Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

भगवान श्रीकृष्ण की खूबसूरत लीला

भगवान श्रीकृष्ण की खूबसूरत लीला
कृष्ण एक किंवदंती, एक कथा, एक कहानी। जिसके अनेक रूप और हर रूप की लीला अद्भुत! प्रेम को परिभाषित करने और उसे जीने वाले इस माधव ने जिस क्षेत्र में हाथ रखा, वहीं नए कीर्तिमान स्थापित किए। मां के लाड़ले, जिनके संपूर्ण व्यक्तित्व में मासूमियत समाई हुई है।
 
कहते तो लोग ईश्वर का अवतार हैं, पर वे बालक हैं तो पूरे बालक। मां से बचने के लिए कहते हैं- 'मैया मैंने माखन नहीं खाया।' मां से पूछते हैं- 'मां वह राधा इतनी गोरी क्यों है और मैं क्यों काला हूं?' शिकायत करते हैं कि ' मां मुझे दाऊ क्यों कहते हैं कि तू मेरी मां नहीं है।' यशोदा मां जिसे अपने कान्हा से कोई शिकायत नहीं है, उन्हें अपने लल्ला को कुछ नहीं बनाना, वह जैसा है उनके लिए पूरा है।
 
'मैया कबहुं बढ़ैगी चोटी। किती बेर मोहि दूध पियत भइ यह अजहूं है छोटी।'
 
यहां तक कि मुख में पूरी पृथ्वी दिखा देने, न जाने कितने मायावियों, राक्षसों का संहार कर देने के बाद भी मां यशोदा के लिए तो वे घुटने चलते लल्ला ही थे जिनका कभी किसी काम में कोई दोष नहीं होता। सूर के पदों में अनोखी कृष्ण बाललीलाओं का वर्णन है।
 
सूरदास ने बालक कृष्ण के भावों का मनोहारी चित्रण प्रस्तुत किया जिसने यशोदा के कृष्ण के प्रति वात्सल्य को अमर कर दिया। यशोदा के इस लाल की जिद भी तो उसी की तरह अनोखी थी, 'मां मुझे चांद चाहिए।'
 
श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व के अनेक पहलू हैं। वे मां के सामने रूठने की लीलाएं करने वाले बालकृष्ण हैं, तो अर्जुन को गीता का ज्ञान देने वाले योगेश्वर कृष्ण। इस व्यक्तित्व का सर्वाधिक आकर्षक पहलू दूसरे के निर्णयों का सम्मान है। कृष्ण के मन में सबका सम्मान है। वे मानते हैं कि सभी को अपने अनुसार जीने का अधिकार है।
 
अपनी बहन के संबंध में लिए गए अपने दाऊ (बलराम) के उस निर्णय का उन्होंने प्रतिकार किया, जब दाऊ ने यह तय कर लिया कि वह बहन सुभद्रा का विवाह अपने प्रिय शिष्य दुर्योधन के साथ करेंगे। तब कृष्ण ही ऐसा कह सकते थे कि 'स्वयंवर मेरा है न आपका, तो हम कौन होते हैं सुभद्रा के संबंध में फैसला लेने वाले?' समझाने के बाद भी जब दाऊ नहीं माने तो इतने पूर्ण कृष्ण ही हो सकते हैं कि बहन को अपने प्रेमी के साथ भागने के लिए कह सके।
 
राजसूय यज्ञ में पत्तल उठाने वाले, अपने रथ के घोड़ों की स्वयं सुश्रुषा करने वाले कान्हा के लिए कोई भी कर्म निषिद्ध नहीं है।
 
महाभारत युद्ध, जिसके नायक भी वे हैं, पर कितनी अनोखी बात है कि इस युद्ध में उन्होंने शस्त्र नहीं उठाए! इस अनूठे व्यक्तित्व को किस ओर से भी पकड़ो कि यह अंक में समा जाए, पर कोशिश हर बार अधूरी ही रह जाती है। महाभारत एक विशाल सभ्यता के नष्ट होने की कहानी है। इस घटना के अपयश को श्रीकृष्ण जैसा व्यक्तित्व ही शिरोधार्य कर सकता है।
 
कितनी बड़ी प्रतीक कथा है जिसमें श्रीकृष्ण ने तय किया कि अब सुधार असंभव है। जब राजभवन में ही स्त्रियों की यह स्थिति है तो बाकी समाज का क्या हाल होगा? राजदरबार में ही राजवधू का चीरहरण सारे कथित प्रबुद्ध लोगों के सामने हो सकता है तब ऐसे समाज में कोई सुरक्षित भी नहीं है, साथ ही ऐसे समाज को खड़े रहने का कोई अधिकार भी नहीं। इसलिए उन्होंने संदेश दिया- 'हे अर्जुन, उठा शस्त्र! तू तो मात्र निमित्त होगा!'

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

Raksha Bandhan 2020: इस बार की राखी की 10 महत्वपूर्ण बातें,शुभ संयोग, मंगल मुहूर्त