- सुशांत सरीन (रक्षा विशेषज्ञ)
नवाज शरीफ की अमेरिका यात्रा से पहले भारत, पाकिस्तान और अमेरिका में उन खबरों पर खुसर-फुसर शुरू हो गई थी कि बराक ओबामा पाकिस्तान को असैन्य परमाणु करार की सौगात दे सकते हैं।
ऐसी संभावनाएं थी कि अमेरिका पाकिस्तान को न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप की सदस्यता की पेशकश शोध और तकनीक के इस्तेमाल के मद्देनजर दे सकता है और बदले में पाकिस्तान से परमाणु हथियारों और मिसाइल कार्यक्रम को नियंत्रित करने की मांग कर सकता है। लेकिन जब नवाज और ओबामा की मुलाकात के बाद संयुक्त बयान जारी हुआ तो इसमें इस बाबत कुछ नहीं कहा गया था।
पश्चिमी मीडिया की खबरों के अनुसार, पाकिस्तान के परमाणु हथियार कार्यक्रम को लेकर अमरीकियों की दो मुख्य चिंताएं हैं। पहली, पाकिस्तान की मध्यम दूरी की मिसाइल, जिनकी मारक क्षमता पूर्व में अंडमान से लेकर पश्चिम में इसराइल तक है।
दूसरा और शायद सबसे चिंताजनक पहलू जिसे अमेरिका नियंत्रित करना चाहता है, वह है पाकिस्तान का सामरिक या जंगी परमाणु हथियार कार्यक्रम (टीएनडब्ल्यूएस)। पाकिस्तान का तर्क है भारत की सैन्य शक्ति से संतुलन साधने के लिए वह इस कार्यक्रम पर आगे बढ़ रहा है।
अमरीकियों का मानना है कि इन हथियारों को शामिल करने और इनकी तैनाती से जटिल कमांड और कंट्रोल सिस्टम और गड़बड़ा सकता है और इन हथियारों के अवैध इस्तेमाल और दुर्घटना का खतरा बढ़ सकती है।
टीएनडब्ल्यूएस सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा हैं। टीएनडब्ल्यूएस की स्थिति में परमाणु हथियारों के संचालन को नियंत्रित करने की सामान्य कमांड बेअसर हो जाती है क्योंकि इनकी कमांड युद्ध क्षेत्र के कमांडरों के पास चली जाएगी। बस इसी से इनकी सुरक्षा को लेकर आशंकाएं पैदा हो जाती हैं। अपने नियंत्रण में परमाणु हथियार रखने वाले सैन्य कमांडरों की विश्वसनीयता और मानसिक स्थिरता को लेकर भी सवाल उठने लाजिमी हैं।
इन हथियारों के चरमपंथियों के हाथों में पहुंचने का जोखिम भी बढ़ जाता है, यहां तक कि इन हथियारों की जंगी उपयोगिता पर भी सवाल है। परमाणु हथियारों की सैन्य उपयोगिता से अधिक इनकी मानसिक उपयोगिता है।
टीएनडब्ल्यू विपक्षी सेना को उससे ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा सकता, जितना परंपरागत जंग से पहुंच सकता है। जैसे कि मल्टीबैरल रॉकेट लॉन्चर जो कि समूचे इलाके को बर्बाद कर सकता है।
शीर्ष सैन्य कमांडरों का मानना है कि जब तक कि पूरी सेना एक साथ हमला न करे, टीएनडब्ल्यू कुछ ही टैंकों को बर्बाद कर सकता है। लेकिन इसके जवाब में भारत की नीति एकदम स्पष्ट है कि वह अपने सैन्य बलों पर भारत या भारत के बाहर परमाणु हमला होने की स्थिति में इसका करारा जवाब देगा।
भारत की ‘पहले (परमाणु हथियार) इस्तेमाल नहीं करने की नीति’ के साथ इसका मतलब है कि यदि पाकिस्तान इतना साहसी या दूसरे लफ्जों में इतना मूर्ख हुआ कि भारत के खिलाफ टीएनडब्ल्यू का इस्तेमाल कर उसके कुछ टैंक बर्बाद कर दे, तो बदले में भारत के पास पाकिस्तान के कुछ बड़े शहरों को बर्बाद करने का अधिकार सुरक्षित रहेगा।
अधिकांश लोग- पाकिस्तानी ही नहीं, यहां तक कि कई भारतीय कमांडर भी- मानते हैं कि भारत इतना कड़ा कदम शायद ही उठाए। लेकिन क्योंकि कोई नहीं जानता कि भारत का जवाब क्या होगा, इसलिए इस बात को लेकर गंभीर चिंता है कि पाकिस्तान का एक गैर जिम्मेदाराना कदम परमाणु विध्वंस का कारण बन सकता है।
हकीकत ये है कि पाकिस्तान टीएनडब्ल्यू को अंतिम विकल्प के रूप में नहीं ले रहा है, बल्कि इसे सीमा पर भारतीय हमले से निपटने के हथियार के रूप में ले रहा है, जिससे खतरा और बढ़ गया है।
एक तरह से ये पाकिस्तान के खुद में कम भरोसे को भी दर्शाता है कि वो युद्ध को भारत तक सीधे-सीधे नहीं ले जाना चाहता।
लेकिन दूसरे स्तर पर ये भारत की 'कोल्ड स्टार्ट डॉक्टरीन' की भी पुष्टि करता है, जिसे तैयार ही इसलिए किया गया है कि भारत को जवाब देने के लिए पूरी सेना को लामबंद करने जैसे कामों में समय न गंवाना पड़े और बिना वक्त बर्बाद किए पाकिस्तान में घुस जाए।
जो डर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को सता रहा है वो है कि टीएनडब्लयू के इस्तेमाल से भारत के हमले का खतरा पाकिस्तान के दहलीज तक पहुंच जाएगा और ये भी कि मामला राजनयिक तौर पर सुलझाने का वक्त हाथों से जाता रहेगा।
अमेरिका सोचता है कि पाकिस्तान के साथ असैन्य परमाणु करार के बदले अफगानिस्तान में उसे पाकिस्तान से अधिक सहयोग मिलेगा। साथ ही अमेरिका दक्षिण एशिया में परमाणु हथियारों के लेन-देन को रोकने के लिए पाकिस्तान के परमाणु हथियार कार्यक्रम को नियंत्रित करना चाहता है।
लेकिन असैन्य परमाणु करार के बदले पाकिस्तान अपने परमाणु कार्यक्रम पर किसी तरह की बंदिशें लगाएगा, इसकी संभावना बहुत कम है। अमेरिका को गलतफहमी नहीं है कि पाकिस्तान अपने परमाणु कार्यक्रम पर किसी तरह की पाबंदियों को आसानी से स्वीकार कर लेगा।
असैन्य परमाणु करार को लेकर पाकिस्तान बहुत बेताब नहीं हैं क्योंकि इसके ऐवज में उसे अपने कार्यक्रम पर कई तरह की बंदिशें लगानी होंगी। परमाणु हथियार और इस्लामी चरमपंथ पाकिस्तान के दो सबसे बड़े दांव हैं, जिनकी वजह से उसे पूरी दुनिया से पैसे मिलते हैं।
इसका मतलब ये हुआ कि निकट भविष्य में भी दक्षिण एशिया परमाणु हथियारों का भंडार बना रहेगा। पाकिस्तान और अमरीका असैन्य परमाणु क़रार को लेकर बात करते रहेंगे, लेकिन कम से कम निकट भविष्य में तो इसके परवान चढ़ने की गुंजाइश नहीं है।
इस बीच, भारत ये सुनिश्चित करना चाहेगा कि पाकिस्तान टीएनडब्ल्यू का इस्तेमाल न करे। भारत ऐसा सिर्फ अपनी उसी नीति पर चलकर कर सकता है कि वह किसी भी सूरत में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के मौके पर पूरी ताकत से जवाब देने की परमाणु नीति पर कायम रहे।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)