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योग में अनुशासन अत्यंत महत्वपूर्ण है :गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर

इस योग दिवस पर योग के अनुशासन पर दृष्टि डालते हैं

WD Feature Desk
बुधवार, 19 जून 2024 (17:17 IST)
International Yoga Day 2024: पतंजलि योग सूत्र का आरंभ ही अनुशासन से होता है- 'अथयोगानुशासनम्!' इस योग दिवस पर योग के अनुशासन पर दृष्टि डालते हैं। शासन और अनुशासन में अन्तर है। शासन, वह नियम या निर्देश जो दूसरे तुम पर लगाते हैं और अनुशासन का अर्थ है वे नियम जिन्हें तुम स्वयं पर लगाते हो। 
 
अच्छा, अब आप यह पूछ सकते हैं कि योग को अनुशासन की संज्ञा क्यों दी गई? इसकी क्या आवश्यकता है? प्यास लगने पर तुम कभी ऐसा नहीं कहते कि अब मुझे नियमानुसार पानी पीना चाहिए। भूख लगने पर तुम नहीं कहते हो कि मैं भोजन करने के अनुशासन का पालन कर रहा हूं।

ठीक इसी प्रकार प्रकृति का आनंद उठाते समय वहां कोई अनुशासन नहीं होता। मनोरंजन का आनंद लेते समय, अनुशासन की आवश्यकता नहीं होती। अनुशासन की आवश्यकता कब होती है? जब किसी कार्य को करने में हमें आनंद की प्राप्ति नहीं होती। एक शिशु जब भी अपनी मां की ओर देखता है तब उसके पास जाने के लिए किसी अनुशासन का पालन नहीं करता, यह स्वतः ही होता है। 
 
जब आप स्वयं में दृढ़ हैं, आनंदित हैं, शांत एवं प्रसन्न हैं, तब किसी अनुशासन की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि इस समय तुम पहले से ही स्वयं में स्थापित हो। जब चित्त अपने स्वभावानुसार भटकता रहता है तब इस भटकाव को रोकने के लिए हमें अनुशासन की आवश्यकता पड़ती है।

अनुशासन से हम आत्मकेंद्रित होते हैं और परमानंद की ओर बढ़ते हैं। एक विशेष अनुशासन के उपरांत जो आनंद प्राप्त होता है वह सात्विक आनंद देने वाला होता है। वह आनंद जो आरंभ में हर्ष दे और अंत में दुःखदायी हो, वह सच्चा आनंद नहीं होता। वास्तविक आनंद को प्राप्त करने के लिए अनुशासन का पालन करना अत्यंत आवश्यक है। 
 
अनुशासन का उद्देश्य है आनंद की प्राति। आनंद भी तीन प्रकार के होते हैं। जिस कार्य में आरंभ से अंत तक केवल दुःख ही दुःख हो लेकिन कार्य करने वाले को उसमें सुख मिले, तो यह तामसिक आनंद है। राजसिक आनंद -आरंभ में अत्यंत आकर्षण एवं आनंददायक होता है किंतु उसका अंत दुःखदायी होता है।

सात्विक आनंद वह है, जिसमें आरंभ में कोई आनंद न मिले लेकिन उसका अंत आनंद ही आनंद हो। तामसिक आनंद में किसी अनुशासन के पालन की आवश्यकता नहीं है, अर्थात अनुशासन का अभाव ही तामसिक आनंद है। त्रुटिपूर्ण अनुशासन, राजसिक आनंद का परिचायक है और सात्विक आनंद की प्राप्ति के लिए दीर्घ अनुशासन की आवश्यकता होती है। जिन नियमों के पालन में कठिनाई जान पड़े, वही तो अनुशासन है और यह कतई आवश्यक नहीं है कि अनुशासन सदा ही अप्रिय हो परन्तु कठोर नियमों का पालन करना और उन्हें सहन कर आगे बढ़ना यही तो अनुशासन का महात्म्य है।

इसीलिए महर्षि पतंजलि ने कहा है, 'अभी, इस क्षण में!' इस क्षण का अर्थात है जब जीवन स्पष्ट रूप से समझ में न आता हो। जब तुम्हारा हृदय सही स्थान पर न हो, जब मन अशांत हो तब 'योगानुशासनम्', मैं योग को प्रतिपादित करता हूँ। 
 
आएं हम सब इस योग दिवस पर यह संकल्प लें कि अनुशासन का पालन करते हुए हम योग को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएंगे।
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