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पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021: महिलाएं किसके साथ, ममता या मोदी?

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021: महिलाएं किसके साथ, ममता या मोदी?

BBC Hindi

, रविवार, 14 मार्च 2021 (07:42 IST)
प्रभाकर मणि तिवारी, बीबीसी हिंदी के लिए, मालदा/मुर्शिदाबाद से
"अभी कुछ सोचा नहीं है कि किसे वोट देना है। ममता बनर्जी सरकार ने महिलाओं के लिए योजनाएं तो कई शुरू की हैं। लेकिन जमीनी स्तर पर इसका ज्यादा फायदा नहीं मिला है। वोट उसी को देंगे जो हमारे मुद्दे उठाएगा।"

मुर्शिदाबाद जिला मुख्यालय बरहमपुर में गंगा नदी के किनारे सब्जी बेचने वाली अनसूया महतो निर्विकार भाव से यह बात कहती है। अनसूया हो या फिर मालदा कलेक्टरेट परिसर में अपने आधार कार्ड में संशोधन के लिए आई बासंती मंडल, पश्चिम बंगाल की महिलाएं इस बार तमाम दलों के वादों और दावों को परख रही हैं।

मालदा की सामाजिक कार्यकर्ता शबनम जहां कहती हैं, "महिलाएं अभी तमाम दलों को वादों की कसौटी पर परख रही हैं। वर्ष 2011 और 2016 के विधानसभा चुनावों के नतीजों से साफ है कि टीएमसी को इस तबके का खासा समर्थन मिला था। लेकिन बीते लोकसभा चुनावों से इनका झुकाव बीजेपी की ओर हुआ है। अब इस बार देखा जाए क्या होता है?"

कुल मिला कर कहा जा सकता है कि महिला वोटरों को लुभाने के लिए टीएमसी, बीजेपी के बीच तेज होती होड़ ने महिलाओं को फिलहाल असमंजस में डाल दिया है। दूसरी ओर, लेफ्ट-कांग्रेस गठजोड़ की निगाहें भी इस तबके के वोटरों पर हैं।
 
लेफ्ट फ्रंट के अध्यक्ष विमान बोस कहते हैं, "एक महिला मुख्यमंत्री होने के बावजूद राज्य में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। बीजेपी के शासन वाले राज्यों में भी महिलाओं की हालत और बदतर है। ऐसे में महिलाएं अबकी लेफ्ट-कांग्रेस गठजोड़ को विकल्प मानते हुए हमारा समर्थन करेंगी।"
 
बंगाल की महिलाएं
संशोधित मतदाता सूची के मुताबिक, राज्य के 7.18 करोड़ मतदाताओं में से 3.15 करोड़ यानी करीब 49 प्रतिशत महिलाएं हैं। यह आंकड़ा इतना बड़ा है कि कोई भी पार्टी इनकी अनदेखी का खतरा नहीं मोल ले सकती। यह कहना सही होगा कि अबकी विधानसभा चुनावों में सत्ता की चाबी महिलाओं के ही हाथों में है।

देश के दूसरे राज्यों के उलट बंगाल की महिलाएं सिर्फ पति या घर के मुखिया के कहने पर वोट नहीं देती। राजनीतिक रूप से जागरूक इन महिलाओं की अपनी सोच भी है। इसलिए कुछ तबकों को छोड़ दें तो ज्यादातर घरों में अपने वोट का फैसला महिलाएं खुद करती हैं।
 
पश्चिम बंगाल में टीएमसी और बीजेपी महिला मतदाताओं का समर्थन हासिल करने की कोशिश के तहत महिलाओं से जुड़े मुद्दे उठा रही हैं। राज्य के वोटरों में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का अनुपात बीते साल के 956 प्रति हजार से बढ़ कर 961 हो गया है। यह एक नया रिकॉर्ड है।
 
महिलाओं के मुद्दे पर सक्रियता
राज्य की महिलाएं वर्ष 2006-07 तक लेफ्ट के साथ मजबूती से खड़ी थीं। लेकिन सिंगूर और नंदीग्राम में भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलनों के बाद वे ममता बनर्जी का समर्थन करने लगीं। अब बीते लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने भी महिला वोटरों में खासी पैठ बनाई थी और उसका उसे जबरदस्त फायदा भी मिला।
 
बर्दवान जिले के कालना में ममता की हाल की रैली के दौरान चार किमी पैदल चल कर पहुंची पारुल कर्मकार कहती हैं, "मैं ममता को देखने आई हूं। महिला मुख्यमंत्री के नाते वे हमारा ध्यान रखती हैं। हम हमेशा उनका ही समर्थन करेंगे।"

नदिया जिला मुख्यालय कृष्णनगर में एक होटल चलाने वाली स्वपना गांगुली कहती हैं, "हम दीदी के अलावा किसी और का समर्थन क्यों करें? ममता देश की अकेली महिला मुख्यमंत्री हैं और महिलाओं के मुद्दे पर सक्रिय रहती हैं।"
लेकिन इसी जिले में खेतों में काम रही ज्योत्सना मल्लिक कहती हैं, "हमने सबको देखा है। अब इस बार बीजेपी को वोट देने की सोच रही हूं। शायद हमारी हालत सुधर जाए।"

लेकिन इस बार किसका साथ देगी आधी आबादी? इस सवाल का ठोस जवाब बाद में मिलेगा। फिलहाल दोनों दलों के अपने-अपने दावे हैं। बीजेपी और टीएमसी दोनों एक-दूसरे पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में नाकाम रहने के आरोप लगा रही हैं।
 
इसके साथ ही केंद्र और राज्य सरकार की ओर से महिलाओं के हित में शुरू की गई योजनाओं को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जा रहा है।
 
सत्ता के दोनों दावेदारों की रणनीति में यह बदलाव खासकर विहार विधानसभा चुनावों के नतीजों के विश्लेषण के बाद आया है। इससे यह बात सामने आई थी कि महिलाओं के समर्थन से ही एनडीए वहां सत्ता बचाने में कामयाब रहा था।
 
खिसकती जमीन बचाने की ममता की कोशिश
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में महिला वोटरों में बीजेपी की पैठ के बाद बाद सत्तारूढ़ टीएमसी ने उनको दोबारा अपने पाले में खींचने की कवायद तेज की है।

बीते लोकसभा चुनावों में बीजेपी की ओर से मिले झटकों के बाद ममता बनर्जी ने अपनी सरकार की विकास योजनाओं और बीजेपी शासित राज्यों में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में वृद्धि के प्रचार-प्रसार के लिए पार्टी के गैर-राजनीतिक मोर्चे 'बोंगो जननी' का गठन किया था।

दरअसल इसके गठन का मुख्य मकसद वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद महिलाओं के बीच पार्टी की खिसकती जमीन को दोबारा हासिल करना था।
 
महिला और बाल विकास मंत्री और 'बोंगो जननी' की महासचिव शशि पांजा कहती हैं, "टीएमसी सरकार ने पश्चिम बंगाल में अपने शासन के 10 सालों में कन्याश्री जैसी ऐसी कई योजनाएं लागू की हैं जिनको दुनिया भर में सराहा जा चुका है। महिलाओं और लड़कियों को इन योजनाओं से काफी लाभ मिला है।"उनका कहना है कि महिला सुरक्षा के मुद्दे पर हमें बीजेपी के प्रमाणपत्र की कोई जरूरत नहीं है।"

पांजा कहती हैं, "कई सरकारें सिर्फ महिला सशक्तिकरण की बात करती हैं। लेकिन राज्य सरकार ने इसे अमली जामा भी पहनाया है। ग्राम पंचायतों तक में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है।"

टीएमसी के वरिष्ठ नेता सांसद सौगत रॉय कहते हैं, "बीजेपी-शासित राज्यों में महिलाओं की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। इसलिए पार्टी को कम से कम महिला सुरक्षा के मुद्दे पर बोलने या सरकार की आलोचना करने का कोई हक नहीं है।"
 
वर्ष 2016 के चुनाव में ममता बनर्जी के समर्थन के बाद सरकार ने महिलाओं के हित में कन्याश्री और रूपश्री जैसी योजनाएं शुरू की थीं। इनके तहत लड़कियों को शिक्षा और शादी के लिए आर्थिक सहायता दी जाती है।
 
बीजेपी ने भी महिलाओं को खूब रिझाया
दूसरी ओर, महिलाओं में अपनी पैठ को और मजबूत करने के लिए बीजेपी भी कोई कसर नहीं छोड़ रही है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपने हाल के दौरे में प्रदेश नेतृत्व से हर बूथ समिति में कम से कम चार महिलाओं को शामिल करने को कहा था।

इसके साथ ही उज्जवला योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना और किसान सम्मान निधि, आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं का बड़े पैमाने पर प्रचार कर रहे हैं और सथ ही ममता बनर्जी सरकार पर केंद्रीय योजनाओं को लागू करने की राह में रोड़े अटकाने का आरोप लगा रहे हैं।
 
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में उज्ज्वला योजना के तहत अब तक 89 लाख कनेक्शन दिए गए हैं। इनमें से 40 फीसदी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति परिवारों को मिला है। केंद्रीय नेताओं और मंत्रियों ने ममता पर प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत साढ़े चार हजार करोड़ की रकम जारी नहीं करने का आरोप लगाते हैं।

गैस की कीमतों में वृद्धि का विरोध
प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं, "सरकार ने पैसे जारी नहीं किए हैं। इसलिए इस योजना का काम धीमा पड़ गया है। लेकिन टीएमसी के महासचिव और संसदीय कार्य मंत्री पार्थ चटर्जी इसे निराधार बताते हुए उल्टे दावा करते हैं कि केंद्र सरकार पर विभिन्न मदों में राज्य के 85 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम बकाया है।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाल में सिलीगुड़ी में तेल और रसोई गैस की कीमतों में वृद्धि के विरोध में चार किमी लंबी पदयात्रा की थी। ममता का कहना था, "राज्य सरकार चावल तो मुफ्त दे रही है। लेकिन उसे पकाने के लिए लोगों को नौ सौ रुपये का गैस सिलेंडर खरीदना होगा। यह रकम कहां से आएगी?"
 
बीजेपी ने अपने चुनाव अभियान में महिलाओं की सुरक्षा और तस्करी को प्रमुख मुद्दा बनाया है। वह महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध और आदिवासी इलाकों में महिलाओं की तस्करी के मुद्दे पर भी टीएमसी सरकार को कठघरे में खड़ा करने में जुटी है।
 
प्रदेश बीजेपी महिला मोर्चा प्रमुख अग्निमित्रा पॉल का कहना है, "महिलाओं के खिलाफ बलात्कार और दूसरे अपराधों में वृद्धि से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल में अब महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। महिला मुख्यमंत्री होने के बावजूद सरकार महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में फेल रही है।"
 
टीएमसी नेता पार्थ सचिव का दावा है कि नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के बीते दो वर्षो के आंकड़ों से साफ है कि राज्य में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में कमी आई है। लेकिन बीजेपी नेता अग्निमित्रा आरोप लगाती हैं, "राज्य सरकार एनसीआरबी को आंकड़े ही नहीं भेज रही हैं।"
 
टीएमसी ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में 42 में से 17 सीटों पर यानी 41 फीसदी महिलाओं को टिकट दिया था जबकि वर्ष 2016 के विधानसभा चुनावों में महिला उम्मीदवारों की तादाद 45 थीं।

बीजेपी ने पिछले विधानसभा चुनावों में 31 महिलाओं को मैदान में उतारा था। टीएमसी ने इस बार 50 महिलाओं को टिकट दिया है। बीजेपी की अब तक पूरी सूची नहीं आई है।
 
महिलाओं के लिए ममता की योजनाएं
हाल के वर्षों में ममता बनर्जी ने तमाम योजनाएं शुरू करने के अलावा महिला डिग्री कालेज और विश्वविद्यालय की भी स्थापना की है।

महिला वोटरों के बीच टीएमसी के खिसकते जनाधार पर अंकुश लगाने के लिए टीएमसी के नेता महिला कल्याण के लिए बनी तमाम योजनाओं का बड़े पैमाने पर प्रचार कर रहे हैं। बीते साल राज्य सरकार के दस साल के काम-काज पर जारी पुस्तिका को भी पूरे राज्य में घर-घर बांटा जा चुका है।
 
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, बाल विवाह रोकने और लड़कियों में शिक्षा को बढ़ावा देने के मकसद से शुरू की गई कन्याश्री योजना के तहत अब तक 67।29 लाख लड़कियों को लाभ पहुंचा है।

इस योजना पर अबतक 6,720 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। इसी तरह शादी के मौके पर लड़कियों को एकमुश्त 25 हजार की सहायता देने वाली रूपश्री योजना का लाभ अब तक 65 लाख युवतियों को मिला है और इस पर 1,629 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं।
 
राज्य के ग्रामीण इलाकों के छात्र-छात्राओं को स्कूल आने-जाने के लिए साइकिल मुहैया कराने वाली सबूज साथी योजना के तहत अब तक 2,700 करोड़ रुपये की लागत से एक करोड़ से ज्यादा साइकिलें बांटी जा चुकी हैं।
हाल में शुरू स्वास्थ्य साथी योजना के तहत 1।4 करोड़ परिवारों की सबसे बुजुर्ग महिला के नाम पर कार्ड जारी किए जा चुके हैं।
 
स्वास्थ्य राज्य मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य कहती हैं, "परिवार की महिला के नाम पर स्वास्थ्य साथी कार्ड जारी कर ममता ने उनको सम्मान दिलाया है और आर्थिक-सामाजिक रूप से सशक्त किया है। इस योजना के तहत महिला को परिवार की मुखिया मान कर उसी के नाम कार्ड जारी किए गए हैं।"
 
इसके तहत राज्य के सरकारी और निजी अस्पतालों में पांच लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज हो सकेगा। भट्टाचार्य कहती हैं कि इस योजना के जरिए पितृसत्तात्मक मानसिकता को तोड़ने जैसा साहसिक कदम ममता ही उठा सकती हैं।
 
वैसे, बीजेपी नेता अग्निमित्रा पाल भी मानती हैं कि कन्याश्री और रूपश्री जैसी योजनाएं अच्छी हैं। लेकिन उनका कहना है, "ग्रामीण इलाकों में अच्छे स्कूलों की भारी कमी है। स्कूलों में न तो शौचालय हैं और न ही शिक्षक। ऐसे में ममता बनर्जी की ओर से सबूज साथी योजना के तहत दी गई साइकिलों का क्या इस्तेमाल है? राज्य में महिलाओं के लिए रोजगार के मौके भी बहुत कम हैं।"
 
समाजशास्त्री और महिला कार्यकर्ता कनुप्रिया गोस्वामी कहती हैं, "महिलाएं फिलहाल तमाम विकल्पों पर विचार कर रही हैं। उनके लिए सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा और अपराध-मुक्त माहौल ही प्राथमिकता है। ऐसे में उनकी कसौटी पर जो पार्टी खरी उतरेगी, यह तबका उसी का समर्थन करेगा।"

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