इंदौर 1818 के पूर्व केवल परगना मुख्यालय था और इसकी आबादी भी अधिक नहीं थी। 1818 के पश्चात यह होलकर की राजधानी बना और उसी वर्ष यहां रेसीडेंसी की भी स्थापना हुई।
धीरे-धीरे इंदौर नगर मालवा का प्रमुख व्यापारिक, औद्योगिक व शैक्षणिक केंद्र बनता गया। फिर भी 1866-67 में भी नगर बहुत अधिक विकसित न था। उस वर्ष तक नगर में कुल 10,731 मकान थे जिनमें 56,730 नागरिक निवास करते थे। इनमें से 39,862 वयस्क तथा 16,868 बच्चे थे। कपड़ा मिल की स्थापना से देहाती क्षेत्रों से कुछ श्रमिक नगर में आकर बस गए थे।
अफीम व्यापार का सबसे बड़ा केंद्र : इंदौर नगर अफीम व्यापार का सबसे बड़ा केंद्र था। इंदौर रेसीडेंसी से भारत सरकार को भेजी गई रिपोर्ट में 1866 के इंदौर का विवरण इस प्रकार है- यह नगर बहुत संपन्न है। मुख्यत: अफीम निर्माण व उसके व्यापार के कारण। यह इतनी बड़ी मात्रा में होता है कि नगर के हजारों लोग प्रत्यक्षत: या अप्रत्यक्ष रूप से इससे अपनी आजीविका चलाते हैं। लेकिन इस नगर की स्वच्छता व्यवस्था की शर्मनाक तरीके से उपेक्षा की जा रही है। यहां के शासक को कई बार सलाह देने के बाद भी वे इस दिशा में स्थायी रूप से कुछ नहीं करते।'
1868 में नगर के प्रभावशाली व्यापारियों ने मिलकर महाराजा से उक्त गंदगी व अस्वास्थ्यकर वातावरण को समाप्त करने की दिशा में चर्चा की और संभावित प्रयासों पर संवाद हुआ।
नगर में सफाई का काम मकान मालिकों द्वारा सफाई कामगारों को निजी रूप से पारिश्रमिक देकर करवाया जाता था। इस तरह व्यक्तिगत भवनों की तो सफाई हो जाती थी किंतु सार्वजनिक स्थानों, गलियों और सड़कों की सफाई की कोई व्यवस्था नहीं थी। निजी निवासों की स्वच्छता का निरीक्षण करने वाला कोई अधिकारी नहीं था।
नगर में गटरों का अभाव था जिसके कारण घरों का गंदा पानी खुले मैदानों में फैला जाया करता था या गलियों और सड़कों पर बहा करता था जिससे सारे नगर का वातावरण दूषित व अस्वास्थ्यकर बनता रहता था। कृष्णपुरा मार्ग पर, जो उस समय सबसे अधिक व्यस्त मार्ग था, मोहल्ले के कई मकानों का गंदा पानी कई स्थानों से होकर बहता रहता था। इस कारण उस मार्ग को पार करने में बहुत कठिनाई होती थी।
इस अस्वास्थ्यकर वातावरण को समाप्त करने व नगर में स्थानीय स्वशासन विकसित करने के उद्देश्य से इंदौर में 1870 ई. में नगर पालिका की स्थापना की गई। प्रारंभिक अनुदान के रूप में 12,000 हजार रुपए स्वीकृत किए गए। साथ ही नगर पालिका को ऐसे मकानों पर कर लगाने की अनुमति दी गई जिनके मकन मालिकों को किराया प्राप्त होता था। इस प्रकार के करारोपण से नगर पालिाका की वार्षिक आय 36,000 रुपए आंकी गई थी।
नगर पालिका समिति के सदस्यों का चयन शासन द्वारा मकान मालिकों में से किया जाता था। प्रत्येक मोहल्ले से इस प्रकार के दो सदस्यों का चयन किया जाता था। इंदौर नगर पालिका के प्रथम अध्यक्ष होने का सम्मान बक्षी खुमानसिंह को और उपाध्यक्ष होने का रामजी वकील सा. को प्राप्त हुआ। प्रथम सचिव के रूप में नगर फौजदार श्री नारो भीकाजी गर्दे को नियुक्त किया गया था। इस समिति का कार्यकाल एक वर्ष का ही होता था किंतु शेष अधिकारी निरंतर कार्य करते रहते थे।
इंदौर में नगर पालिका की स्थापना होते ही सुधार कार्य भी प्रारंभ हुए। इंदौर रेजीडेंट कर्नल एच.डी. डेली ने नगर की स्थिति का विवरण 1873 में भारत सरकार को भेजी अपनी रिपोर्ट में इस प्रकार किया- 'स्थानीय सुधार जारी हैं यद्यपि प्रगति धीमी है। फिर भी प्रमुख मार्ग पक्के बना दिए गए हैं और उनके दोनों ओर गटरों का निर्माण किया गया है।
नगर में से वाहन ले जाना आज भी बहुत मुश्किल है लेकिन मुख्य बाजार की सड़कें काफी सुधार दी गई हैं। यही बहुत संतोषजनक है कि इस कार्य की शुरुआत कर दी गई है और उस पर निरंतर ध्यान दिया जा रहा है। मालवा का सबसे बड़ा शहर इंदौर शीघ्र ही गंदगी अस्वास्थ्यकर वातावरण से मुक्त हो जाएगा।