Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

रवीन्द्र व्यास की एकल प्रदर्शनी 'शब्द-चित्र' में मोह लेंगे हरे रंग और शब्दों के गहरे चित्र

रवीन्द्र व्यास की एकल प्रदर्शनी 'शब्द-चित्र' में मोह लेंगे हरे रंग और शब्दों के गहरे चित्र

स्मृति आदित्य

जब प्रकृति अपने रंग और अनुभूति कैनवास पर रखने को आतुर उठती है तब रवीन्द्र व्यास जैसे कवि-कलाकार कलम और कूंची साथ में उठाते हैं और सृजन का ऐसा हरा सुख सजा देते हैं जो मन के कहीं भीतर तक ठंडक के नर्म फाहे रख देता है। चिलचिलाती धूप में अगर तापमान का बढ़ना आपकी चिंता का विषय है तो चले आइए कलाकार, साहित्यकार, पत्रकार रवीन्द्र व्यास की एकल प्रदर्शनी शब्द-चित्र' में .. 
 
जहां नर्म दूब है, मीठी धूप है और अनुभूतियां खूब हैं.... हरे रंग के जो विविध वितान कलाकार रवीन्द्र ने रचे हैं वे इस तपिश के मौसम में बरबस ही मोहते हैं, बांध लेते हैं और मन के साथ आंखों को कविता पढ़ना सीखा देते हैं...कविता की बात चली है तो यह भी बता दें कि उनकी कलाकृतियों के बीच शब्द-कृतियां यानी कविताएं भी सजी हैं और वे आपके मन पर रंगों के ऐसे मधुर छींटे मारती है कि आप बस देर तक निहारते हैं इस कौतुक से कि आखिर जब कवि कविता लिख रहा था तब रंग दिमाग में थे या जब रंगों से कैनवास पर खेल रहा था तब कोई कविता उमड़ रही थी....
 
प्रकृति के हरे-भरे श्रृंगार-प्रसाधन जैसे सुकून की बयार हम तक लाते हैं वैसे ही ये तस्वीरें भी बोलती हैं, इनसे ठंडी हवा आती है, ये कलकल जल में भिगोती हैं, मन के कसमसाते बंद दरवाजों को खोलती है...मन के द्वार पर आकर झर झर बहती हैं। जब प्राकृतिक सुंदरता का कोई एक टुकड़ा कलाकार के मन को छुता है और वह अपना मानस बनाता है उसे थाम कर अभिव्यक्त करने का तब जो सुहानी कृतियां अवतरित होती हैं वे देर तक और दूर तक असर करती हैं. .. क्योंकि वे प्रकृति की ही तरह शुद्ध और शुभ प्रतीत होती हैं।
 
कमाल यह है कि हर कविता कलाकृति को कॉम्प्लीमेंट करती है... जैसे दो सखियां एक दूजे को थाम कर मंद मंद मुस्कुरा रही हो.... 
 
एक बानगी देखिए... 
मैं तुम्हारा जल हूं
तुम्हारी भाप
तुम्हारी आंखों का बादल
मैं तो उसी के नीचे बैठी
फुहार की प्रतीक्षा में थी
तुमने इस तरह से अपनी आंखें मीच ली हैं
कि तुम्हारी आंखों का वह बादल टप्प से
समय की नाभि में गिर पड़ा है
मैं चाहती हूं वहां से कोई कपास का फूल खिले
जिससे मैं तुम्हारे प्रेम का धागा बुन सकूं
ये जो मुझ पर अनवरत जलती रोशनी पड़ रही है ना
उसने मेरी रूह को एक फफोले में बदल दिया है
मैं तो प्रेम की उसी छलछल कंदरा में तुम्हारे साथ
रातों में नौका विहार करते
तुम्हारी आंखों में चंद्रमा के फूल की तरह
खिलना चाहती थी.... 
 
एक पूरी की पूरी कविता किसी पेंटिंग की तरह आपके भीतर उकेरता है कवि और उसी तरह हर पेंटिंग प्रकृति की कविता बन कर आंखों में रह जाती है शीतल अहसास लिए....आप फिर जाते है मुड़कर देखने के लिए कहीं कोई कोना, कोई दृश्य, कोई थिरकन रह तो नहीं गई, कोई सुगंध पीने से हम वंचित तो नहीं रह गए और यकीन मानिए यह मुड़ना आपके लिए फायदे का ही सौदा होता है और आप फिर एक नई हरी बुनावट, एक नई 'धानी' सजावट सहेज कर आगे बढ़ते हैं।   
 
जल की तरंगे, हवाओं का मद्धिम स्वर, यकायक फूट पड़ती कोई रोशनी, हरीतिमा से झांकता कोई उदास पहाड़ी  पंछी,झरने की खिलखिलाहट, शांत नदी का कोमल गान, कोई अव्यक्त सिसकी, कोई विलाप, कोई तिर्यक मुस्कान... सब हैं यहां बस चेहरे हमें खोजने हैं क्योंकि प्रकृति का चेहरा बना पाना इतना आसान नहीं है और इन रंगों को इतने सुंदर संतुलन के साथ अनुशासित तुलिका के माध्यम से रचना भी कोई सरल काम नहीं है....एक रंग दूजे रंग में मिलकर फिर कोई गुनगुनाता सा रंग बना दे और मन भी उसके साथ गाने लगे तो समझो कलाकार का श्रम, सृजन और कल्पना सब सार्थक हुए। 
 
दूसरी तरफ कवि रवीन्द्र व्यास के पास सरल व भोलेभाले शब्दों में गहरी बात कहने का विलक्षण जादू है। वे अपनी बात को कहने के लिए सुहाने शब्दों का चयन करते हैं, मासूम सी अभिव्यक्तियां हैं, गहन अनुभूतियां हैं पर हम तक आने की राह में भाषा को कहीं भी बाधक नहीं बनने देती है।   
 
कवि की एक कविता शिनाख्त आपको रूला देने की हद तक अकुलाहट दे सकती है बशर्ते आप उस मर्म को भीतर तक महसूस करें.... 
 
मां ने हमेशा उसकी दो चोटियां बांधी
फ्रॉक पर नीले फूल काढ़े
जब वह नाचती हुई घूमती
पृथ्वी नीले फूलों से ढंक जाती
बाबा उसे
दोनों हाथों से उठाकर
हवा में इस तरह उछालते
जैसे वह कोई बादल का टुकड़ा हो
उसे नहीं पता था कि
एक दिन उसकी फ्रॉक
कीच़ड़ में खून से लथपथ
बरामद होगी
और शिनाख़्त मुश्किल...  
 
मन के हरे-सुनहरे रंगों की यह कला प्रदर्शनी ''शब्द-चित्र'' संस्था मर्म के सौजन्य से आर्ट पैसेज नामक कला विथिका में 31 मई 2022 तक सज्जित है और हर कलाप्रेमी को बुलाने के साथ रोक लेने में सक्षम है। यह सिर्फ बानगी है शब्दों के रंग और रंगों के शब्द मस्तिष्क की बारीक शिराओं में देर तक बहते-फैलते और चलते रहते हैं... आप एक नजर झांक कर तो आएं.. यही मौसम है यहां आने का और दिलों को शीतलता देने का.... 
(मर्म कला अनुष्ठान और अंकित एडवर्टाइज़िंग द्वारा आयोजित प्रदर्शनी 'शब्द-चित्र' प्रिंसेस बिज़नेस स्काय पार्क, इंदौर की आर्ट पैसेज गैलरी में 31 मई तक चलेगी। यह सुबह 11 बजे से रात 9 बजे तक देखी जा सकती है।)

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

‘टीबी’ के 26 प्रतिशत मामले भारत में, ‘बांझपन’ का मुख्‍य कारण यही है, जानिए किसे है खतरा और कैसे समय पर करें ‘इलाज’