की अध्यक्षता नीति आयोग के सदस्य वीके पॉल करेंगे। इसमें इस बात पर भी चर्चा होगी कि क्या भारत रूस से उनकी बनाई वैक्सीन ख़रीदेगा या नहीं।
इस बैठक से पहले एम्स के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने कहा कि रूस की वैक्सीन ख़रीदने का फ़ैसला करने से पहले भारत को दो बातों का पता लगाना होगा। पहला ये कि उनका ट्रायल डेटा क्या कहता है। मसलन कितने लोगों पर ट्राई किया गया, नतीजे क्या आए, कितने दिनों तक के लिए ये कारग़र साबित होता है।
साथ ही ये पता लगाना भी आवश्यक होगा कि ये वैक्सीन सेफ़ भी या नहीं। एक निज़ी टेलीविज़न चैनल को इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि इन दोनों पैमानों पर आश्वस्त होने के बाद ही भारत को रूस से वैक्सीन ख़रीदने की दिशा में क़दम उठाना चाहिए।
यहाँ ये जानना ज़रूरी है कि भारत में भी स्वदेशी वैक्सीन का ट्रायल चल रहा है। भारत बायोटेक की वैक्सीन का फेज़ टू, फेज़ थ्री ट्रायल चल रहा है। इसके साथ ही ब्रिटेन में जिस वैक्सीन का ट्रायल तीसरे चरण में पहुँच चुका है, उसके लिए भारत के सीरम इंस्टीट्यूट ने ऑक्सफोर्ड के साथ करार किया है। भारत में बड़े पैमाने पर वैक्सीन तैयार करने की क्षमता भी है।
इसलिए जानकार रूस के साथ वैक्सीन के करार को लेकर बहुत उत्साहित नहीं दिख रहे हैं।
विश्व भर में कोरोना वैक्सीन की रेस : रूस अकेला देश नहीं है, जो वैक्सीन बनाने में लगा है। दुनिया भर में 100 से भी ज़्यादा वैक्सीन शुरुआती स्टेज में हैं और 20 से ज़्यादा वैक्सीन का मानव पर परीक्षण हो रहा है।
अमेरिका में छह तरह की वैक्सीन पर काम हो रहा है और अमेरिका के जाने माने कोरोना वायरस विशेषज्ञ डॉक्टर एंथनी फ़ाउची ने कहा है कि साल के अंत तक अमरीका के पास एक सुरक्षित और प्रभावी वैक्सीन हो जाएगी।
ब्रिटेन ने भी कोरोना वायरस वैक्सीन को लेकर चार समझौते किए हैं। चीन की सिनोवैक बायोटेक लिमिटेड ने मंगलवार को कोविड-19 वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायल के अंतिम चरण की शुरुआत की है। इस वैक्सीन का ट्रायल इंडोनेशिया में 1620 मरीज़ों पर किया जा रहा है। भारत में भी स्वेदशी वैक्सीन का ह्यूमन ट्रायल शुरू हो चुका है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि 2021 के शुरुआत में ही कोरोना का टीका आम जनता के लिए उपलब्ध होगा।