Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

The Story of Jesus : प्रभु यीशु के जन्म की पूरी कहानी

The Story of Jesus : प्रभु यीशु के जन्म की पूरी कहानी

अनिरुद्ध जोशी

, सोमवार, 20 दिसंबर 2021 (12:31 IST)
ईसा मसीह का जन्म, जीवन, मृत्यु और पुनर्जीवन को लेकर कई लोगों में मतभेद है। अनुयायी कुछ और कहते हैं और शोधकर्ता कुछ अलग। हालांकि उनका संपूर्ण जीवन लोगों की सेवा और प्रभु का संदेश देने में ही व्य‍तीत हुआ। आओ जानते हैं मान्यता, जनश्रुति और बाइबिल में उल्लेखित कथा पर आधारित उनके जन्म की कहानी।
 
 
1. 'ल्यूक एक्ट' के अनुसार उनका परिवार नाजरथ गांव में रहता था। उनके माता-पिता नाजरथ से जब बेथलहेम पहुंचे तो वहां एक जगह पर उनका जन्म हुआ। कहते हैं जब यीशु का जन्म हुआ तब मरियम कुंआरी थीं। मरियम योसेफ नामक बढ़ई की धर्म पत्नी थीं। जिस वक्त ईसा मसीह का जन्म हुआ उस वक्त परियों ने वहां आकर उन्हें मसीहा कहा और ग्वालों का एक दल उनकी प्रार्थना करने पहुंचा। ऐसी मान्यता है कि यीशु के जन्म के अवसर पर स्वर्गदूतों ने 'सर्वोच्च गगन में परमेश्वर को महिमा और पृथ्वी पर उसके कृपापात्रों को शांति' यह संदेश कुछ चरवाहों को दिया था।
 
 
2. यह भी कहा जाता है कि मरियम को यीशु के जन्म के पहले एक दिन स्वर्गदूत गाब्रिएल ने दर्शन देकर कहा था कि धन्य हैं आप स्त्रियों में, क्योंकि आप ईश्‍वर पुत्र की माता बनने के लिए चुनी गई हैं। यह सुनकर मदर मरियम चकित रह गई थीं। कहते हैं कि इसके बाद सम्राट ऑगस्टस के आदेश से राज्य में जनगणना प्रारंभ हुई तो सभी लोग येरुशलम में अपना नाम दर्ज कराने जा रहे थे। यीशु के माता-पिता भी नाजरथ से वहां जा रहे थे परंतु बीच बेथलेहम में ही माता मरियम ने एक बालक को जन्म दिया।
 
 
3. एक दूसरे सिद्धांत के अनुसार अर्थात 'मैथ्यू एक्ट' के अनुसार ईसा का जन्म तो बेथलहम में हुआ था परंतु वहां के राजा हिरोड ने बेथलहेम में दो साल से कम उम्र के सभी बच्चों को मारने का आदेश दे दिया दिया था, यह जानकर ईसा मसीह का परिवार वहां से मिस्र चला गया था। फिर वहां से कुछ समय बाद वे नजारथ में बस गए थे। 'गॉस्पेल ऑफ मार्क' और 'गॉस्पेल ऑफ जॉन' ने इनके जन्म स्थान का जिक्र नहीं किया है, लेकिन उनका संबंध नाजरथ से बताया है।
 
 
4. ईसाई धर्मपुस्तक के अनुसार माता मरियम गलीलिया प्रांत के नाजरथ गांव की रहने वाली थी और उनकी सगाई दाऊद के राजवंशी युसुफ नामक बढ़ई से हुई थी। कहते हैं कि विवाह के पूर्व ही वह परमेश्वर के प्रभाव से गर्भवती हो गई थीं। परमेश्वर के संकेत के चलते युसुफ या योसेफ ने उन्हें अपनी पत्नी स्वीकार कर लिया। विवाह के बाद युसुफ गलीलिया प्रांत छोड़कर यहूदी प्रांत के बेथलेहम नामक गांव में आकर रहने लगे और वहीं पर ईसा मसीह का जन्म हुआ। परंतु वहां के राजा हेरोद के अत्याचार से बचने के लिए वे मिस्र जाकर रहने लगे थे और बाद में जब ई.पूर्व. हेरोद का निधन हो गया तो वे पुन: बेथलेहम आए और वहां पर 6 ईसापूर्व ईसा मसीह का जन्म हुआ और फिर वे वहां से पुन: नाजरेथ में बस गए थे। 
webdunia
Jesus Christ
5. न्यू टेस्टामेंट अनुसार ईश्वर ने अपना एक दूत ग्रैबियल को मैरी के पास भेजा। ग्रैबियल ने मैरी को बताया कि वह ईश्वर के पुत्र को जन्म देगी। बच्चे का नाम जीसस होगा और वह ऐसा राजा होगा, जिसके साम्राज्य की कोई सीमा नहीं होगी। चूंकि मैरी एक कुंआरी, अविवाहित लड़की थी, इसलिए उसने पूछा कि यह सब कैसे संभव होगा। अपने जवाब में ग्रैबियल ने कहा कि एक पवित्र आत्मा उसके पास आएगी और उसे ईश्वर की शक्ति से संपन्न बनाएगी।
 
 
मैरी का जोसेफ नामक युवक से विवाह हुआ। देवदूत ने स्वप्न में जोसेफ को बताया कि जल्दी ही मैरी गर्भवती होगी, वह मैरी का पर्याप्त ध्यान रखे और उसका त्याग न करें। जोसेफ और मैरी नाजरथ में रहा करते थे। नाजरथ आज के इसराइल में है, तब नाजरथ रोमन साम्राज्य में था और तत्कालीन रोमन सम्राट आगस्टस ने जिस समय जनगणना किए जाने की आज्ञा दी थी उस समय मैरी गर्भवती थी पर प्रत्येक व्यक्ति को बैथेलहम जाकर अपना नाम लिखाना जरूरी था, इसलिए बैथेलहम में बड़ी संख्या में लोग आए हुए थे। सारी धर्मशालाएं, सार्वजनिक आवास गृह पूरी तरह भरे हुए थे। शरण के लिए जोसेफ मेरी को लेकर जगह-जगह पर भटकता रहा।
 
 
अंत में दम्पति को एक अस्तबल में जगह मिली और यहीं पर आधी रात के समय महाप्रभु ईसा या जीसस का जन्म हुआ। उन्हे एक चरनी में लिटाया गया। वहां कुछ गडरिये भेड़ चरा रहे थे। वहां एक देवदूत आया और उन लोगों से कहा- 'इस नगर में एक मुक्तिदाता का जन्म हुआ है, ये स्वयं भगवान ईसा हैं। अभी तुम कपड़ों में लिपटे एक शिशु को नाद में पड़ा देखोगे।' 
 
 
गडरियों ने जाकर देखा और घुटने टेककर ईसा की स्तुति की। उनके पास उपहार देने के लिए कुछ भी नहीं था। वे गरीब थे। उन्होंने ईसा को मसीहा स्वीकार कर लिया। ईसाइयों के लिए घटना का अत्यधिक महत्व है, क्योंकि वे मानते हैं कि जीसस ईश्वर के पुत्र थे, इसलिए क्रिसमस, उल्लास और खुशी का त्योहार है, क्योंकि उस दिन ईश्वर का पुत्र कल्याण के लिए पृथ्वी पर आया था।
 
 
6. पवित्र धर्मग्रंथ बाइबिल के अनुसार ईसा मसीह के परमेश्‍वर ने अपने पुत्र के रूप में प्रकट किया। पवित्र बाइबिल के नए नियम की पुस्तक यूहन्ना के पहले अध्याय और उसकी अट्ठारहवीं आयत में लिखा है 'परमेश्वर को किसी ने कभी नहीं देखा, इकलौता पुत्र जो उसकी गोद में है उसी ने उसे प्रगट किया।' जिससे वे परमेश्वर की बात मनुष्यों को बता सकें कि परमेश्वर उनसे क्या चाहते हैं। बाइबिल के नए नियम की पहली ‍तीमुथीयुस पुस्तक के दूसरे अध्याय और उसकी पांचवीं आयत में लिखा है 'क्योंकि परमेश्वर एक ही है और मनुष्य के बीच में एक ही बिचवई है अर्थात मसीह यीशु जो मसीह है।' उन्होंने अपने इकलौते बेटे को इस जगत में मनुष्यों के उद्धार के लिए भेज दिया।
 
 
डिस्क्लेमर : लेख में दी गई जानकारी विभिन्न स्रोत से प्राप्त, शोध, मान्यता और परंपरा पर आधारित जानकारी है इसकी पुष्‍टि वेबदुनिया नहीं करता है। इसके लिए किसी विशेषज्ञ से जरूर सलाह लें।

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

रुक्मिणी अष्टमी कब है, जानिए महत्व और मुहूर्त