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जीवाश्म ईंधन हटाओ या कम करोः कोई फर्क पड़ेगा?

जीवाश्म ईंधन हटाओ या कम करोः कोई फर्क पड़ेगा?

DW

, शनिवार, 9 दिसंबर 2023 (10:59 IST)
-मार्टिन कुएब्लर
 
कॉप28 समझौते के अधिकांश शुरुआती मसौदे, जलवायु उत्सर्जनों के लिए जिम्मेदार जीवाश्म ईंधन के 'फेजडाउन या फेजआउट' से संबंधित हैं। अंतिम दस्तावेज पर भी विवाद होना तय है। इसमें अंतर क्या है- और इसका कोई मतलब भी है? जीवाश्म ईंधनों से मिलने वाली ऊर्जा, वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों के लिए जिम्मेदार है। इस मुद्दे पर, संयुक्त राष्ट्र सम्मेलनों में सबकी राय हमेशा बंटी रही है। 
 
इस बार का सम्मेलन, तेल और गैस उद्योग में अग्रणी देश, संयुक्त अरब अमीरात में हो रहा है। ऐसे में मुद्दे ने पहले की अपेक्षा ज्यादा ध्यान खींचा है।
 
संयुक्त अरब अमीरात की सरकारी तेल कंपनी एडनॉक के मालिक और कॉप28 जलवायु वार्ताओं की अध्यक्षता कर रहे सुल्तान अल-जबर ने उन मीडिया रिपोर्टों का खंडन किया है जिनमें वो उस वैज्ञानिक सर्वसम्मति पर सवाल खड़ते दिख रहे हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने के लिए कोयला, तेल और गैस को फेजआउट करना होगा।
 
4 दिसंबर को पत्रकारों से बात करते हुए, अल-जबर ने जोर देकर कहा कि उनकी टिप्पणियों को संदर्भ से काटकर पेश किया गया। उन्होंने दावा किया कि उनका पूरा ध्यान, वैश्विक तापमान को पूर्व औद्योगिक स्तरों से डेढ़ डिग्री सेल्सियस ऊपर, सीमित रखने का तरीका खोजने में लगा है। 
 
उन्होंने कहा, 'मैंने बार बार कहा है कि जीवाश्म ईंधनों का फेजडाउन और फेजआउट, लाजमी है। ये होकर रहेगा।'
 
फेजआउट, फेजडाउन : अंतर क्या है?
 
ये सिर्फ शब्दों का हेर-फेर हो सकता है लेकिन दोनों शब्द अर्थपूर्ण हैं। जीवाश्म ईंधनों को फेज डाउन करने का मतलब ये है कि देश अपने यहां जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल कम करते हुए पवन, सौर, हाइड्रो और परमाणु जैसी ज्यादा जलवायु-अनुकूल ऊर्जा को जगह देने पर सहमत होंगे। लेकिन इसमें ये अर्थ भी निहित है कि जलवायु परिवर्तन पर काबू पाने की कोशिशों के बीच जीवाश्म ईंधन, दुनिया के ऊर्जा उपयोग का हिस्सा बना रहेगा।
 
फेजआउट से आशय ऊर्जा के लिए जीवाश्म ईंधनों के इस्तेमाल को पूरी तरह रोक देने से है। अभी तक इस कार्य योजना को पिछले जलवायु सम्मेलनों के प्रतिनिधियों के बीच ज्यादा समर्थन नहीं मिला, खासतौर पर राजस्व के लिए तेल और गैस के निर्यात पर निर्भर देशों से।
 
अमेरिका, रूस और सउदी अरब जैसे प्रमुख तेल उत्पादक देश, जीवाश्म ईंधनों के इस्तेमाल को खत्म करने की मांग का विरोध करते आए हैं। पिछले ही दिनों, 4 दिसंबर को सउदी अरब के ऊर्जा मंत्री अब्दुलाजीज बिन सलमान ने कहा कि वो जीवाश्म ईंधनों के इस्तेमाल में कमी लाने पर 'बिल्कुल भी सहमत नहीं।'
 
उन्होंने ब्लूमबर्ग टीवी से कहा, 'और आपको यकीन दिलाता हूं कि सरकारों में एक भी व्यक्ति नहीं जो ये मानता है।' इस साल की शुरुआत में, संयुक्त अरब अमीरात की पर्यावरण मंत्री मरियम अल्महीरी ने तेल, गैस और कोयले का दोहन न रोककर, ईंधनों से निकलने वाले उत्सर्जन को फेजआउट करने का प्रस्ताव रखा। उनकी दलील थी कि फेजआउट से सिर्फ उन देशों का नुकसान होगा जो अपनी अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ाने के लिए जीवाश्म ईंधनों पर निर्भर हैं।
 
अल्महीरी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, 'अक्षय ऊर्जा बहुत तेजी से आगे बढ़ते हुए अपनी जगह बना रही है लेकिन हम उस स्थिति में अभी नहीं पहुंचे हैं कि जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल बंद कर सकें और सिर्फ साफसुथरी और अक्षय ऊर्जा पर ही निर्भर हो जाएं।'
 
उन्होंने कहा, 'हम लोग अभी संक्रमण में हैं और इसे न्यायसंगत और व्यवहारिक होना चाहिए क्योंकि सभी देशों के पास संसाधन नहीं हैं।' संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की नवंबर 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक संयुक्त अरब अमीरात की सरकारी तेल कंपनी एडनॉक ने 2027 तक अपनी तेल उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए 150 अरब डॉलर निवेश की योजना बनाई है।
 
अल्महीरी का सुझाव है कि कार्बन को रोके रखने और उसे सोखने की तकनीक का इस्तेमाल करते हुए जीवाश्म ईंधन के उत्सर्जनों को खत्म किया जा सकता है। उनके मुतबाकि तेल, गैस और कोयले का उत्पादन करते हुए भी देश ग्लोबल वॉर्मिंग से लड़ सकते हैं।
 
लेकिन आलोचकों का कहना है कि ये तरीका बहुत ज्यादा महंगा पड़ेगा। रिसर्च कंपनी ब्लूमबर्गएनईएफ के मुताबिक, आज महज 0।1 फीसदी से भी कम वैश्विक उत्सर्जन इस तकनीक की मदद से रोका जा रहा है, ऐसे में, आने वाले समय में लगता नहीं कि ये तकनीक, किसी ठोस समाधान का अहम हिस्सा बन पाएगी।
 
फेजआउट की मांग अपेक्षाकृत नई
 
वैज्ञानिक शोध जगत, वर्षों से जीवाश्म ईंधनों को इस्तेमाल को जलवायु परिवर्तन से जोड़ता आया है। लेकिन जलवायु सम्मेलन के प्रतिनिधियों ने उन्हें हटाने की योजनाओं के बारे में आधिकारिक रूप से हाल तक कुछ भी नहीं कहा। सिर्फ दो साल पहले ग्लासगो में हुए कॉप 26 में वार्ताकार 'कोयले की ऊर्जा और जीवाश्म ईंधनों की बेकार सब्सिडी में कटौती करने' को पहली बार राजी हुए थे।
 
एक साल बाद मिस्र में हुई संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में यूरोपीय संघ और छोटे द्वीप देशों समेत 80 से ज्यादा देशों के समूह ने सभी जीवाश्म ईंधनों को शामिल करने के लिए उस शब्दावली को अपग्रेड पर सहमति जताई थी। लेकिन तेल, गैस और कोयला उत्पादक देशों की ओर से उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा।
 
2022 में लगे झटके के बावजूद, अभियान चलाने वालों को उम्मीद है कि सितंबर में जारी हुई संयुक्त राष्ट्र की पहली ग्लोबल स्टॉकटेक रिपोर्ट दुबई में प्रतिनिधियों के बीच, कार्रवाई के लिए माहौल बनाएगी। ये रिपोर्ट वैश्विक तापमान को सीमित करने के लिए दुनिया की सामूहिक प्रगति की समीक्षा करती है। संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट में 'अक्षय ऊर्जा को बढ़ाने और तमाम जीवाश्म ईंधनो को फेजआउट यानी हटाने' का आह्वान किया गया है। बहुत से जलवायु समूह और वैज्ञानिक भी मानते हैं कि यही होना चाहिए।
 
एडवोकेसी के संगठन ऑयल चेंज इंटरनेशनल के रोमेन लाउलालेन ने डीडब्ल्यू को बताया, 'कुछ साल पहले तक, तेल और गैस उत्पादक देशों के प्रभाव की वजह से, कॉप में जीवाश्म ईंधन को फेजआउट करने के फैसले पर सोचना भी दूभर था।' 2023 में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन पूरी दुनिया में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने की आशंका है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने 1 दिसंबर को कॉप28 जलवायु बैठक का उद्घाटन करते हुए कहा कि कार्रवाई का समय आ गया है।
 
उन्होंने कहा, 'जीवाश्म ईंधनों के पाइप से हम धरती की आग को नहीं बुझा सकते। इस बारे में विज्ञान स्पष्ट हैः आखिरकार, तमाम जीवाश्म ईंधनों को जलाना बंद करेंगे, तभी डेढ़ डिग्री की सीमा मुमकिन हो पाएगी। न कटौती से काम चलेगा, न कमी लाने से। फेजआउट ही अकेला उपाय है- एक स्पष्ट समयसीमा के साथ, डेढ़ डिग्री की जरूरत में निबद्ध।'

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