चमलियाल सीमा चौकी (जम्मू फ्रंटियार)। चमलियाल मेला एक साथ खड़े, एक ही बोली बोलने वालों, एक ही पहनावा डालने वालों, एक ही हवा में सांस लेने वालों तथा एक ही आसमान के नीचे खड़े होने वालों को एक कटु सत्य के दर्शन भी करवाता है कि चाहे सब कुछ एक है मगर उनकी घड़ियों के समय का अंतर यह बतला रहा है कि दोनों की राष्ट्रीयता अलग अलग है। हालांकि यह कल्पना भी रोमांच भर देने वाली है कि एक ही बोली बोलने, एक ही हवा में सांस लेने वाले अपनी घड़ियों के समय से पहचाने जाते हैं कि दोनों दोनों अलग अलग देशों से संबंध रखने वाले हैं जिन्हें अदृश्य मानसिक रेखा ने बांट रखा है।
कई पत्रकारों तथा टीवी चैनलों की कैमरा टीम के साथ यह संवाददाता भी पाकिस्तान तथा भारत को दो हिस्सों में बांटने वाली ‘मानसिक रेखा’, जिसे इंटरनेशनल बार्डर भी कहा जाता है, पर पहुंचा था। हालांकि कांटेदार तार लगा कर दोनों देशों के लोगों को एक दूसरे से मिलने को रोका गया था लेकिन दिलों को बांट पाने में यह रेखा सफल नहीं हो पाई है। जब रासायनिक तत्वों से युक्त पानी तथा मिट्टी को सीमा सुरक्षा बल तथा पाकिस्तानी रेंजरों की सहायता से पाकिस्तानी क्षेत्र में भेजा गया तो इस दृश्य का रोमांच लेने व अपने कैमरों में बंद करने के लिए सभी इंटरनेशनल बार्डर पर ‘जीरो लाइन’ तथा कुछेक पाकिस्तानी क्षेत्र में खड़े थे।
औपचारिकताएं निभाने के बाद अचानक एक पाक रेंजर अधिकारी ने कैमरा टीमों के बारे में पूछा तो उन्हें पत्रकारों का दल जानकारी देने लगा कि ये कार्यक्रम विभिन्न चैनलों पर प्रसारित किए जाएंगे और आप भी इसको समाचारों में देखिएगा। पाक सीमा क्षेत्र के गांवों में भारतीय कार्यक्रमों को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है विशेषकर दूरदर्शन के जम्मू दूरदर्शन को।
‘कितने बजे आएगा यह कार्यक्रम,’पाक सेना के एक अधिकारी ने प्रश्न किया था।‘ दूरदर्शन पर साढे़ सात बजे,’पत्रकारों में से एक ने उत्तर दिया था। लेकिन अचानक उसे चौंक जाना पड़ा जब उसकी नजर कैप्टन की कलाई पर बंधी घड़ी पर पड़ी तो। उसने अपनी घड़ी देखी तो दो बज रहे थे जबकि पाक सैनिक की घड़ी पर दिन के डेढ़ बज रहे थे। घड़ी के समय में आधे घंटे के अंतर ने सभी को सोच में डाल दिया। उधर पाक अधिकारी भी सोच में पड़ा हुआ था कि साढ़े सात बजे तो पाक टीवी के समाचार आते हैं और यह पत्रकार भाई साढ़े सात बजे का समय बता रहे हैं और उसके अनुसार जम्मू दूरदर्शन के समाचार सात बजे आते हैं। दोनों में बहस होने लगी। पाक अधिकारी का कहना था कि उसे झूठ बताया गया। जबकि दोनों यह नहीं सोचते थे कि एक पाकिस्तानी समय की बात कर रहा था तो दूसरा हिन्दुस्तानी समय की।
बड़ा अजीब महसूस किया जा रहा था प्रत्येक व्यक्ति द्वारा कि सभी लोग एक ही जमीन पर खड़े हैं, दोनों तरफ का आसमान का रंग, जमीन का रंग आदि एक है, हवा भी एक ही है जिससे वे सांस ले रहे हैं तो फिर दोनों की राष्ट्रीयता तथा घड़ियों के समय में अंतर क्यों दिखाता है कि दोनों अलग-अलग देशों के रहने वाले हैं।‘ मात्र एक अदृश्य रेखा बांटती है हम सभी को,’कई चेहरों पर सवालिया निशान उभरा था जिसका उत्तर पिछले 70 सालों से ढूंढा जा रहा है।
हालांकि पाक रेंजर भी इस सीमा रेखा के बनाए जाने से परेशान थे और उनकी परेशानी तो यह भी थी कि वे खुल कर नहीं बोल सकते। उनमें से कईयों के सगे संबधी आज भी भारत में हैं और वे उनसे मिलने को तरसते हैं ‘इस सीमा रेखा ने, जो मात्र राजनीति का एक रूप है, लोगों को मानसिक रूप से बांट रखा है और एक दिन अवश्य ऐसा आएगा जब कोई भी इसे मानने को तैयार नहीं होगा,’पाक सैनिक तथा रेंजर अपने दिलों की भड़ास को निकालते हुए कहते थे।
चमलियाल मेले में गले मिले, पर दिल नहीं मिल पाए इस बार भी : बंटवारे के बाद से चली आ रही परंपरा का निर्वाह करते हुए पाकिस्तानी व भारतीय सेनाओं के जवानों ने इस सीमा चौकी पर ‘शक्कर’ और ‘शर्बत’ बांट कर उन हजारों लोगों को सुकून तो पहुंचाया, जो चौकी पर स्थित बाबा दीलिप सिंह मन्हास अर्थात बाबा चमलियाल की दरगाह पर माथा टेकने आते हैं लेकिन बावजूद इस आदान-प्रदान के इच्छाएं बंटी हुई हैं। यह इच्छाएं उन पाकिस्तानियों की हैं जो 1947 के बंटवारे के बाद उस ओर चले तो गए लेकिन बचपन की यादें आज भी ताजा हैं।