Webdunia - Bharat's app for daily news and videos

Install App

सरस्वती पूजन 2020 : जो सरस और रसमयी हैं वही देवी सरस्वती हैं

Webdunia
दत्तात्रय होस्करे 
 
ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना करने के बाद, मनुष्य की रचना की। मनुष्य की रचना के बाद उन्होंने अनुभव किया कि मनुष्य की रचना मात्र से ही सृष्टि की गति को संचालित नहीं किया जा सकता। उन्होंने अनुभव किया कि नि:शब्द सृष्टि का औचित्य नहीं है, क्योंकि शब्द हीनता के कारण विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं था और अभिव्यक्ति के माध्यम के नहीं होने के कारण ज्ञान का प्रसार नहीं हो पा रहा था।
 
विष्णु से अनुमति लेकर उन्होंने एक चतुर्भुजी स्त्री की रचना की जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। 
 
शब्द के माधुर्य और रस से युक्त होने के कारण इनका नाम सरस्वती पड़ा। सरस्वती ने जब अपनी वीणा को झंकृत किया तो समस्त सृष्टि में नाद की पहली अनुगूंज हुई। चूंकि सरस्वती का अवतरण माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को हुआ था अत: इस दिन को वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है।
 
मत्स्यपुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, मार्कण्डेयपुराण, स्कंदपुराण, विष्णुर्मोत्तरपुराण तथा अन्य ग्रंथों में भी देवी सरस्वती की महिमा का वर्णन किया गया है। 
 
इन धर्मग्रंथों में देवी सरस्वती को सतरूपा, शारदा, वीणापाणि, वाग्देवी, भारती, प्रज्ञापारमिता, वागीश्वरी तथा हंस वाहिनी आदि नामों से भी संबोधित किया गया है। मां सरस्वती को सरस्वती स्तोत्र में ‘श्वेताब्ज पूर्ण विमलासन संस्थिते’ अर्थात श्वेत कमल पर विराजमान या श्वेत हंस पर बैठे हुए बताया गया है।
 
दुर्गा सप्तशती में मां आदिशक्ति के महाकाली महालक्ष्मी और महा सरस्वती रूपों का वर्णन और महात्म्य 13 अध्यायों में बताया गया है। शक्ति को समर्पित इस पवित्र ग्रंथ में 13 में से 8 अध्याय मां सरस्वती को ही समर्पित हैं, जो इस तथ्य को प्रतिपादित करता है कि नाद और ज्ञान का हमारे अध्यात्म में बहुत ज्यादा महत्व है।
 
कहते हैं देवी वर प्राप्त करने के लिए कुंभकर्ण ने दस हजार वर्षों तक गोवर्ण में घोर तपस्या की। जब ब्रह्मा वर देने को तैयार हुए तो देवों ने निवेदन किया कि आप इसको वर तो दे रहे हैं लेकिन यह आसुरी प्रवृत्ति का है और अपने ज्ञान और शक्ति का कभी भी दुरुपयोग कर सकता है, तब ब्रह्मा ने सरस्वती का स्मरण किया। 
 
सरस्वती कुंभकर्ण की जीभ पर सवार हुईं। सरस्वती के प्रभाव से कुंभकर्ण ने ब्रह्मा से कहा- ‘स्वप्न वर्षाव्यनेकानि। देव देव ममाप्सिनम।’ यानी मैं कई वर्षों तक सोता रहूं, यही मेरी इच्छा है। इस तरह त्रेता युग में कुंभकर्ण सोता ही रहा और जब जागा तो भगवान श्रीराम उसकी मुक्ति का कारण बने।
 
दुर्गा सप्तशती में भी सरस्वती के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन मिलता है। विष्णुधर्मोत्तर पुराण में वाग्देवी को चार भुजायुक्त व आभूषणों से सुसज्जित दर्शाया गया है। स्कंद पुराण में सरस्वती जटा-जूटयुक्त, अर्धचन्द्र मस्तक पर धारण किए, कमलासन पर सुशोभित, नील ग्रीवा वाली एवं तीन नेत्रों वाली कही गई हैं। रूप मंडन में वाग्देवी का शांत, सौम्य व शास्त्रोक्त वर्णन मिलता है। 

सम्बंधित जानकारी

सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Dhanteras 2024: अकाल मृत्यु से बचने के लिए धनतेरस पर कितने, कहां और किस दिशा में जलाएं दीपक?

क्या है मुंबई स्थित महालक्ष्मी मंदिर का रहस्यमयी इतिहास,समुद्र से निकली थी यहां माता की मूर्ति

धनतेरस सजावट : ऐसे करें घर को इन खूबसूरत चीजों से डेकोरेट, आयेगी फेस्टिवल वाली फीलिंग

दिवाली पर मां लक्ष्मी को बुलाने के लिए करें ये 5 उपाय, पूरे साल रहेगी माता लक्ष्मी की कृपा

दिवाली से पहले घर से हटा दें ये पांच चीजें, तभी होगा मां लक्ष्मी का आगमन

सभी देखें

धर्म संसार

सिखों के 7वें गुरु, गुरु हर राय जी की पुण्यतिथि, जानें 5 खास बातें

Aaj Ka Rashifal: क्या कहती है आज आपकी राशि, पढ़ें 25 अक्टूबर 2024 का दैनिक राशिफल

25 अक्टूबर 2024 : आपका जन्मदिन

25 अक्टूबर 2024, शुक्रवार के शुभ मुहूर्त

Dhanteras Rashifal: धनतेरस पर बन रहे 5 दुर्लभ योग, इन राशियों को मिलेगा सबसे ज्यादा फायदा

આગળનો લેખ
Show comments