Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

ईरानी स्कूली छात्राओं को क्या गैस के ज़रिए ज़हर दिया जा रहा है?

ईरानी स्कूली छात्राओं को क्या गैस के ज़रिए ज़हर दिया जा रहा है?

BBC Hindi

, रविवार, 5 मार्च 2023 (07:45 IST)
रियलिटी चेक, बीबीसी मॉनिटरिंग और बीबीसी फ़ारसी
एक हज़ार से ज़्यादा ईरानी छात्र पिछले तीन महीनों में बीमार हुए हैं। इन छात्रों में ज़्यादातर स्कूली छात्राएं शामिल हैं। सूत्रों के बीमार होने के पीछे संभवतः ज़हरीली गैस की ख़बरें आ रही हैं। क्या है जो इतनी बड़ी संख्या में छात्रों को बीमार कर रहा है?
 
बुधवार को ईरान में कम से कम 26 स्कूलों में दर्जनों लड़कियां कथित तौर पर बीमार पड़ गईं जिसके बाद इस मामले ने तूल पकड़ लिया है।
 
बीमार होने वालों में एक जैसे लक्षण दिखाई दे रहे हैं। छात्राओं को सांस लेने में परेशानी, मतली, चक्कर आना और थकान का सामना करना पड़ रहा है। सवाल है कि इन मामलों के पीछे वजह क्या है? और ये मामले पूरे ईरान में कैसे फैल गए?
 
पहला मामला
पहला मामला ईरान के कोम शहर से आया, जहां एक स्कूल में 18 छात्राएं बीमार पड़ गईं। छात्रों को 30 नवंबर को अस्पताल ले जाया गया। तब से स्थानीय मीडिया के अनुसार आठ प्रांतों में कम से कम 58 स्कूलों में ऐसे मामले दर्ज किए गए हैं।
 
प्राइमरी और उच्च स्कूलों में ज़्यादातर मामलों में लड़कियां शामिल हैं। हालांकि लड़कों और शिक्षकों के भी बीमार होने की कुछ ख़बरें सामने आई हैं।
 
बीबीसी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए दर्जनों वीडियो का विश्लेषण किया है और जिन स्कूलों में वीडियो बनाई गई उनका सत्यापन भी किया है।
 
इन वीडियोज़ में कई युवा लोगों को परेशानी का सामना करते हुए देखा जा सकता है, वहीं कुछ में छात्रों को एंबुलेंस की मदद से अस्पताल ले जाया जा रहा है, तो कुछ बिस्तर पर लेटे हुए हैं।
 
कुछ वीडियो में एंबुलेंस आते हुए और स्कूल के बाहर जमा भीड़ भी दिखाई दे रही है। तेहरान के पास शहरयार के एक स्कूल की छात्रा ने कहा कि उसे और उसके दोस्तों को कुछ अजीब सी गंध आ रही थी।
 
उन्होंने बीबीसी फारसी को बताया, "यह गंध बहुत बेकार थी, जैसे कोई सड़ा हुआ फल होता है, लेकिन यह गंध बहुत तेज़ थी।"
 
छात्रा ने बताया, "अगले ही दिन कई छात्र बीमार पड़ गए और स्कूल नहीं आए। हमारे इंग्लिश के टीचर भी बीमार पड़ गए थे।"
 
उन्होंने कहा, "जब मैं घर गई, मुझे चक्कर आ रहा था और मैं खुद को बीमार महसूस कर रही थी, मेरी मां बहुत परेशान थी क्योंकि मैं बहुत पीली पड़ चुकी थी और मुश्किल से सांस ले रही थी। किस्मत से मैं जल्द ही ठीक हो गई। हमारे स्कूल के ज़्यादातर बच्चे 24 घंटे में ठीक हो गए"
 
जब दूसरे स्कूलों से भी इस तरह की खबरें आईं तो हमारे स्कूल की प्रिंसिपल और सीनियर टीचर डर गए थे। उन्होंने हमें कहा कि जो कुछ हुआ है उसकी बाहर जाकर बात न करें।
 
मामलों के पीछे क्या है वजह?
छात्रों के बीमार होने के पीछे सरकारी अधिकारी अलग अलग कारण बता रहे हैं। वहीं ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने असल कारणों की जांच करने का आदेश दिया है।
 
ईरान में कई लोगों का मानना है कि लड़कियों के स्कूलों को बंद करने की कोशिश के तहत छात्रों को जानबूझकर ज़हर दिया जा रहा है, जो सितंबर से सरकार विरोधी प्रदर्शनों के केंद्रों में से एक रहा है।
 
ईरान में लड़कों के लिए अलग स्कूल हैं और लड़कियों के लिए अलग। कुछ छात्रों और अभिभावकों का मानना है कि हाल ही में सरकार विरोधी प्रदर्शनों में भाग लेने के कारण स्कूली छात्राओं को टारगेट किया जा रहा है। लेकिन बीमार होने के कारणों का अभी तक साफ साफ पता नहीं लगा है।
 
रॉयल युनाइटेड सर्विसेज़ इंस्टीट्यूट (आरयूएसआई) के एक एसोसिएट फ़ैलो और रासायनिक हथियार विशेषज्ञ डैन कास्ज़ेटा ने कहा, "कथित पदार्थ का पता लगाना अक्सर एकमात्र उपयोगी सबूत होता है, लेकिन यह बेहद मुश्किल हो सकता है"।
 
उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा, "इस तरह के पदार्थ का पता करने के लिए एक्सपोजर के समय आपको वहां पर सही उपकरणों के साथ मौजूद होना पड़ेगा।"
 
उन्होंने कहा कि ईरान में कई गवाहों ने गंध का ज़िक्र किया है। जिसमें कीनू या सड़ी हुई मछली जैसी गंध की बात हो रही है, लेकिन यह भ्रामक भी हो सकता है।
 
खून जांच से क्या पता चला?
कास्ज़ेटा का कहना है, "ईरान की इन घटनाओं में जिस तरह की गंध का ज़िक्र हो रहा है उसे विशेष रासायनिक खतरों से जोड़ना मुश्किल है।"
 
कुछ वीडियोज़ में लड़कियों को आंसू गैस के बारे में शिकायत करते हुए सुना जा सकता है, जिसका हाल ही में सरकार विरोधी प्रदर्शनों के दौरान इस्तेमाल किया गया है।
 
कास्ज़ेटा ने कहा कि खराब आंसू गैस के गोले इस तरह की गंध छोड़ सकते हैं। उन्होंने कहा कि खून और पेशाब की जांच करके सही जवाब पाया जा सकता है लेकिन यह अपराधियों को पकड़ने में ज्यादा मदद नहीं कर पाएगा।
 
उन्होंने कहा, "हजारों केमिकल कमपाउंड ऐसे हैं जिनकी गंध लोगों को बीमार और परेशान कर सकती है।"
 
कास्ज़ेटा के अनुसार ईरान में हुई घटनाएं वैसी ही हैं जैसा साल 2010 में अफगानिस्तान के स्कूलों में कथित जहर देने के मामले सामने आए थे।
 
उन्होंने कहा कि उस समय अफगानिस्तान में मामलों की ठीक से जांच नहीं हुई जिसके चलते काफी हद तक मामले अनसुलझे ही रहे।
 
लीड्स विश्वविद्यालय में पर्यावरण टॉक्सिकोलॉजी के एक प्रोफेसर एलेस्टेयर हे ने कुछ ईरानी स्कूली छात्राओं के खूनी जांच के नतीजों की समीक्षा की है।
 
उन्होंने कहा कि खूनी जांच की जो रिपोर्ट्स आई हैं उनमें कोई टॉक्सिक पदार्थ नहीं पाया गया है। उनके मुताबिक उन्हें ये रिपोर्ट्स ईरान में उनके सूत्रों ने अनौपचारिक रूप से भेजी थीं।
 
दुनियाभर में संदिग्ध रासायनिक हमलों की जांच करने वाले प्रोफ़ेसर हे ने कहा, "इस वक्त कोई भी चीज़ पक्के तौर पर नहीं कही जा सकती है, क्योंकि इसके लिए कई तरह की चीजों की जांच करने की जरूरत होगी।"
 
हालांकि उन्होंने कीटनाशकों में इस्तेमाल होने वाले नर्व एजेंट या ऑर्गेनोफॉस्फेट जैसे जहर के जिम्मेदार होने की संभावना से इनकार किया है।
 
प्रोफ़ेसर हे ने कहा, "इन मामलों में महत्वपूर्ण है कि बच्चे 24 घंटे के अंदर ठीक हो गए हैं। वहीं इसके उलट कई तरह के केमिकल में पीड़ित काफी समय बीमार रहते हैं।"
 
उन्होंने कहा कि जांच करने वालों को बहुत ही व्यवस्थित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और सभी बीमार लोगों की खून और पेशाब जांच के साथ साथ उनका इंटरव्यू भी करना चाहिए।
 
एक मनोवैज्ञानिक स्रोत?
प्रोफ़ेसर हे और मिस्टर कास्ज़ेटा दोनों ने संभावित जहरीले पदार्थ से इंकार न करते हुए सुझाव दिया कि मनोवैज्ञानिक कारक इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
 
किंग्स कॉलेज लंदन में मनोचिकित्सक और महामारी विशेषज्ञ प्रोफेसर साइमन वेस्ली ने कहा कि कई प्रमुख महामारी विज्ञान कारकों ने उन्हें यकीन दिलाया है कि ये जहर की एक श्रृंखला नहीं थी, बल्कि इसके बजाय सामूहिक सामाजिक बीमारी का मामला था। इसमें लक्षण एक ग्रुप में आपस में फैले हैं जिसका कोई साफ बायोमेडिकल कारण नहीं है।
 
उन्होंने कहा कि देशभर में आ रहे मामलों में मुख्य रूप से स्कूली छात्राएं प्रभावित हो रही हैं, जबकि लड़के और वयस्क इसमें ज्यादा नहीं हैं। उन्होंने कहा कि मामलों में बीमार होने वाले छात्रों का जल्द ठीक होना भी एक महत्वपूर्ण तथ्य है।
 
प्रोफेसर साइमन वेस्ली का कहना है कि सोशोजेनिक बीमारी के मामलों को मास हिस्टीरिया भी कहा जाता है, जिसमें लक्षण वास्तविक होते हैं, लेकिन यह लक्षण किसी जहर की वजह से नहीं बल्कि एंग्जाइटी के चलते होते हैं।
 
उन्होंने कहा कि जहर के मामले में शुरुआती चरण बहुत एक जैसे होते हैं। इसमें आपकी धड़कन तेज होने लगती है, आप बेहोश हो सकते हैं, पीले पड़ सकते हैं, आपके पेट में अजीब सी गुड़गुड़ाहट हो सकती है, आप कांपने लग सकते हैं। इस तरह के लक्षण संक्रमण, जहर या सामूहिक तौर पर एंग्जाइटी से हो सकते हैं।
 
उन्होंने कहा कि यह कोई हैरान करने की बात नहीं है कि सरकार विरोधी प्रदर्शनों में शामिल होने के कारण भी ईरानी स्कूलों में ऐसा हो सकता है।
 
उन्होंने कहा कि हाल ही के ईरानी मामले, साल 1990 में कोसोवो में अज्ञात बीमारी के प्रकोप और 1986 में कब्जे वाले वेस्ट बैंक के मामलों की याद दिलाते हैं।
 
प्रो वेस्ली ने कहा कि दोनों में से किसी भी मामले में बायो मेडिकल कारणों का पता नहीं चल पाया था और विशेषज्ञों का मानना है कि वे बड़े पैमाने पर सामाजिक बीमारी का परिणाम थे।
 
कास्ज़ेटा का कहना है कि हमें इस संभावना को स्वीकार करना होगा कि हम नहीं जान पाएंगे कि वास्तव में क्या हुआ। कई अलग अलग चीजें हुईं और हम उन्हें एक साथ मिला रहे हैं।
 
रिपोर्टिंग- शायद सरदारिज़ादेह, निको केलबाकियानी, विलियम मैक्लेनन, जाना तौशिंस्की, जोशुआ चीथम, कायलीन डेवलिन और फ़रानक अमिदी

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

पाकिस्तान में बंद होने के कगार पर दवा कंपनियां