आरएसएस ने सोमवार को कहा था कि उसे विशेष समुदायों या जातियों के आंकड़े एकत्र करने पर कोई आपत्ति नहीं है, बशर्ते इस जानकारी का उपयोग उनके कल्याण के लिए हो, ना कि चुनावी लाभ के लिए राजनीतिक औजार के रूप में इसका इस्तेमाल किया जाए।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि जातिगत जनगणना को लेकर आरएसएस की उपदेशात्मक बातों से कुछ बुनियादी सवाल उठते हैं, जैसे कि क्या उसके पास जातिगत जनगणना पर निषेधाधिकार है?
उन्होंने सोशल मीडिया मंच एक्स पर लिखा कि जाति जनगणना के लिए इजाजत देने वाला आरएसएस कौन है? आरएसएस जब यह कहता है कि चुनाव प्रचार के लिए जाति जनगणना का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए तो इससे उसका क्या मतलब है? क्या यह न्यायाधीश या अंपायर बनना है?
उन्होंने सवाल किया कि आरएसएस ने दलितों, आदिवासियों और ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) के लिए आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा को हटाने के लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता पर रहस्यमयी चुप्पी क्यों साध रखी है।
रमेश ने कहा कि अब जब आरएसएस ने हरी झंडी दिखा दी है तब क्या नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री कांग्रेस की एक और गारंटी को हाईजैक करेंगे और जाति जनगणना कराएंगे?
क्या बोले ओमप्रकाश राजभर : इस बीच उत्तर प्रदेश में भाजपा की सहयोगी सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर ने कहा कि जातीय जनगणना की बात मोहन भागवत ने कही है। हम उनका समर्थन करते हैं। NDA गठबंधन में जातीय जनगणना होगी।
खरगे ने पूछा सवाल : इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा था कि आरएसएस को देश को स्पष्ट रूप से बताना चाहिए कि वह जाति जनगणना के पक्ष में हैं या इसके खिलाफ है। खरगे ने कहा कि देश के संविधान के बजाय मनुस्मृति के पक्ष में होने वाले संघ परिवार को क्या दलित, आदिवासी, पिछड़े वर्ग एवं गरीब-वंचित समाज की भागीदारी की चिंता है या नहीं?
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संघ ने क्यों किया जातिगत जनगणना का समर्थन : आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने केरल के पलकक्ड में आयोजित तीन दिवसीय समन्वय बैठक के बाद यहां मीडिया को संबोधित करते हुए कहा था कि जाति और जाति-संबंध हिंदू समाज के लिए एक बहुत संवेदनशील मुद्दा है और यह हमारी राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए भी अहम है।
उन्होंने जातिगत जनगणना के संबंध में एक सवाल का जवाब देते हुए कहा कि इससे बहुत गंभीरता से निपटा जाना चाहिए और केवल चुनाव या राजनीति इसका आधार नहीं होने चाहिए। इसलिए, जैसा कि आरएसएस का मानना है, सभी कल्याणकारी गतिविधियों के लिए, पिछड़ रहे विशेष समुदाय या जाति से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए निश्चित रूप से हां है, क्योंकि कुछ समुदायों और जातियों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। इसलिए, इसके वास्ते सरकार को आंकड़ों की आवश्यकता है। यह कवायद बहुत अच्छे तरीके से की जाती है। इसलिए, सरकार आंकड़े एकत्र करती है। पहले भी उसने आंकड़े एकत्र किए हैं। इसलिए, वह इसे कर सकती है। कोई समस्या नहीं है।
उन्होंने कहा कि लेकिन यह केवल उन समुदायों और जातियों के कल्याण के लिए होना चाहिए। इसे चुनाव प्रचार के लिए एक राजनीतिक औजार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए, इसलिए हमने सभी के लिए एक लक्ष्मण रेखा तय की है।
आंबेकर का बयान विपक्षी दलों (कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और इंडिया गठबंधन के अन्य सहयोगी दलों) द्वारा प्रभावी नीति निर्माण के लिए जाति आधारित जनगणना कराने की मांग को लेकर अभियान चलाने के बीच आया है।