Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

भारत में 'हिंदुओं से खुश' हैं ये रोहिंग्या मुस्लिम

भारत में 'हिंदुओं से खुश' हैं ये रोहिंग्या मुस्लिम
, मंगलवार, 20 दिसंबर 2016 (10:32 IST)
- नितिन श्रीवास्तव
दोपहर के ग्यारह बजे हैं। चारपाई पर चार बच्चे कंचे खेलते हुए मुस्कुरा रहे हैं। बगल में ज़ंग लगे हुए एक कूलर पर कबाड़ का ढेर है, जिस पर छोटी मछलियां सुखाई जा रहीं हैं। ये दिल्ली में रोहिंग्या मुसलमानों का एक रेफ़्यूजी कैंप है। यमुना नदी के तट पर ओखला इलाके में इस कैंप में करीब 50 परिवार रह रहे हैं। लगभग सभी ने म्यांमार यानी बर्मा में पिछले कई वर्षों से जारी जातीय हिंसा में किसी न किसी अपने को खोया है।
23 वर्षीय अमीना जब 2012 में बर्मा में जारी हिंसा से बच कर भागीं थीं तब उनके पास सीमा-पार करने तक के पैसे नहीं थे। उन्होंने बताया, "जब भागे तब ये बच्ची पेट में थी जो अब चार वर्ष की हो रही है। लेकिन इस बेचारी ने अपने पिता को नहीं देखा है। मेरे पति उसी हिंसा के बाद से लापता हैं। मुझे भाषा नहीं आती, काम नहीं मिलता, इसलिए कबाड़ बटोरती हूं।
 
रोहिंग्या मुसलमान बर्मा के पश्चिमी इलाके रखाइन से है जहां इनकी आबादी 10 लाख से ज़्यादा बताई जाती है। लेकिन बर्मा की सरकार ने कभी इन्हें अपना नागरिक नहीं माना है।
 
इस समुदाय के लोगों के खिलाफ हुई हिंसा पर संयुक्त राष्ट्र ने चिंता जताते हुए कहा है कि ये 'दुनिया के सबसे प्रताड़ित लोगों में से हैं'। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी संस्था के अनुसार भारत में क़रीब 10,000 रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थी हैं जबकि दिल्ली में इनकी संख्या 1,000 से ज़्यादा है।
 
पिछले चार वर्षों से बर्मा के रोहिंग्या मुसलमानों का पलायन जारी है और कई ने बांग्लादेश की सीमा पार करने के बाद भारत का रुख कर असाइलम का औपचारिक आवेदन कर रखा है। सभी को बर्मा में जारी हिंसा पर अफ़सोस है लेकिन वे इस बात पर अड़े भी हैं कि ग़रीबी में ही सही वे भारत में ही बेहतर है।
webdunia
60 वर्ष की ज़ोहरा ख़ातून एक मिटटी की भट्टी पर खाना पकाते हुए अपनी तकलीफ़ बयां करती हैं। वो बताती हैं, "बेटा भागते वक़्त मारा गया और मेरे तीन साल के पोते के सिर में ट्यूमर है। छह महीने तक दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में इसका इलाज कराया, मगर कोई फ़ायदा नहीं हुआ।"
 
बर्मा में इन लोगों को ना ज़मीन जायदाद ख़रीदने का हक है और ना ही पढ़ने लिखने का। उनके आने जाने पर भी कई तरह की पाबंदियां हैं। दिल्ली की तरह भारत के कुछ दूसरे शहरों में भी रोहिंग्या मुसलमानों ने शरणार्थी के दर्जे की अर्ज़ी दी है।
 
दिल्ली के ओखला कैंप में ही रहने वाले अली ज़ोहर 2012 में अपने परिवार के पांच और सदस्यों के साथ भारत भाग कर आए थे। दिल्ली विश्विद्यालय में दाखिला ले चुके अली ने कहा, "भारत में धर्मनिरपेक्षता है जो बर्मा में नहीं है। ये सच है कि हम लोग यहां बहुत मुश्किलों में हैं। लेकिन इसके बावजूद कि हम लोग मुस्लिम हैं, हमें हिंदू भाइयों-बहनों से जो समर्थन मिला उससे हम खुश हैं और शुक्रगुज़ार हैं।"
 
पिछले एक महीने से बर्मा के रखाइन प्रांत में हिंसा दोबारा भड़क उठी है और बर्मा की फ़ौज ने ऑपरेशन बैकडोर चला रखा है। इस बीच बर्मा के रखाइन प्रांत से रोहिंग्या मुसलमानों का पलायन जारी है और पडोसी बांग्लादेश के बाद, इन्हें भारत से भी पूर्ण शरणार्थी दर्जे की खासी उम्मीद है।

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

चला गया पानी का असली पहरेदार