कुक्कू द्विवेदी
क्यों मिले तुम्हें समय पर नाश्ता खाना...
और हमें मिले रूखा-सूखा...
क्यों मिले तुम्हें जैसा चाहे जीना..
और हमें मिले, तुम जैसा चाहो जीना..
क्यों मिले तुम्हें निर्भय होकर जीना..
और हमें मिले, डर-डर कर मरना...
क्यों मिले तुम्हें अधिकार,बिना हमारी इच्छा के दबोचना..
और हमें घुट कर सहन करना..
अब बदलना तुमको है...
पूछो अपने से प्रश्न
ऐसा क्या किया है तुमने..
जो सब करे तुम्हारे आगे-पीछे..
बस बहुत हुआ अब..
स्वीकारो स्त्री शक्ति को..
उसकी ताकत को..
तुम असहाय हो उसके बिना
वो असहाय नहीं है अब...